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जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बारिश और मैं ..................

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              मुझे बारिश बहुत पसंद है हर बार जब बारिश होती है तब एक अलग सा सुकून होता है। बचपन की बहुत सारी यादें ताजा हो जाती हैं। इस बार तो दिल्ली में बस नाम की बारिश हुई है। ऊपर से अभी भी इतनी ऊमस और गरमी बनी हुई है। लग ही नहीं रहा की सावन का महीना है  पिछले २ दिन यहां बारिश हुई परन्तु यहां की बारिश में वो बात कहां जो मेरे गावं में होती थी। आज में अपनी बारिश की यादें शेयर कर रही। दरअसल इन ४ महीनो के लॉक डाउन में सब कुछ बोरिंग होने लगा है अब इसलिए आज पुराने दिनों में जाने की इच्छा हो रही फिर से। ....                   " बूंदों से बना हुआ छोटा सा समुन्दर ,                             लहरों से भीगती छोटी सी बस्ती।                     चलो ढूंढे बारिश में दोस्ती की यादें ,                         हाथ में लेकर एक कागज़ की कश्ती। "               बात तब की है जब मैं ८ वीं कक्षा में थी और हर बार की तरह इस बार भी गर्मी की छुट्टियों में, मैं और मेरा भाई पूरे २ महीने स्कूल के खुलने तक दादी के साथ ही रहे थे हमारे पुराने ओडिशा के गावं साहसपुर में।  पहाड़ों के नीचे बसा छोटा सा ,सुन्दर सा ग

राजनीति का अपराधीकरण /अपराध का राजनीतिकरण

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                       मैं लिखना कुछ और चाहती थी पर लिख इस टॉपिक पे रही हूं। मैं रोक नहीं पायी खुद को लिखने से  .... अजीब सी बात है ,अजीब हालात हैं। ...मैं पहले ही बताना चाहती हूँ मुझे अपराधियों से कोई सहानुभूति नहीं हैऔर न मैं ऐसे लोगों को सपोर्ट करती हूँ। मेरा मानना है कि किसी ने अपराध किया है तो उसको सजा जरूर मिलनी चाहिए। पर आज हम अपने खोखले हो चुके  सिस्टम की बात करेंगे।  कैसी घटना है...  एक अपराधी जिस पर ३० सालों से लगभग ६० लोगों की हत्या का आरोप हो ,५ लाख रूपए का इनाम रखा गया है।  एक बीजेपी विधायक की हत्या का भी आरोपी है और फिर भी अभी तक बचा रहा ?बिना राजनीतिक और पुलिस सहायता के एक गुंडा इतने दिनों तक कैसे बच सकता है ?सामान्य तौर पे यदि किसी आम आदमी पे एक पुलिस केस हो जाये तो उसकी पूरी जिंदगी बर्बाद हो जाती है। और एक गुंडा राजनीतिक सहायता पाकर इतना ताकतवर हो जाता है कि -एक पूरा संगठित अपराध करता है, ८ पुलिस वालो को मारने में कामयाब हो जाता है वो भी कुछ पुलिस वालों की सहायता से ही। और ये केवल एक नहीं था और भी बहुत सारे ऐसे गुंडे राजनेताओं की शरण में फलते- फूलते हैं ताकि धनबल और बा

कुछ भी। .... आज बस यूँ ही।.....

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                   आज बड़े दिनों बाद कुछ लिख रही। ....सोचा नहीं है कि क्या लिखूंगी  .... फिर भी कोशिश कर रही सोच कर  लिखने की। ..... अजीब सा माहौल है अभी देश में। .. कोरोना ने पीछा नहीं छोड़ा बल्कि और भयावह हो चुका है ,३ महीने बाद लॉक डाउन खुलने के बाद भी समस्याएं वहीं बनी हुई हैं। .... लोग अब कोरोना के साथ जीने की कोशिश को न्यू नार्मल कहने लगे हैं।  चीन की हिमाकत बढ़ती ही जा रही है,देश में साइबर हमले आंतरिक सुरक्षा को चुनौती दे रहे तो सामाजिक -आर्थिक समस्याएं मुँह बाएं खड़ी हैं। गरीबी ,बेरोजगारी और असमानता की खाई गहरी होती जा रही। हिंसक घटनाओं के साथ आत्महत्या जैसी घटनाओं में वृद्धि हुई है।वर्तमान में मानसिक अवसाद गंभीर चिंता का विषय है।                       जून के महीने में कितना कुछ घट गया.... कितने सारे नए विवाद ,समस्याएं  हुई। नेपोटिस्म (भाई -भतीजावाद ) ग्रूपिस्म (किसी को अलग -थलग करना ) , ब्लेम गेम, टाइप के कितने शब्दावलियाँ चर्चा का विषय थी।     " हर कोई किसी भी मामले में जज बना बैठा है।  वो कहते हैं - " आदमी अपने मामले में वकील और दूसरों के मामले में जज बन जाता है। . ...