जिम्मेदार कौन ?
जिम्मेदार कौन ?
"डर ने सड़कों को वीरान कर दिया ,
वक़्त ने जिंदगी को हैरान कर दिया ,
काम के बोझ से दबे हर इंसान को ,
आराम के एहसास ने परेशान कर दिया
क्या मुक्कमल हो गई थी जिंदगी हमारी ,
ये इस नए माहौल ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया ,
मिली है अगर कुछ फुरसत जिंदगी में ,
क्यों न इसमें भी कुछ नया आज़मां कर देख लें। "
- अज्ञात
लॉक डाउन ३. ० चालू है। शराब की दुकाने भी खुल गयी हैं। कैसा नजारा था हम सबने देखा ,सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ाई गई। और जगह -जगह महिलाओं के विरोध भी दिखाई दे रहे हैं। और इसका कारण है फ़्रस्टेटेड आदमी घर से बाहर नहीं जा पा रहे तो इसका परिणाम घरेलु हिंसा के बढ़ते केस के रूप में सामने आ रहे हैं। और शराब की दुकाने खुलने के बाद और परिस्थितियां विपरीत हो जाएँगी महिलाओं के लिए और ये गंभीर चिंता का विषय है। महिला आयोग की रिपोर्ट के अनुसार समस्यांए और बढ़ जाएँगी। हालाँकि राज्य सरकारों को शराब से लगभग १५-३०% राजस्व की प्राप्ति होती है। मानती हूँ अभी पैसों की अधिक आवश्यकता है।लेकिन जैसी लंबी कतारें शराब की दुकानों में लगी है बिना सोशल डिस्टेंसिंग के ,इसकी वजह से कोरोना अधिक फैलने की संभावन बढ़ जाती है। बहुत सारे लोगों के पास आज दो वक़्त का खाना नहीं है ऐसे में ये कितना सही है ?? खैर पीने वालों को कौन रोक सकता है ?
और एक सामाजिक मुद्दा है रिवर्स माइग्रेशन (प्रवासी मजदूरों )का जो शहरों से गांवों की ओर पलायन कर रहे। लॉक डाउन का सबसे अधिक बुरा प्रभाव इन मजदूरों ने ही झेला है -चाहे वो भुखमरी ,गरीबी हो या वापस अपने घर जाना हो। कई हज़ार मजदूर पैदल ही घर की ओर चले गए। और बाकियों के लिए अब बसें चलने लगी , राज्य सरकारों की बदइंतजामी सामने आई और राजनेता इसमें भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे । इसका परिणाम एक तो कोरोना के बढ़ते केस के रूप में सामने आ ही रहा। पर इसका सबसे अधिक प्रभाव शहरी उद्योग धंधों पर पड़ेगा। ये प्रवासी मजदूर एक बार घर चले गए तो इनका फिर से शहरों की ओर लौटना मुश्किल होगा। और ये संपन्न और पिछड़े दोनों राज्यों के लिए आफत साबित होगा। "एक बार फिर से कृषि पर जनसंख्या का दवाब बढ़ेगा जो कि अभी भी अधिक ही है ।जैसे इतिहास में हमने देखा है जब ब्रिटिशकाल में लघु कुटीर उद्योग के चौपट हो जाने से शहरी मजदूर गावों की ओर पलायन को मजबूर हुए थे।"
" हम मेहनतकश जग वालों से ,
जब अपना हिस्सा मांगेंगे।
जब अपना हिस्सा मांगेंगे।
एक खेत नहीं ,एक देश नहीं ,
हम सारी दुनियां मांगेंगे। "
हम सारी दुनियां मांगेंगे। "
-फैज़ अहमद फैज़
बड़े शहरों में श्रमिकों की कमी हो जाएगी तो रियल स्टेट जैसे सेक्टर को बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा तो वहीं पिछड़े राज्य जैसे -बिहार ,झारखण्ड ओडिशा ,यूपी ,राजस्थान आदि राज्यों में रोजगार की भीषण समस्यां पैदा हो जाएगी। और रोजगार के आभाव में इन राज्यों में चोरी ,डकैती ,भिक्षावृत्ति ,देहव्यापार की समस्या और बढ़ेगी। रोजगार के संकट में इन राज्यों में महिलाओं की स्थिति और कमजोर होगी क्योंकि -"भारतीय सामाजिक व्यवस्था में पूर्व में भी आर्थिक वंचनाओं के दौरान महिलाओं को प्रतिकूल परिवर्तनों का सामना करना पड़ा है। "
वैसे तो कई सारी समस्यांए हैं वैश्विक स्तर पर ,वैश्विक मंदी का दौर चल रहा। अरब देश तेल संकट से प्रभावित हैं तो भारत में भी कोरोना का साम्प्रदायिकरण किया गया ,जमातियों का मीडिया ट्रायल हुआ है। उससे मुस्लिम देश भारत से खफा हैं।यहाँ तक कि ओआईसी ने भी भारत की आलोचना की है। मैं ये नहीं कह रही कि उनकी गलती नहीं थी लेकिन इसका मतलब ये नहीं कुछ लोगों की वजह से पूरे मुस्लिम समुदाय को लक्षित कर नफरत फैलाया जाये। आप सबको याद रखना पड़ेगा कि भारत से करीब ८० लाख लोग अरब देशों में काम करते हैं और इन देशों से भारत को बड़ी मात्रा में रेमिटेंस मिलता है।सऊदी अरब और यूएई से भारत ने जो अच्छे रिश्ते बनाये हैं वो ख़राब हो सकते हैं।आपकी ऐसी हरकतों से प्यार बांटिए नफरत नहीं इसी में सबकी भलाई है। सहिष्णु बनना ही एकमात्र उपाय है।
एक और ज्वलंत मुद्दा है -निजता का संकट , जो कि मूल अधिकार है। कोरोना मरीजों की ट्रैकिंग के लिए वैश्विक स्तर पर विशेषकर पश्चिमी देशों में गूगल,और फेसबुक जैसी कंपनिया सरकारों की आंकड़ा जुटाने में मदद कर रही हैं तो वहीँ भारत में आरोग्य सेतु ऍप के प्रयोग से निजता का मुद्दा सामने आया है। वर्त्तमान में इस ऍप की आवश्यकता है परन्तु सरकार को भविष्य में निजी आंकड़ों के दुरूपयोग न करने की गारंटी देनी चाहिए और विस्तृत गाइड लाइन जारी करनी चाहिए । लॉक डाउन में साइबर अपराध की घटनाएं पहले से कई गुना बढ़ी हुई हैं। फेक न्यूज़ की भरमार हैं सोशल मीडिया में। ऐसे में हमें भी एक जागरूक नागरिक की तरह अपने इंटरनेट के अधिकार का प्रयोग करना होगा अन्यथा पालघर में अफवाहों (फेक न्यूज़ )के कारण हुए साधुओं की मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं और बढ़ेगीं। फेक न्यूज़ मत फैलाएं और जिम्मेदार नागरिक की तरह व्यवहार करें यही वर्त्तमान में सच्ची देशभक्ति होगी।
"तकनीकि और अधिकारों के बीच हमेशा से टकराव होते आया है और २१ वीं शताब्दी में तो तकनीकि विकास अपने चरम स्तर पर है ऐसे में निजता के अधिकार को राज्य की नीतियों और तकनीकि उन्नयनं दोनों की मार झेलनी पड़ेगी। "
आज का शीर्षक मैंने जिम्मेदार कौन ? रखा है। तो ऊपर लिखी समस्याओं को देखते हुए सरकार को इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार ठहराना गलत होगा। एक वायरस जो कि अदृश्य शत्रु है ,जिसका कोई इलाज नहीं है। यह एक प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदा दोनों का मिश्रित रूप नजर आता है। एक आकस्मिक घटना के लिए किसी एक को जिम्मेदार ठहराना गलत है। परिस्थितियां ही विपरीत हैं। कठिन समय है ऐसे में सबको साथ मिलकर समाधान ढूँढना चाहिए ना कि दोषारोपण करना चाहिए। सरकारों को भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इसका समाधान ढूँढना होगा। जो कि वे प्रयासरत नजर आ रही हैं। और हम सबको भी घरों में रहकर सरकार की मदद करनी होगी।
सबको एक वादा करना चाहिए कि लॉक डाउन खुलने के बाद प्रकृति की उपेक्षा नहीं करेंगे। इसी आशा के साथ। ..............
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंThankyou
हटाएंबिल्कुल, प्रकृति के साथ उसका संरक्षण करते हुआ जीना होगा। इस संकेत को समझने का सही समय भी है अन्यथा परिणाम कई अन्य सभ्यताओं जैसा हो सकता है।
जवाब देंहटाएंThankyou
हटाएंअति उत्कृष्ट..इसे जारी रखो.. :-)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.. मैं जारी रखूंगी ☺😋
हटाएंBilkul Sahi kaha aapne...
जवाब देंहटाएंThankyou
हटाएं��... 2020 हमारे सोच और नजरिया दोनों बदल कर रख देगी... प्राकृति के साथ चलो या अपना अस्तित्व खो दो.
जवाब देंहटाएं☺
हटाएंभौतिक सुख सुविधाएं अल्प कालिक होती है यदि इस दीर्घावधि हेतु बनाए रखना है तो प्रकृति से सन्तुलन बनाये रखना अनिवार्य है ...
जवाब देंहटाएंअति उत्कृष्ठ लेख 💐💐💐अच्छा विचार धारा का प्रवाह ..
निरन्तर जारी रखिये ...
Thankyou
हटाएं👍well said
जवाब देंहटाएंThankyou
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