बारिश और मैं ..................

              मुझे बारिश बहुत पसंद है हर बार जब बारिश होती है तब एक अलग सा सुकून होता है। बचपन की बहुत सारी यादें ताजा हो जाती हैं। इस बार तो दिल्ली में बस नाम की बारिश हुई है। ऊपर से अभी भी इतनी ऊमस और गरमी बनी हुई है। लग ही नहीं रहा की सावन का महीना है  पिछले २ दिन यहां बारिश हुई परन्तु यहां की बारिश में वो बात कहां जो मेरे गावं में होती थी। आज में अपनी बारिश की यादें शेयर कर रही। दरअसल इन ४ महीनो के लॉक डाउन में सब कुछ बोरिंग होने लगा है अब इसलिए आज पुराने दिनों में जाने की इच्छा हो रही फिर से। ....  

                " बूंदों से बना हुआ छोटा सा समुन्दर ,
                            लहरों से भीगती छोटी सी बस्ती। 
                   चलो ढूंढे बारिश में दोस्ती की यादें ,
                        हाथ में लेकर एक कागज़ की कश्ती। "

              बात तब की है जब मैं ८ वीं कक्षा में थी और हर बार की तरह इस बार भी गर्मी की छुट्टियों में, मैं और मेरा भाई पूरे २ महीने स्कूल के खुलने तक दादी के साथ ही रहे थे हमारे पुराने ओडिशा के गावं साहसपुर में।  पहाड़ों के नीचे बसा छोटा सा ,सुन्दर सा गावं  है।  वहां सावन के महीने में  पेड़ों पर झूले लगाए जाते थे।  और मैं अपने दोस्तों के साथ बहुत झूला झूलती थी।  आज भी वहां झूले लगे  होंगे या नहीं पता नहीं। .. ६ साल हो चुके गावं गई नहीं। 



 

             उन दो महीनो में मैंने क्या -क्या किया था सोचती हूँ तो रोमांचित हो जाती हूँ। चूँकि गांव पहाड़ों के नीचे है ,जंगल किनारे बसा है तो वहां के लोग हर रोज़ ही ट्रैकिंग करते है वहां। मैं भी अपने दोस्तों के साथ बारिश के दिनों में पहाड़ों पर गई हूँ। जब बैम्बू शूट (करील ) का सीजन होता है ,जंगली मशरूम लेने जाते थे जंगल में  ,पेड़ के डाल पे बैठ के नमक -मिर्च लगाकर जामुन खाते हुए गॉशिप करने का मजा ही कुछ और होता था। याद है मुझे उस दिन जब पानी से भरे धान के खेत में मैं गिर गई थी तब एक केकड़े ने काट लिया था मुझे और मैं रोने लगी थी। जब पहाड़ से नीचे उतरने की बारी आती तो बारिश ,कीचड ,फिसलन वाले रास्तों से गिरते पड़ते गांव पहुंचते और तालाब में तैराकी करके ही घर जाते।  वो भी क्या बेफिक्री के दिन थे। दादी के हाथ का टेस्टी खाना  ,वो किस्से कहानियां ,वो बारिश के झूले ,वो गुड़िया खिलौने ,मिट्टी के घरोंदे ,वो बारिश के दिनों  की अंताक्षरी , वो ताश के पत्ते  ..कागज के नाव ,और वो कंचे खेलना। ...    सब कुछ कितना अच्छा था। अब सिर्फ यादें हैं। 

               पहले मैं बारिश में भीगने के बहाने ढूंढती थी। अब तो चाहकर भी उस बेफिक्री से नहीं भीग सकते ,क्यूंकि घर से दूर खुद को ही खयाल रखना है। कभी -कभी लगता है नादान होना ही बेहतर था कम से कम जिंदगी जिंदादिली से जीते थे। जब से समझदार हुए है। ... तब से बेफिक्री चली गयी। अब सबकुछ सोच समझकर करना पड़ता है।पहले चोट लगने या गिर जाने का डर नहीं होता था  और अब भविष्य में चोट न लगे उसकी चिंता में डर कर जीते हैं।  


              खैर ये तो हुई मेरी बात। .. बारिश हमेशा सबके लिए खुशियां लेके आये ऐसा जरुरी नहीं है। असम और बिहार में बारिश ने तबाही मचा दी है। एक तरफ बारिश सृजन का मूल है तो दूसरी तरफ बाढ़ के रूप में  विध्वंश का। महानगरों में बारिश के बाद तो शासन  व्यवस्था की पोल खुलती है। और आजकल लोकतंत्र की ओट में नेताओं द्वारा खेली जा रही राजनीतिक कबड्डी ने अब और जोर पकड़ लिया है। भ्रष्टाचार की मानसिकता समय के साथ और बलवती हुई है ,बस शब्द और ढांचे के रूप अलग हो गए हैं। (#राजस्थान राजनीतिक संकट ) कोरोना काल  ख़तम ही नहीं हो रहा है  और सामजिक आर्थिक असमानता की बढ़ती खाई के साथ साथ बढ़ते जलवायु परिवर्तन से समस्याएं और गंभीर होती जा रही। 
      
                          " सहमी हुई सी है झोपडी ,
                                        बारिश के खौफ से। 
                              और महलों की आरज़ू है की ,
                                            बारिश तेज हो। "
    
              कैसी विडंबना है एक वर्ग ऐसा है जो बारिश में अपने परिवार के साथ चाय पकोड़े के मजे ले रहा तो एक वर्ग बाढ़ की चपेट में अपने अस्तित्व को बचाने में जुटा है। लगता है बारिश और बादल भी भेदभाव करने लगे हैं। ... खैर आप अपनी राय कमेंट में लिखें और अपने -अपने घरों में स्वस्थ रहे ,सुरक्षित रहें। 

टिप्पणियाँ

  1. जीवन के हर क्षण मेंं खुशी छिपी हुई है ...
    वर्तमान का आनन्द लेते हुए अपने विचारों से अवगत कराते रहिए ...
    👌👌

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  2. aaj bhi befikr ho kar ud sakti ho ;;;barish me bheeg sakti ho ;;bs kadam badane ke deri hai
    aacha likha hai ,bachpan wale befikr dinnnnnn

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