मैं चिड़िया बनना चाहती हूँ ताकि खुले आसमान मैं उड़ सकूँ।
मेरे कटु अनुभव
एक चर्चित फिल्म देखी PADMEN ,बहुत ही अच्छी लगी थी मुझे पहली बार ऐसा लगा की एक फिल्म के माध्यम से ही सही समाज में मासिक धर्म (पीरियड ) के बारे में बातें हो रही हैं | लड़कियां भी अब अपनी परेशानीयों के बारे में बातें कर सकेंगी |
अब बात करते हैं मेरे साथ घटी एक घटना की, जिसने मुझे सोचने पर विवश कर दिया की लड़की होना इतना चुनौतीपूर्ण क्यों है?
बात एक हफ्ते पहले की है मैं और मेरी सहेली जूही मुनाफा बाजार सामान खरीदने गए थे ,हमने खाने पीने के सामान के साथ पैड भी ख़रीदा ,उसी वक़्त मेरी सहेली ने मुझसे कहा यार वैक्सिंग कराने पर बहुत दर्द होता है मैं एक रेज़र भी खरीद लेती हूँ ,तभी उस शॉप में हमारे पीछे खड़े दो लड़कों ने कमेंट पास कर दिया -"मैडम साफ सफाई करने वाली है|" तभी हमारा ध्यान गया और हमने पीछे मुड़ के देखा -दो पढ़े लिखे लड़के थे दिखने में भी ठीक ठाक घर के लग रहे थे ,तभी मैंने तुरंत उनको जवाब दिया -"हम कुछ भी खरीदें कहीं भी सफाई करें तुमसे मतलब, क्या परेशानी है तुमको ?" मेरी सहेली ने बोला प्लीज़ यहाँ से चल नहीं तो ये और कमेंट करेंगे ,जब हम बिलिंग काउंटर पर पहुंचे तब वो दोनों लड़के फिर वहां पीछे खड़े थे ,काउंटर पर खड़े व्यक्ति ने जब पैड को ब्लैक पॉलीथिन में डाला (चूँकि उनकी आदत हो चुकी है ऐसे देने की )तब पीछे खड़े लड़के ने फिर से कमेंट किया -"मैडम PADMEN से प्रभावित हो गई है लगता है टेस्ट मैच की तैयारी कर रही हैं " मेरे सब्र का बांध टूट चूका था ,मुझे गुस्से में देख कर मेरी फ्रेंड डर गई थी ,मैं थप्पड़ मार देती उसको पर मेरी सहेली ने रोक लिया और मुझे खींचते हुए बाहर ले आई ,और बोली यार अगर तू ज्यादा उलझेगी तो वो लोग घर तक फॉलो करेंगे और कमेंट करेंगे जाने दे ना छोड़ |
ये तो थी घटना ,पर उस रात में ठीक से सो नहीं पायी ,एक हफ्ते हो चुकें है उस घटना को पर रह रह कर ये सवाल उठ रहा मन में..... की क्यों ऐसा हुआ? क्यों हम अपनी जरुरत की चीज़ें खरीदने के लिए भी पब्लिक प्लेस पर सोचतें हैं ,कभी इमरजेंसी हो और पैड की जरुरत पड़े तो क्या हम भद्दे कमेंट की वजह से पैड खरीदने भी न जाएँ? अगर ये गांव की बात होती ना तो एकबारकी समझ आता चूँकि गांव में अब भी रूढ़िवादिता मौजूद है ,पर अफ़सोस इस बात का है की ये राजधानी दिल्ली (मुखर्जी नगर )की बात है ,और जिन्होंने कमेंट किया वो पढ़े लिखे लड़के थे ? मैं सोचने पर मजबूर हूँ की हम किस दिशा में प्रगति कर रहे हैं? हमारे देश के पढ़े लिखे युवा लड़कों की मानसिकता कैसी है?ऐसी दशा मैं हम कैसे मान सकते है की महिलाओं के लिए सम्मान की भावना इनके अंदर होगी? या कभी आएगी ऐसी मानसिकता क साथ?
हमें कब तक ऐसे अपमान सहना पड़ेगा? क्या कभी हम भी आज़ादी के ७० दसक बीतने के बाद भी आज़ादी का अनुभव कर पाएंगी ? कब तक महिलाओं को रेप, एसिड अटैक,साइबर बुली ,बॉडी शेमिंग ,स्लुट शेमिंग ,ट्रोल ,भद्दे कमेंट का सामना करना पड़ता रहेगा? कब हम सुरक्षित महसूस कर पाएंगे ?
क्या पुरूषों की मानसिकता महिलाओं के लिए अच्छी नहीं हो सकती कभी ? पुरुषों ने ही महिलाओं की रक्षा का दायित्व अपने सर लिया है? चूँकि वो मानते है की वो बलसाली हैं? एक पिता, पति, बेटा ,भाई, प्रेमी के रूप में वो हमारी रक्षा का वचन देते हैं ? फिर क्यों महिलाओं को पुरुषों से ही डर लगता है ? जो रक्षक है वही भक्षक क्यों हैं ?
क्या इन प्रश्नों का जवाब मुझे मिल सकता है?
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