पहले आकाश को छुओ। ......
पहले आकाश को छुओ। ......
हाल ही में मैंने एक खूबसूरत लघु कथा पढ़ी। ... और मुझे ये इतनी अच्छी लगी कि मैंने सोचा आपके साथ भी शेयर करूँ। ...
ज्ञान, भावना और कर्म में एक बार अपने को बड़ा बताने और प्रमाणित करने को लेकर विवाद छिड़ गया। विवाद का कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा था। फलतः इस विवाद में हाथापाई तक हो गई। इसका निपटारा करने के लिए तीनो ब्रम्हा जी के पास पहुंचे। ब्रम्हाजी ने समस्या का समाधान बताते हुए कहा -"जो भी इस आकाश को छू लेगा ,वह सबसे बड़ा होगा। "
" अक्ल ये कहती दुनिया मिलती है बाजार में ,
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिये।"
-जावेद अख्तर
अब तीनो आकाश को छूने चले। ज्ञान सूर्य तक पहुंच पाया। उससे आगे वह नहीं जा पाया। भावना ने जब छलांग लगाई तो वह आकाश के दूसरे छोर पर पहुंच गई पर नीचे नहीं आ पाई। वह वहीं पर लटक कर रह गई। अब कर्म ने सीढ़ियाँ बनानी शुरू की। दोपहर होते- होते वह थक गया।
इसके बाद ब्रम्हा ने तीनों को पास बुलाया और समझाया -"तुम्हारी पूर्णता साथ -साथ रहने में है। अकेले रहने पर आप तीनों अँधेरे में रह जायेंगे। आप तीनों में कोई भी कम अधिक होने पर व्यक्तित्व के गिरने का कारण बन सकते हैं। "
" दीपक बोलता नहीं पर उसका परिचय प्रकाश देता है ठीक उसी प्रकार आप अपने बारे में कुछ न बोलें ;अच्छे कर्म करते रहे। ... ठीक समय आने पर वही आपका परिचय देंगे।" ..... निष्काम कर्म । - भगवत गीता
कई बार प्रारंभिक जीवन क्रम अच्छा होने पर भी संवर्धन का साधन क्रम न बने रहने से आचरण भ्रष्ट हो जाता है जिससे आदमी का पतन होने लगता है। आज का समाज इसी समूह के अंतर्गत आता है।
" गाँधी और हिटलर दोनों ही ज्ञानी थे परन्तु हिटलर ने भावना के आभाव में नरसंहार किया जबकि गाँधी ने विश्व शांति का सन्देश दिया। "
केवल कर्म और ज्ञान होगा तो भावना (संवेदनशीलता,प्रेम ,करुणा आदि )के आभाव में ऐसे ज्ञान का दुष्परिणाम दुनिया को भोगना पड़ेगा। जैसे -आज के विध्वंसक तकनीकी के निर्माता (परमाणु बम ,बायो वेपन आदि ) ,पढ़े -लिखे आतंकवादी जो अपने ज्ञान का प्रयोग दहशत फैलाने में करते हैं। अपने ज्ञान का दुरूपयोग करने वाले साइबर अपराधी (हैकर ) आदि। भावना के आभाव में व्यक्ति केंद्रित समाज दिन प्रतिदिन अत्यधिक स्वार्थी होता जा रहा और वर्तमान के ज्ञान आधारित समाज में संवृध्दि के लिए प्रकृति का भी चरम स्तर पर दोहन कर रहा। जिसका परिणाम -जलवायु परिवर्तन,भूकंप,बाढ़ ,सूखा के रूप में देखा जा सकता है।
"प्रकृति मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है उसके लालच की नहीं। "
अब देखते हैं कि केवल कर्म और भावना बिना ज्ञान के मानव की क्या दुर्दशा करते हैं। एक अनपढ़ गरीब व्यक्ति ज्ञान के आभाव में अपनी स्थिति को कभी बदल नहीं पायेगा। ज्ञान के आभाव में सशक्तिकरण नहीं हो पायेगा। जैसे -हमारे अधिकांश लघु और सीमान्त किसान जो बहुत गरीब है ,अनपढ़ है वे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते और वर्तमान में भी साहूकारी के चंगुल में शोषण का शिकार बने हुए हैं जबकि धनी और पढ़े -लिखे किसान सभी योजनाओं का फायदा उठा पाते हैं जिसकी वजह से कृषि क्षेत्र में भी असमानता चरम पर है।और कृषि क्षेत्र के विकास में बाधक है।
"जब चिंतन पर काई जम जाये ,
विप्लव की भांवर थम जाए।
तो समझो पीढ़ी हार गई ,
पुरवा को पछुवा मार गई। "
अत्यधिक भावुकता हानिकारक है। क्यूंकि इससे फिर लोग आपका फायदा ज्यादा उठाएंगे। इसलिए भावनाओं को भी कंट्रोल में रखना चाहिए। इसलिए आजकल लोग इमोशनल इंटेलिजेंस (भावनात्मक बुद्दिमत्ता ) को प्राथमिकता देते हैं। जिसका अर्थ है -स्वयं की भावनाओं को समझने के साथ साथ दूसरों के भावनाओं को समझना और उसमें संतुलन बनाना।
"ज्ञान आपका है ,विज्ञान आपका है।
खुदा आपका है ,शैतान आपका है।
और इस दौर में ,
बिना आपसे लाइसेंस लिए
काम नहीं करेगी किसी की बुध्दि
बुध्दि भी एक असलहा है
बन्दूक की तरह। "
-दिनेश कुमार शुक्ल
ज्ञान ,कर्म और भावना तीनो ही अपने आप में बहुत महत्व पूर्ण है और जब व्यक्ति में तीनो का संतुलन होता है तो जिंदगी शानदार हो जाती है। और इन्ही तीनों के दम पर ही हम भविष्य की सतत और समावेशी विकास वाले विश्व का निर्माण कर पाएंगे।
ये तो हो गई मेरी समझ इस लघुकथा के आधार पर। .. आप इसके बारे में क्या सोचते हैं कमेंट में लिखिए।
जीव जगत में मानव का सर्वोपरि होना उसकी ज्ञान है । उसकी ज्ञान को विश्व कल्याण में उपयोग करना ही मानवता है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्गदर्शिका लेख
💯💯
Thankyou
हटाएंawesome :)
जवाब देंहटाएंThankyou
हटाएंसंतुलन ... बिखरती ज़िन्दगी में संयोजक बल का कार्य करेगा।।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर लेख... बहुत कुछ सीखने को मिलता है मैम आपसे।।।
Thankyou
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