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एथिकल वीगनिज्म

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                             एथिकल वीगनिज्म                 हाल ही में मैंने एक नये  दार्शनिक आस्था के बारे में पढ़ा और मुझे ये अच्छा लगा तो सोचा की क्यों ना आप लोगों के साथ साझा किया जाये।                     एथिकल वीगनिज्म  का वर्णन करने के लिए कह सकते हैं -" एक ऐसी जीवनशैली और पसंद को अपनाना जिनका उद्देश्य पशुओं को पीड़ा पहुँचाने से बचाना हो। "             वीगन वह व्यक्ति है जो पशु उत्पादों को नहीं खाता है या उनका उपयोग नहीं करता है। कुछ लोग वीगन भोजन अर्थात शाक आधारित आहार का सेवन (सभी पशु उत्पादों जैसे दुग्ध उत्पादों ,अंडे ,शहद ,मांस और मछली से मुक्त )को प्रयुक्त करना चुनते हैं। लेकिन एथिकल वीगन अपनी जीवनशैली को सभी प्रकार के पशु शोषण से बाहर रखने का प्रयास करते हैं। उदाहरण स्वरुप -वे ऊन या चमड़े से बने कपड़ों को पहनने या खरीदने से या उन कंपनियों की प्रसाधन सामग्रियां खरीदने से बचते हैं जो पशुओं पर उनका परीक्षण करती हैं।               एक एथिकल वीगन वह है जिसकी जीवन शैली और पसंद ,व्यावहारिक रूप से किसी  भी कीमत पर जानवरों पर क्रूरता और उनकी पीड़ा का कारण

विचार

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                                       विचार              "मस्तिष्क का विस्तार आकाश के विस्तार से अधिक विस्तृत होता है।" -एमिली डिकिंसन                    भारतीय परंपरा में मन को विचारों का केंद्र बताया गया  है और कहा गया है - "मन ही मनुष्य का बंधु है और वही शत्रु भी। " मन के भीतर उठते विचार ही हमारा निर्माण करते हैं। अतः मन को निम्न भूमि से हटाकर उसे उर्ध्वगामी बनाया जाना चाहिए। तभी हम जीवन का उत्थान कर सकते हैं।                    हमारा जीवन ग्रे शेड्स वाला है ,उसमें सफ़ेद पहलू भी हैं और स्याह पहलू  भी। ऐसा जीवन में रचनात्मक और विध्वंसात्मक की संयुक्त उपस्थिति के कारण ही है। जैसे - महात्मा गाँधी ने सकारात्मक विचारों को सत्य और अहिंसा के साथ सम्बद्ध किया था तथा विध्वंसात्मक विचारों को झूठ और हिंसा के साथ। गाँधी जी के लिए सच्चे विचार सृजन के प्रतीक थे तो हिंसक एवं झूठे विचार विध्वंस के।                                  शेक्सपियर ने भी कहा है -"कोई वस्तु अच्छी या बुरी नहीं है। बल्कि अच्छाई और बुराई का आधार हमारे विचार ही हैं। "            

पहली मर्तबा

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                     पहली मर्तबा                    हमें डुबाने में सक्षम तमाम चीज़ें पहली मर्तबा हमें कहाँ स्वीकार करती हैं ? लहरें पूरी कोशिश करती हैं हमें गहराइयों से दूर रखने की ,बार- बार  बाहर फेंकती हैं। सच्चा प्रेम हो,गहरे निहितार्थों वाला कोई दर्शन हो ,चाहे कोई गंभीर किताब ही क्यों न हो ,प्रथम दृष्टया बकवास ही साउंड करते हैं। नशे की चीज़ें भी पहली दफा हमें कहां स्वीकार करती हैं। पहले खांसी आती है फिर हिचकियां आती हैं ये उनका अपना तरीका है हमें खुद से दूर रखने का....... हमारा समर्पण जांचने का।                                         डूबने की हमारी इच्छा जिस समय इन प्रतिरोधों पर भारी पड़ने लगती है ,डूबाने वाली ये तमाम चीज़ें हमें और भी तन्मयता से स्वीकार कर लेती हैं.... फिर अपनी जिजीविषा को नकार कर हम इनमें डूब जाते हैं। ... और इसके बाद ही हमारा असल स्वरूप निखरकर सामने आता है।                 जब तक पूरा समर्पण नहीं होगा तब तक किसी भी चीज़ में मजा नहीं आएगा। चाहे कोई किताब ही क्यों न पढ़े जब तक समझ न आये तब तक  बार -बार पढ़े। राजनीति शास्त्र सबसे बेकार विषय  लगता था कुछ