दुविधा में मन

                                मन के द्वन्द 




            आजकल मेरी रुचि  मिथक कहानियां पढ़ने में बढ़ गयी है। हाल ही में मैंने डॉ देवदत्त पटनायक कि किताब मिथक पढ़ी। जो कि हिंदु आख्यानों को समझने का अच्छा प्रयास है। वैसे तो हम सबको ही रामायण ,महाभारत की कहानियां मुंह जबानी याद है। परन्तु जब पुराने मिथक प्रसंगो के साथ नया नजरिया जुड़ जाता है तब बात अलग बन जाती है। आज मैं आप सब के साथ वो  दार्शनिक नजरिया बाँटने जा रही हूँ। 


         द्वन्द में गिरना मन का स्वभाव है। मन को भ्रम बहुत प्रिय होता है। मन सीधे -सीधे कोई काम करता नहीं ,चूंकि मन हमारे शरीर का अंग नहीं बल्कि अवस्था है ,और इस अवस्था  का निर्माण भी हमने अपने विचार और स्मृतियों से किया है ,इसलिए इस पर नियंत्रण करना ,इसको समझना ही संकल्प को बचाने की सबसे बड़ी क्रिया होगी। यदि मन खुला और सक्रिय है तो कोई भी संकल्प को पूरा होने नहीं देगा। बार -बार विकल्प चुनेगा और भ्रमित लोग कभी कोई संकल्प पूरा नहीं कर पाते।

          मन का भोजन विचार है ,इसलिए विचारों के मामले में मन को बारीकी  से समझिये। मन भी तीन प्रकार का होता है -एक विचारहीन ,दूसरा विचारयुक्त ,तीसरा विचारशून्य मन। 

          विचारहीन मन का उदाहरण रावण और दुर्योधन हो सकते हैं। इन पात्रों की चर्चा इसलिए की जा रही है कि ये बड़े चर्चित रहे हैं। ख्यात और कुख्यात दोनों हैं। अगर इनको वृत्ति मान ली जाए तो इस समय मनुष्य के भीतर रावण और दुर्योधन की वृत्ति खूब सक्रिय है। ये दोनों विचारहीन थे। 

            इनको कोई लेना -देना नहीं था कि सही क्या ,गलत क्या ? बस ,अपना काम होना चाहिए। तो इनका मन विचारहीन था। अब ,वॉच कीजिये ,निरीक्षण -परिक्षण  कीजिये कि कहीं हमारा मन भी ऐसा तो नहीं ? 

             दूसरा मन होता है विचारयुक्त ,जो कि विभीषण और अर्जुन का था। ये दोनों भ्रम में डूबे थे। विभीषण तय नहीं कर पा रहा था कि मैं रावण के साथ रहूं या श्रीराम के साथ ?रहता लंका में था और नियम राम के पालता था। अर्जुन के साथ भी ऐसा ही था। गीता का जन्म अर्जुन की विचारयुक्त भ्रम पूर्ण जीवनशैली से ही हुआ था। 
   
               इसी  प्रकार तीसरा हो सकता है विचारशून्य मन। यह हनुमानजी और श्रीकृष्ण का था। विचारशून्य मन वाला व्यक्ति ही हनुमान की तरह विभीषण को समझा सकता है ,अर्जुन को समझाने में कृष्ण की भूमिका निभा सकता है।

                  ये  जितने नाम आपने पढ़े ,सब वृत्तियां हैं और हमारे ही भीतर सक्रिय हैं। आप स्वतंत्र हैं अपना  निरिक्षण  करने के लिए। स्वयं को किस वृत्ति से संचालित करें ,यदि  यह समझ गए तो फिर कोई भी संकल्प नहीं टूटेगा। सबसे अच्छा वृत्ति है विचारशून्य होना और इसके लिए योग ही एकमात्र साधन है। 


 आपको ये ब्लॉग कैसा लगा कमेंट में बताइये। आपके सुझाव मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं। .... 

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मैं और मेरा चाँद 😍🥰🥰

mensturation and sanitary napkins ...lets talk about period...and safe healthcare for women in our country

रूबरू..... रौशनी..