दुविधा में मन
मन के द्वन्द आजकल मेरी रुचि मिथक कहानियां पढ़ने में बढ़ गयी है। हाल ही में मैंने डॉ देवदत्त पटनायक कि किताब मिथक पढ़ी। जो कि हिंदु आख्यानों को समझने का अच्छा प्रयास है। वैसे तो हम सबको ही रामायण ,महाभारत की कहानियां मुंह जबानी याद है। परन्तु जब पुराने मिथक प्रसंगो के साथ नया नजरिया जुड़ जाता है तब बात अलग बन जाती है। आज मैं आप सब के साथ वो दार्शनिक नजरिया बाँटने जा रही हूँ। द्वन्द में गिरना मन का स्वभाव है। मन को भ्रम बहुत प्रिय होता है। मन सीधे -सीधे कोई काम करता नहीं ,चूंकि मन हमारे शरीर का अंग नहीं बल्कि अवस्था है ,और इस अवस्था का निर्माण भी हमने अपने विचार और स्मृतियों से किया है ,इसलिए इस पर नियंत्रण करना ,इसको समझना ही संकल्प को बचाने की सबसे बड़ी क्रिया होगी। यदि मन खुला और सक्रिय है तो कोई भी संकल्प को पूरा होने नहीं देगा। बार -बार विकल्प चुनेगा और भ्रमि...