कुछ बातें ....
कुछ बातें .... बस यूँ ही। ..
बड़े दिनों बाद कुछ लिख रही। अभी तक सोचा नहीं कि क्या लिखूंगी। .. पर मन कर रहा कि कुछ लिखूं। ... अब मौसम भी अपने रंग बदल रहा,उमस भरी गर्मी के बाद हल्की -हल्की गुलाबी ठण्ड ने दस्तक दे दी है। .. कोरोना के साथ -साथ त्योहारों का मौसम चल ही रहा है। बिहार में चुनावी दौर चल रहा और राजनेता काम के मुद्दों के अलावा फालतू बयानबाजी और आरोप -प्रत्यारोप किये जा रहे। चुनावी रैलियों और बाजारों में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ रही है। मगर चुनाव में सब जायज है। पूरी दुनियां में वैक्सीन राष्ट्रवाद की लहर चल रही और अमेरिका के चुनाव का एक मुख्य मुद्दा भी वैक्सीन ही है। और हमारे भारत में तो चुनावी वादों में वैक्सीन फ्री में बांटी जा चुकी है जो कि अभी तक बनी भी नहीं है। यही न्यू नार्मल बनी जिंदगी बैचैन भी कर रही। आज ही न्यूज़ में देखा एक २१ साल की लड़की को दिन दहाड़े गोली मार दी गई और उसकी गलती केवल इतनी थी कि उसने शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। कैसी घटना है ये ....??? कुछ दिन पहले हाथरस और बलरामपुर और पंजाब में बलात्कार की घटनाएं हुई। ये घटनाएं सामान्य बन चुकी है। न्यूज़ चैनल केवल गोदी मीडिया बन के रह गई है जो राजनीतिक एजेंडा और प्रोपोगेंडा चलाकर आम जनता का मानसिक बलात्कार कर रहे है।
एसिड अटैक ,दिनदहाड़े गोली मार देना ,और कुछ न कर पाए तो चरित्र पर लांछन लगा कर सोसाइटी में विक्टिम लड़की को ही अपराधी बना देना। कैसे समाज में रह रहें हैं हम ?इसमें किसी एक की गलती नहीं है ,हमारे पूरे समाज की है। हम ऐसे पुरुषप्रधान समाज में रहते हैं जंहा महिलाओं के लिए रत्ती भर संवेदनशीलता बची नहीं है। केवल उपभोग की वस्तु बनाकर रख दिया है महिलाओं को। और इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदार जो मुझे लगता है घर की महिलाएं मम्मी और दादियां हैं जो खुद औरत होने के बावजूद भी लड़के को राजा बेटा बनाकर रखती है ,उनकी तीमारदारी करती हैं और उनकी ऐसे परवरिश करती हैं की भविष्य में जो भी तुम्हारी बीवी आएगी वो बचपन से ही तुम्हारे तीमारदारी करने के तरीके सीख के आएगी। गलती से नहीं सीखा होगा तो मजबूरी में सीखना पड़ेगा। ये ९८% महिलाओं का सच है। और मम्मियां ऐसा इसलिए करती है क्यूंकि उनकी माँ और सास ने उन्हें यही सिखाया है। विरासती भेदभाव है जो अब सामान्य बन चुकी है। और दूसरे नंबर पे आते हैं हमारे घर के पुरुष सदस्य जो पढ़े लिखे समझदार है। जानते हैं कि भेदभाव गलत है लेकिन फिर भी कुछ बोलेंगे नहीं क्यूंकि ऐसा होते आ रहा है और ये सामान्य लगता है। ठीक उसी प्रकार जैसे दहेज़ लेना गलत है सबको पता है लेकिन मिल रही हो तो नारीवादी होने का दंभ भरने वाले पुरुष भी दहेज़ लेने से पीछे नहीं हटते। चाहे वजह लालच का हो या पारिवारिक दवाब का।
"व्यक्ति वह है जो व्यक्त कर पाए अपनी भावनाओं को ,लेकिन हमारे समाज में महिलाएं केवल वस्तु की तरह ही उपभोग की जाती है। "
सामाजिक दोगलापन का चरम स्तर तो हिन्दू त्योहारों में देखने मिलता है। ९ दिन नवरात्री में कन्या पूजा करते हैं। लड़की को लक्ष्मी मानते है। और सारे आत्याचार भी कन्याओं के साथ ही करते हैं। उदहारण -भारत में ५५% से अधिक महिलाएं कुपोषण का शिकार है अनिमिआ (रक्ताल्पता )की शिकार हैं। इसका एक कारण जानकर आपको हैरानी नहीं होनी चाहिए और वो है -घर में सबको खाना खिलाने के बाद आखिरी में बचा हुआ ठंडा खाना खाना। क्यों कि ये हर औरत का कर्त्तव्य होता है,ऐसा उसे बचपन से सिखाया जाता है। और ये बात कोई नोटिस नहीं करता कि जिसने खाना बनाया उसने ठीक से खाना खाया भी है की नहीं।ये ग्रामीण भारत में अधिकांश महिलाओं की स्थिति है।
शिक्षा से,अधिकारों से ,सम्मान से,सुरक्षा से महिलाओं को वंचित करके ९ दिन नवरात्री मानाने का क्या फायदा? महाभारत में भी द्रौपदी के साथ भरी सभा में चीरहरण इसीलिए हुआ था क्यूंकि सभा में उपस्थित ऐसे लोग जो धर्म को मानने वाले भीष्म ,कर्ण ,द्रोणाचार्य ,विदुर ये मौन रहे। और जिसकी वजह से महाभारत हुआ। और एक युग समाप्त हो गया। कलियुग में भी कुछ बदला नहीं है ,यही परिस्थिति है -ऐसी घटनाओं पर पढ़े लिखे लोग २,४ दिन सोशल मीडिया पे न्याय की मांग करते है फिर बात आई -गई हो जाती है।यही घटना थोड़ी बड़ी बन जाती है निर्भया केस जैसे तब न्यायपालिका जनता के दवाब में आकर फांसी दे देती है। पर क्या इससे ऐसी घटनाओं पर लगाम लग रहे हैं ? तो इसका जवाब आप जानते हैं। पर वही छोटी -छोटी भेदभाव की घटनाएं जो अधिकांश घरों में होती है उसको इग्नोर किया जाता है। वही लोग जो सोशल मीडिया पे न्याय की मांग कर रहे थे। इनमे से अधिकांश ऐसे होंगे जिनके खुद के घर में महिलाओं के साथ भेदभाव होता होगा।
अब तो नारीवादियों पर भी मजाक बनने लगे हैं ,इसका भी कारण है नारीवादी की विकृत और सीमित व्याख्या। #मी टू अभियान में इसका दुरूपयोग भी किया गया। क्यूंकि जो लोग नारीवाद को सही मायने में समझते हैं उनकी संख्या न के बराबर है। भारत में सशक्त महिलाएं ही बहुत कम है,जो अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाती है। अधिकांश भाग्य समझ कर जिंदगी भर अत्याचार सहती हैं। वो कहते हैं -
" स्त्री होती नहीं है बना दी जाती है। "
खैर ये मुद्दा बहुत विस्तृत है। और मेरे मन में बहुत सारे सवाल भी ?और गुस्सा भी। कभी- कभी लगता है कि जिंदगी के हर मोड़ पर महिलाओं के लिए इतनी चुनौतियाँ और पाबंदियां क्यों है ? पर फिर तभी शक्ति उपासना याद आती है (माँ दुर्गा ) - महिलाएं अधिक पीड़ा सहन कर सकती है। हर चुनौतियाँ पार कर सकती हैं। इसका मतलब है अब से कुछ भी अन्याय सहना नहीं है उसके लिए आवाज उठानी है ,अपने हक़ के लिए लड़ना है। मम्मियों को अपनी बेटियों को सलीका सिखाने के साथ -साथ अपने बेटों को भी औरतों की इज़्ज़त करना सिखाएं। लड़कों को भी घर का काम करना सिखाएं।" लड़की के लिए घर के काम करना उसकी पसंद होनी चाहिए न की उसका कर्तव्य। "
सामान्य भाषा में भेदभाव नहीं होना चाहिए। लेकिन ये इतनी आसानी से होगा नहीं। हर जगह डर -डर के जीना। कब तक ?? कभी -कभी लगता है कितनी घिनौनी और विकृत मानसिकता होगी उन लोगों की जो महिलाओं के साथ जघन्य अपराध करते हैं ? और उससे भी बड़ी बात ऐसे लोग हमारे समाज में हम लोगों में से ही हैं ? हमें सोचना होगा कि हम कैसी मानसिकताओं को फलने -फूलने दे रहे हैं?कितना भयावह है ये औरतों की जिंदगी दोयम दर्जे के साथ -साथ खिलौना बन गई है। ये मसला तो आजतक समझ नहीं आया मुझे - किसी के घर में चाहे कुछ भी हो जाये पर घर की इज़्ज़त लड़की के हाथ में होती है। भले उस घर का लड़का बलात्कार करके आये उसमें घर की इज़्ज़त नहीं जाएगी। और बोला जायेगा जवानी के जोश में गलतियां हो जाती हैं इस बात को साबित करने के लिए कुछ नेताओं के बयान ही काफी हैं। और अगर इसी घर की लड़की के साथ रेप हो जाये तो पूरा घर बदनाम हो जाता है समाज में, और इसमें भी गलती लड़की की मानी जाएगी-लड़की ने ढंग के कपड़े नहीं पहने होंगे ,उसी ने उकसाया होगा ? इस तरह के कमेंट होंगे। ये कैसा घटिया लॉजिक है।
"न मुझसे इतर जन्म है,
न मुझसे इतर इश्क़।
दोनों ही तुम्हारी दुनियां की जरुरत
फिर मैं हासिये पर क्यों ?"
पता नहीं ऐसे हालत कब ठीक होंगे या केवल कोरी कल्पना है कि हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति बेहतर होगी।ये परिस्थितियां तब तक सही नहीं होंगे जब तक पूरा समाज इस समस्या को सुलझाने का प्रयास नहीं करेगा। ये केवल महिलाओं की समस्या नहीं है ? पुरूषों को भूलना नहीं चाहिए महिलाएं हैं तभी पुरुषों का भी अस्तित्व है। अन्यथा नहीं। बल्कि समाज के उन पढ़े -लिखे बलसाली समझने वाले पुरूषों के मुँह पर तमाचा है जो वैसे तो हर बात पर महिलाओं को कमजोर बताते हैं। और अपनी ताकत का प्रयोग महिलाओं की रक्षा और सम्मान करने के बजाय ऐसे मामलों में मौन रहकर दर्शाते हैं।
अब परिवर्तन अपरिहार्य हो चला है।लोगो को अपनी मानसिकता में सबसे पहले परिवर्तन करना होगा। पढ़ा लिखा सभ्य समाज इतना असंवेदनशील और डरावना होता जा रहा कि पता नहीं आगे और क्या- क्या देखने मिलेगा ? पता नहीं जब मैं ऐसे विषय पर लिखती हूँ तो भावुक हो जाती हूँ। महिलाओं को ज्यादा कुछ नहीं चाहिए। बस हमें भी व्यक्ति मान लो। केवल सम्मान और बराबरी का हक़ यही तो चाहिए। कितना मुश्किल है देना??
" नारी केवल एक सहज व्यक्ति के रूप में अपना अस्तित्व चाहती है ,जिसके अधिकार और दायित्व अपने पुरुष साथी के समकक्ष हों ,वह पुरुष को अपना आश्रय मानकर बोझ नहीं बनना चाहती। न ही उसे साध्य मानकर अपना व्यक्तित्व एवं अस्तित्व खोना चाहती है। वह ऐसा समतामूलक और समरसतामूलक संबंध चाहती है। जिसमें पुरुष और नारी एक दूसरे को आश्रय देते हुए मिलजुलकर जीवन के संघर्षों में सहभागी हों।"
" शंकर :पुरुषा : सर्वे स्त्रियः सर्वा महेश्वरी। "- अर्धनारीश्वर
"equality isnt voluntary ,its necessary ."# breaking stereotypes.
Very good shree👌👍
जवाब देंहटाएंBahut badhiya 👍👍😊
जवाब देंहटाएंThankyou
हटाएंBahut badhiya 👍👍😊
जवाब देंहटाएं'यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। नारी एक नहीं, बल्कि दो-दो कुलों का मान बढ़ाती हैं। Buland hausale ki jarurat hai ...💯👌👌
जवाब देंहटाएंThankyou
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