पहली मर्तबा

                     पहली मर्तबा 

                  हमें डुबाने में सक्षम तमाम चीज़ें पहली मर्तबा हमें कहाँ स्वीकार करती हैं ? लहरें पूरी कोशिश करती हैं हमें गहराइयों से दूर रखने की ,बार- बार  बाहर फेंकती हैं। सच्चा प्रेम हो,गहरे निहितार्थों वाला कोई दर्शन हो ,चाहे कोई गंभीर किताब ही क्यों न हो ,प्रथम दृष्टया बकवास ही साउंड करते हैं। नशे की चीज़ें भी पहली दफा हमें कहां स्वीकार करती हैं। पहले खांसी आती है फिर हिचकियां आती हैं ये उनका अपना तरीका है हमें खुद से दूर रखने का....... हमारा समर्पण जांचने का।  

                     
                डूबने की हमारी इच्छा जिस समय इन प्रतिरोधों पर भारी पड़ने लगती है ,डूबाने वाली ये तमाम चीज़ें हमें और भी तन्मयता से स्वीकार कर लेती हैं.... फिर अपनी जिजीविषा को नकार कर हम इनमें डूब जाते हैं। ... और इसके बाद ही हमारा असल स्वरूप निखरकर सामने आता है। 

               जब तक पूरा समर्पण नहीं होगा तब तक किसी भी चीज़ में मजा नहीं आएगा। चाहे कोई किताब ही क्यों न पढ़े जब तक समझ न आये तब तक  बार -बार पढ़े। राजनीति शास्त्र सबसे बेकार विषय  लगता था कुछ समय पहले तक मुझे लेकिन अब लगता है हम दोनों में धीरे -धीरे प्यार हो रहा है। आप भी पहली दफा असफल होने पर अपनी कोशिशों पर विराम न लगाइये बल्कि तब तक प्रयास करते रहिये जब तक सफल नहीं हो जाते। 

                  " मत घबराना जिंदगी में ,
                            परेशानियों की पतझड़ से 
                    मेहनत की बसंत खुशियों की बहार जरूर लाएगी। 
                              खून पसीने से सींचना अपनी कोशिशों को ,
                    इन कोशिशों के बल पर ही कामयाबी आएगी। "  
                                                                        -अज्ञात 

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