समेकित संस्कृति

                    समेकित संस्कृति 


             भारत की समेकित संस्कृति का विवादित हिस्सा हिन्दू -मुस्लिम प्रश्न का रहा है। एक अनुदारवादी खेमा भारतीय संस्कृति को इंद्रधनुषी नहीं बल्कि एक रंग का बनाना चाहता है। हॉल की घटनाओं ने प्रेरित किया मुझे कि क्यों न हम हमारी समेकित संस्कृति को अच्छे से समझने की कोशिश करें। 

            भारतवर्ष की विशिष्ट भौगोलिक अवस्थिति ने भी हमारी सामासिक सांस्कृतिक चेतना को गढ़ा है। जो विविधता भारत के भूगोल ,ऋतुओं और उच्चावच में है। वही उसकी संस्कृति में भी प्रतिबिंबित होती है। जैसे -भारतीय वन्य प्रदेश  भारत के आदिवासी संस्कृति के शरण स्थल बने तो भारत की उत्तर पश्चिम सीमा पर स्थित खैबर ,बोलन आदि दर्रों से होकर आक्रमणकारी जातियां यहाँ आती रहीं पर वे अंततः भारत की होकर ही रह गईं। शक -हूण -कुषाण -पल्लव -यवन क्या इन्हें भारतीय धारा में से पहचाना जा सकता है ?इस्लाम के आगमन ने हमारी संस्कृति को गंगा -जमुनी तहजीब दी। दुनिया भर के पीड़ित- प्रताड़ित पारसियों को भारत में आकर ही शरण मिली। 

           भारत विभिन्न सांस्कृतिक धाराओं का महासंगम है जिसमें सनातन संस्कृति से लेकर आदिवासी ,तिब्बत -मंगोल -चीनी ,द्रविड़ ,हड़प्पाई ,आर्य -अनार्य, अरबी -तुरानी -ईरानी मुग़ल और यूरोपीय धाराएं सम्मिलित हैं। ये धाराएं देश को इंद्रधनुषी स्वरुप प्रदान करती हैं। जिसके फलस्वरूप समन्वय एवं समरसता तथा विविधता में एकता हमारी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरी है। 

           हम खान -पान ,भाषा ,पहनावे ,कला संगीत आदि हर  तरह से वैश्विक संस्कृति के नमूने हैं। शायद ही कोई कहे कि सलवार- सूट ईरानी पहनावा है या हलवा, कबाब,पराठे शुद्ध भारतीय व्यंजन नहीं हैं  ?  

          अमीर खुसरो ,रसखान ,जायसी ,रहीम या वली हों अथवा गुजरात के नरसी मेहता ,असम के शंकरदेव ,बंगाल के चंडीदास ,महाराष्ट्र के एकनाथ -तुकाराम - नामदेव ,नाथ सिद्ध हों या कबीरदास ,कृष्णभक्त सूरदास हों या रामभक्त तुलसीदास सभी हमारी संस्कृति में पूज्य हैं। 
         
          तमिल का संगम साहित्य ,तेलगु का अवधान साहित्य ,हिंदी का भक्ति साहित्य ,उर्दू का गजल साहित्य ,मलयालम का मणि प्रवालम ,पंजाबी का रम्याख्यान ,मराठी का पवाड़ा ,गुजराति का फ़ाग ,बंगाल का मंगलगीत ,असमिया का बुरुंजी गीत आदि भारतीय सांस्कृतिक  उद्यान के फूल हैं। 


            वस्तुतः कट्टरतावाद ,उपभोक्तावाद ,बाज़ारवादी संस्कृति ,मूल्यहीन शिक्षा प्रणाली ने भारत की समेकित संस्कृति पर एक योजनाबद्ध आक्रमण सा कर दिया है। यह मानने में कोई देर नहीं करनी चाहिए कि ५००० साल से एक राष्ट्र के रूप में भारत वर्ष की पहचान इसकी सामासिक सांस्कृतिक धारा के कारण बनी रही है। 


          भारत को एकल संस्कृति वाला राष्ट्र समझने की भूल करने वालों को ये समझना होगा कि किसी भी सम्प्रदाय का उग्र स्वरुप सदैव विनाशक होता है ,चाहे हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना हो या अखिल इस्लामवाद का नारा ,ये दोनों ही समेकित संस्कृति के विकास  व भारत के समावेशी स्वरुप एवं धर्मनिरपेक्षता के विरूद्ध है। 

   वर्तमान सरकार को जल्दी ही नागरिकता संसोधन बिल से उपजे विवाद को शांतिपूर्वक सुलझाना होगा।  

 ....... इसी आशा के साथ..........  

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