रूबरू..... रौशनी..

              

   "पहली और  सबसे अच्छी जीत स्वयं को जीतना है। " - प्लेटो 

              आज बड़े दिनों बाद कुछ लिख रही। .. अजीब सा निराशा का  माहौल है। हर दिन सुबह उठकर बस यही सोचती हूँ कि आज कोई बुरी खबर न मिले पर कोरोना ऐसा होने नहीं दे रहा। इतनी सारी मौतें त्रासदी है। पिछले वर्ष का लॉक डाउन भी अकेले बीता  दिया था मैंने और इस बार भी यही सोचा कि ये लॉक डाउन भी कट ही जाएगी। पर इस बार ये लॉक डाउन डरावनी और निराशा भरी रही। इस लॉक डाउन ने ये एहसास करवाया  कि बेचैनी कैसी होती है। मई में मेरे भाई को कोरोना हुआ था जो कि अब पूरी तरह ठीक हो चुका है। और घर में माँ -पापा थे उसको ध्यान रखने के  लिए और मैं यहाँ अकेले हेल्पलेस थी। डर लग रहा था कि माँ -पापा को न हो जाये।और भगवान् का शुक्र है कि माँ -पापा भी ठीक हैं।  वो १५ दिन मेरी जिंदगी के डरावने दिन थे हर वक़्त इतनी बैचेनी ,इतना डर था कि मेरा कहीं मन नहीं लग रहा था। हर वक़्त निगाहें फ़ोन  पे होती थी और नेगेटिव ख्याल आ रहे थे। उसी वक़्त मेरी सहेली के पिताजी का देहांत हो गया था कोरोना से ही और सोशल मीडिया और समाचारों ने डराने की  कोई कसर छोड़ी नहीं थी। जब तक मेरा भाई ठीक नहीं हो गया तब तक मेरी हालत ख़राब थी। काफी दिन हो गए मेरा किसी काम में मन नहीं लग रहा था। और वर्तमान में जैसी स्थिति है ये कहानी केवल मेरी नहीं है बल्कि करोडो लोगों की है। बहुत लोगों ने अपनों को खोया है और जिनके अपने इस बीमारी के चपेट में आये हैं उन्होंने अपनों के खोने का डर झेला है, और ये भयानक मानसिक प्रताड़ना से कम नहीं होती। 


               अब बस हर दिन यही प्रार्थना है ईश्वर से कि परिस्थितियां जल्द ही सामान्य हो और किसी को भी किसी अपने को खोना न पड़े। कितनी नश्वर जिंदगी है। हमें पता नहीं कल क्या होने वाला है सब कुछ क्षणिक है। आज जिंदगी है तो कल मौत भी होगी। ये सब जानते हैं। पर वास्तविकता से  अनजान बनकर बेफिक्री का वहम पालना अच्छा लगता है। जीवन कितना अमूल्य है इस वायरस ने रूबरू करवाया। 

             "आप  जलती हुई मोमबत्ती को उल्टा करते हो ,तब भी उसकी लौ हमेशा ऊपर की तरफ जाती है। जीवन में भी इतनी सारी घटनाएं घटेंगी ,जहाँ आपका उत्साह ,जोश नीचे दब जायेगा। उस समय याद रखना मैं मोमबत्ती की तरह हूँ और  मैं इस परिस्थिति से बाहर आ जाऊंगी /जाऊंगा। मेरे उत्साह और जोश  को कुछ भी रोक नहीं सकता। "




             ये ब्लॉग लिखने का मेरा मकसद केवल निराशा भरे माहौल से बाहर आने की मेरी छोटी कोशिश है। पिछले २ महीने मैं डिप्रेशन जैसे हालत में पहुँच गई थी लग रहा था जैसे मोटिवेशन ही खतम हो गया है। चाहकर भी ध्यान न लगा पाना। घुटन हो रहा था। तब मैंने मैडिटेशन का सहारा लिया। योगा किया। और साथ में मधुबनी पेंटिंग और मण्डला आर्ट सीखने की कोशिश की। चूंकि मधुबनी और मण्डला आर्ट में बहुत छोटी -छोटी डिटेलिंग होती है तो ध्यान से करना पड़ता है। और जब मैं ये बनाने लगती थी तब वो समय में पूरी तरह फोकस होती थी। दिमाग में फालतू चीज़ें नहीं आती थी। और इसमें कुछ नया सीखने और करने के साथ मुझे मजा आने लगा है। मेरे कहने का मतलब है जरुरी नहीं कि आप यही करें। अपने मोटिवेशन को बनाये रखने के लिए आप नयी चीज़ें सीखने के  साथ वो चीज़ें करे जो आप मन से मगन होकर कर सकते है यकीन मानिये  ये बेहतरीन मैडिटेशन है। इस तरीके से आप अपने मन को कुछ देर तक फालतू सोचने से रोक सकते हैं। मेरे लिए तो ये कारगर रहा। .... मेरे द्वारा बनाई गई कुछ मधुबनी पेंटिंग और मण्डला आर्ट ... 

         "कुंठा ,निराशा और अवसाद का मतलब है कि आप अपने खिलाफ काम कर रहे हैं। यदि आप ध्यान की स्थिति  में हैं तो ऋणात्मक ऊर्जा आपको छू भी नहीं सकती। " -सद्गुरु 


            " दिमाग  एक शक्तिशाली  साधन है ,आपका हर विचार , हर भावना  आपके शरीर को प्रभावित करती है। यदि आपकी सारी   ऊर्जा एक दिशा में केंद्रित है तो ज्ञान दूर नहीं है आखिरकार आप जो खोज रहे हैं वो पहले से आपके भीतर मौजूद है। केवल आपको खुद से रूबरू होना है।"....... 

   


 


         

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