विचार

                                       विचार 


            "मस्तिष्क का विस्तार आकाश के विस्तार से अधिक विस्तृत होता है।" -एमिली डिकिंसन 

                  भारतीय परंपरा में मन को विचारों का केंद्र बताया गया  है और कहा गया है -"मन ही मनुष्य का बंधु है और वही शत्रु भी। "मन के भीतर उठते विचार ही हमारा निर्माण करते हैं। अतः मन को निम्न भूमि से हटाकर उसे उर्ध्वगामी बनाया जाना चाहिए। तभी हम जीवन का उत्थान कर सकते हैं। 

                  हमारा जीवन ग्रे शेड्स वाला है ,उसमें सफ़ेद पहलू भी हैं और स्याह पहलू  भी। ऐसा जीवन में रचनात्मक और विध्वंसात्मक की संयुक्त उपस्थिति के कारण ही है। जैसे - महात्मा गाँधी ने सकारात्मक विचारों को सत्य और अहिंसा के साथ सम्बद्ध किया था तथा विध्वंसात्मक विचारों को झूठ और हिंसा के साथ। गाँधी जी के लिए सच्चे विचार सृजन के प्रतीक थे तो हिंसक एवं झूठे विचार विध्वंस के। 
               
                शेक्सपियर ने भी कहा है -"कोई वस्तु अच्छी या बुरी नहीं है। बल्कि अच्छाई और बुराई का आधार हमारे विचार ही हैं। "

                 चेतना ही विचारों ,भावनाओं और कार्यों का स्रोत है। कुछ लोग इसे सेल्फ या आत्मबोध कहते हैं। जब हमें आत्मबोध  हो जाता  है तो विचारों और भावनाओं को सही दिशा देना आसान हो जाता है गाँधी ,विनोबा भावे जैसे लोगों के जीवन में कोई फांक इसलिए नहीं था क्यों कि वे जो सोचते विचारते और कहते थे ,वही थे,और वही बनना चाहते थे। परन्तु अधिकांश मनुष्य अंदर कुछ विचार रखते हैं और बाहर कुछ प्रदर्शित करते हैं ,इसलिए वे वैसे ही बन जाते हैं जैसे उनका वास्तविक विचार होता है।


                  महात्मा बुद्ध ने एकबार आनंद के इस प्रश्न पर की -"भगवन ,चेतना के स्तर पर मनुष्य के निमित्त पर सबसे अधिक प्रभाव किस चीज़ का होता है ?" -बुद्ध ने जवाब दिया -"वर्तमान में हम जो कुछ हैं अपने विचारों के कारण हैं और भविष्य में जो कुछ बनेंगे वह भी विचारों के कारण। 




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