हाय री बारिश.....!

 हाय री बारिश। ..... 

                    " शहर घुसेंगे नदियों में तो 
                               नदियां घुस जायेंगी  शहर में 
                       तुम रोकोगे पानी की डगर 
                                 पानी रुक जाएगा डगर में।" 
                                                        -स्वानंद किरकिरे 
               बारिश का बवाल जो बारिश के हर सीजन में मचता है।  मुंबई ,दिल्ली ,बेंगलुरु ,चेन्नई  हर शहर में नर्क का ट्रेलर नजर आ रहा है।                                                                                                         हम सोचते हैं कि बारिश दिल के तार छेड़ेगी लेकिन ये बारिश पूरे सिस्टम को ही तार -तार कर देती है। आधे घंटे की बारिश में पूरे शहर  में जाम  लग जाता है। कच्ची बस्तियां नालियों की पानी में डूबकर इटली के वेनिस की गरीब  कुरूप बहन नजर आती हैं। दो दिन बारिश न आये तो ऊपर वाले से बारिश की दुआ मांगते हैं और फिर २ घंटे बारिश हो जाये तो अपने शहर का हाल देख कर अपनी ही बारिश की दुआ के लिए ऊपरवाले से माफी मांगते है कि गजब बेज्जती है भगवान  वापिस करो बारिश। ... हर बारिश में हर शहर का यही हाल होता है  हर साल वही तस्वीरें हम बार बार टीवी पर देखते हैं मगर हालात नहीं बदलते। और क्यों नहीं बदलते क्या आपने सोचा है इसके बारे में ?... 
                              
             एक आंतकवादी हमले में कोई एक आदमी भी मारा जाता है  न तो ये खबर बनती है और बननी  भी चाहिए हम सोचते हैं कि कोई किसी को भला कैसे मार सकता है ,जो भी इसके लिए जिम्मेदार है उनको सजा मिलनी चाहिए। अब आप सोचिये 1953से 2017तक 64 सालों  में भारत में   बाढ़ से 1 लाख से ज्यादा लोग मारे गए  हैं।  हर साल बाढ़ से मरने वाला दुनिया का पांचवां आदमी भारत का होता है लेकिन हालत सुधरने के बजाय और अधिक ख़राब हो रहे हैं। पहले नदी किनारे शहरों में बाढ़ देखने मिलती थी अब मेट्रो सिटी में बाढ़ आना सामान्य बात हो गई है। 2015में चेन्नई में बाढ़ आयी ,2014 में श्रीनगर में ,2013 में मुंबई और चेन्नई दोनों में। मुंबई तो हर साल की बारिश में डूब जाती है क्यों?क्यों देश की आर्थिक राजधानी इतनी बेचारी लगती है बारिश के चार महीनो में बताइये ?
                 इसके  मौसमी फैक्टर तो है ही पर इसका एक  बड़ा कारण है भ्रष्टाचार। ... जिन खाली जगहों में पहले बारिश का पानी जाता था वहां नेताओं ने अवैध कब्जे करवा लिए। ड्रेनेज सिस्टम सुधारने के लिए करोड़ो का बजट रखा जाता है लेकिन ड्रेनेज का काम ऐसे प्राइवेट लोगो को दिया जाता है जिनसे नेताओं की सेटिंग होती है जिनके पास ड्रेनेज के न तो आधुनिक उपकरण होते हैं और न ही प्रोफेशनल ट्रेनिंग होती है। शहर में जहां जहां जंगल हुआ करते थे वहां अवैध कॉलोनियां बन गई है। नदियों का पानी ओवरफ्लो होकर जाये भी तो कहां जाये। मीठी नदियां अब गंदे नालों में बदल गई है। नदियों के आसपास इतना एन्क्रोचमेंट हो गया है कि वो नदी से नाला हो गया है। जैसे ही थोड़ी ज्यादा बारिश होती है उसमे बाढ़ आ जाती है और आस पास के इलाके डूब जाते हैं। और ये कहानी केवल मुंबई दिल्ली की नहीं लगभग सभी शहरों की है जो हर दिन बढ़ती जा रही है। 

                 सिर्फ और सिर्फ हमारे निकम्मे और नाकारा सिस्टम की वजह से साल का सबसे खूबसूरत मौसम सबसे डरावना मौसम बन गया है। नियम तो ये कहता है कि मार्च तक ही शहर के सारे नाले साफ हो जाने चाहिए लेकिन मार्च तो छोडो सालों साल ये नाले ऐसे ही रहते हैं। और इसी गन्दगी की वजह से सावन के झूले नहीं बल्कि हर जगह डेंगू के टीके नजर आते हैं। बारिश का मौसम बेसन के पकोड़े खाने की जगह कछुआछाप मच्छर अगरबत्ती जला कर सोने का बन गया है।   
                           बाढ़ ,बारिश ,ट्रैफिक जाम और pollution .. और इन सब वजहों से बढ़ता पलायन। गर्मियों में इतनी गर्मी बढ़ जाती है और ठण्ड में कड़ाके की ठण्ड  ले दे के अक्टूबर और नवंबर जो सही महीने  होते थे वो अब जहरीली हवा पराली की धुआं से सांस लेना मुश्किल  कर देती है। दुनिया के 10 सबसे पोलूटेड शहरों में 6 भारत के हैं। 
                                                                                                                                                                                       दुनिया के तमाम बेतुके मुद्दों में उलझे रहने के लिए हमारे पास समय होता है लेकिन हमारे डूबते शहर ,ख़राब हवा ,ख़राब ट्रैफिक  के बारे में सोचने का समय नहीं है। 
  सवाल ये ह न कि जब तक हम रोटी के सवाल में उलझे होते हैं तब तक हमारे लिए रोटी से बड़ा कोई और मुद्दा नहीं होता। लेकिन जिस दिन रोटी कमाना हमारे लिए मुद्दा नहीं है तब हमें ये सारी चीज़ें अखरती हैं ,गलत लगती हैं। चूँकि आज भी इस देश में ज्यादातर लोगो के लिए रोटी और सर्वाइवल ही एक मुद्दा है इसलिए चुनावों में भी वही चीज़ें मुद्दा बनती है। फ्री की स्कीमों पर चुनाव लड़े जाते हैं ,बेरोजगारी और महंगाई की बात होती है जोकि होनी भी चाहिए। लेकिन जो चीज़ें सिस्टम से जुडी है उस पर कोई ध्यान नहीं देता और वो मुद्दा ही नहीं बन पाता। भले ही हम दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हों पर तरक्की के सही मायने तभी होंगे जब आप अपने लोगों के लिए ,साफ पानी ,साफ हवा ,अच्छी सड़कें बुनियादी सुविधाएँ मुक्कमल कर पायें। 

                        "सहमी हुई सी है झोपड़ी ,
                                   बारिश के खौफ से। 
                          और महलों की आरज़ू है की ,
                                   बारिश तेज हो। "

                   एक ऐसा देश बने जहाँ मौसम दहशत नहीं बल्कि खुशियां लेकर आये। .जहाँ सावन का नाम सुनकर लोग झूमे न की बाढ़ ,भूस्खलन और ट्रैफिक का सोचकर ही घबराने लगे। थोड़ी सी बारिश पर टीवी पर एकंर बारिश का कहर चिल्लाने लगते हैं। जबकि ये बारिश का कहर नहीं बल्कि निक्कमी भ्रष्ट सरकार का कहर है जो इतने सालों में सीख नहीं पायी कि इस बारिश में उसे करना क्या है ? अगर ख़राब पानी का इलाज वाटर प्यूरीफायर में और ख़राब हवा का इलाज एयर प्यूरीफायर में और बार बार जाती हुई बिजली का इलाज पावर इन्वर्टर में ढूंढ रहे हैं और इस देश के नेता ट्रैफिक जैम में अपने लिए अलग लेन की व्यवस्था के बारे में सोचे(जैसा की कर्नाटक  के सांसद सोच रहे ) तो आप सोच सकते हैं कि ऐसे देश में आम आदमी का क्या होगा। ऐसे मुद्दों पर कोई बात नहीं करना चाहता न तो बड़े अधिकारी न नेता क्युकि  तो शहर के सुन्दर घरों में ऐश से रहते हैं इनके बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं इन्हे क्या फर्क पड़ेगा। इनसब का खामियाजा तो केवल आमआदमी को ही भुगतना है। जिनकी सुनने वाला कोई नहीं है।
               आपकी क्या राय है इस मामले में कमेंट में बताइये। ....   

टिप्पणियाँ

  1. मेरी राय है कि इस मुद्दे को आम जन मानस को समझना होगा कि ऐसी सरकार को ना चुने जो मुफ्त का lollipop दिखा के आपकी आदतें बिगाड़ दे और आप उसी आदत को लेकर जीने को मजबूर हो और सरकार आपका फायदा उठा के अपनी जेब भरने में लगे रहे।

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