कोरोना काल में गाँधी की प्रासंगिकता

            स्वदेशी ,स्वच्छता और सर्वोदय 



                कल ही हमारे प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में बहुत बार ,लोकल (स्वदेशी )और आत्मनिर्भरता जैसे शब्दों का प्रयोग किया। दरअसल ये वर्त्तमान की आवश्यकता बन चुकी है। आज जब अंधाधुन गति से दौड़ रहे विश्व के सभी देशों की गति पर कोरोना ने ब्रेक लगा दिया है। वैश्विक मंदी भयावह नजर आ रही है।तब अचानक फिर से गांधी प्रासंगिक नजर आते हैं। वैसे तो महात्मा गांधी हमेशा ही प्रासंगिक रहे हैं और हमेशा ही रहेंगे। वर्तमान परिस्थिति में गांधीवादी दृष्टिकोण पर आधारित स्वदेशी ,स्वच्छता और सर्वोदय की अवधारणा  व्यवस्था को प्रभावी बनाने में मददगार साबित होंगे। 

           "एक देश में बाँध संकुचित करो न इसको,
                   गांधी का कर्तव्य क्षेत्र, दिक् नहीं काल है। 
               गांधी है कल्पना जगत के अगले युग की ,
                      गांधी मानवता का अगला उद्विकास है। " 
                                                      -रामधारी सिंह दिनकर 

                 एक समय था जब स्वदेशी की अवधारणा ने भारतियों के मन में राष्ट्रवाद की भावना को तीव्र किया था ,और स्वतंत्रता संग्राम हुआ। गुलामी से आज़ादी तक के सफर में स्वदेशी राष्ट्रभावना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।(सामान्यतः स्वदेशी मतलब अपने देश से है ,जिसका व्यवाहरिक अर्थ आत्म निर्भरता से लिया जा सकता है।)चाहे वो १९०५ का बंग भंग आंदोलन हो या फिर १९२० का असहयोग आंदोलन ,इन दोनों में ही विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हुआ था और स्वदेशी अपनाने के लिए प्रेरित किया गया था। गांधी ने चरखा का उपयोग कर स्वदेशी को बढ़ावा दिया। 

                   गांधी की मृत्यु के पश्चात स्वदेशी की अवधारणा भी धूमिल होती चली गयी। आधुनिक भारत के मंदिरों के नाम पर स्वदेशी धरती पर विदेशी मशीनों ने अपना आधिपत्य जमा लिया और बड़ी -बड़ी फैक्ट्रियां स्थापित हो गयी। हालांकि ये भी आर्थिक विकास के लिए आवश्यक था परन्तु हमने अपने लघु और कुटीर उद्योगों पर ध्यान नहीं दिया फलस्वरूप देशी बाजार विदेशी वस्तुओं से पट गया। इन लघु कुटीर उद्योगों के विलुप्त होने से भारत ने अपना विनिर्माण क्षेत्र खो दिया। इसी का परिणाम है हम दिवाली में मिट्टी के दिए के बजाय चीनी बल्बों को जलाते हैं।

                  गांधी का दृष्टिकोण आदर्शवादी नहीं बल्कि व्यावहारिक आदर्शवाद पर जोर देती है। उनका दृष्टिकोण  विभिन्न प्रेरणा दायी स्रोतों और नायकों  जैसे -भगवत गीता ,जैन धर्म ,बौद्ध धर्म ,बाइबिल ,जॉन रस्किन ,टॉलस्टॉय ,गोपाल कृष्ण गोखले  से प्रभावित था।

                    गांधी पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने १९०९ में अपनी पुस्तक हिन्द स्वराज में मशीनीकरण के भयावह रूप को रेखांकित करते हुए स्वदेशी की महत्ता को उजागर किया। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सृदृढ़ करने पर जोर दिया। तथा जॉन रस्किन की पुस्तक अन  टू दिस लास्ट से सर्वोदय का सिद्धांत लिया। एवं गांधीजी के लिए स्वच्छता एक प्रमुख सामाजिक मुद्दा था। १८९५ में जब ब्रिटिश सरकार ने दक्षिण अफ्रीका में भारतियों और एशियाई  व्यापारियों के साथ उनके स्थानों को गन्दा रखने के आधार पर भेदभाव किया था ,तब से लेकर जीवन भर उन्होंने स्वच्छता पर लगातार जोर दिया।

                 सर्वोदय शब्द गाँधी द्वारा प्रतिपादित ऐसा विचार है ,जिसमें सर्वभूतहितेरता : की भारतीय कल्पना ,सुकरात की सत्य साधना और जॉन रस्किन की अंत्योदय  की अवधारणा सबकुछ सम्मिलित है। सर्वोदय मतलब -सार्वभौमिक उत्थान या सभी की  प्रगति से है। सर्वोदय ऐसी समाज की रचना चाहता है -वर्ण ,वर्ग ,धर्म ,जाति भाषा आदि के आधार पर किसी से भेदभाव न हो ,न किसी समुदाय का संहार हो और न ही बहिष्कार हो। 

                 इस महामारी ने एक अवसर दिया है हमें अपनी आदतों में सुधार करने का ,स्वदेशी के महत्व को अपनाने का ,पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होने का तथा स्वच्छता को जीवनशैली का आधार बनाने काआदि। हम सब जानते हैं -भारत गांवों में बसता है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास कृषि एवं लघु कुटीर उद्योगों के माध्यम से ही संभव है। लघु उद्योग भी तभी फलीभूत होगा जब हम स्वदेशी चीज़ों को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएंगे और अपनी जरूरतों के लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं होंगे। कहने का मतलब आत्म निर्भर बनेंगे। चाहे वो -ऊर्जा के क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग को बढ़ा कर हो अथवा जेनेरिक मेडिसिन के क्षेत्र में स्वदेशी एपीआई का उत्पादन हो। भारत को स्वदेशी विनिर्माण हब तो बनना ही होगा। हालाँकि इससे वैश्विक स्तर पर सरंक्षणवाद को बढ़ावा मिलेगा। पर कहते हैं न -जो होता है अच्छे के लिए होता है।

                 आत्म निर्भर बनना सही मायनों में स्वतंत्रता  का आधार है और  आत्मनिर्भरता को एक सदगुण मानकर प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में इसे अपनाना चाहिए। तभी सामाजिक सशक्तिकरण का सही स्वरुप निखरकर आएगा।(विशेषकर महिलाओं का आर्थिक,सामाजिक और राजनीतिक  रूप से आत्मनिर्भर होना ही उनका सशक्तिकरण सुनिश्चित कर सकती है। )


           "प्रकृति मानव की आवश्यकताओं  की पूर्ति कर  सकती है उसके लालच की नहीं। "
                                                                                                           -गांधी 
                                                          
                कहते हैं -आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है। और परिवर्तन प्रकृति की नियति है। इसलिए ये जो स्वदेशीकरण  होगा आने वाले दिनों में वो अच्छा होगा।कई स्वदेशी नवाचारों से विनिर्माण को बल मिलेगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सृदृढ़ होने से कृषि मजदूरों का पलायन कम होगा। शहरों में अत्यधिक जनसंख्या से जो अव्यवस्था है वो कम होगी। आदि। सोचने वाली बात है - शहरों को आधुनकि विकास का इंजन माना जाता रहा है परन्तु जब कोरोना आया तब शहरों की सच्चाई सामने आ गयी और सबको अब ग्रामीण भारत की उपयोगिता समझ आ रही है।

           " हमें  अब प्रकृति के साथ प्रकृति की ओर चलना चाहिए।" 

              ध्यातव्य है कि -पूरा विश्वा कोरोना महामारी से लड़ रहा है और इसे पर्यावरण संरक्षण ,स्वच्छता में कमी और उपभोक्तावादी जीवनशैली  का परिणाम माना जा सकता है। गांधीवादी दृष्टिकोण ने हमेशा ही पर्यावरण संरक्षण ,स्वच्छता ,जरुरत के अनुसार ही उपयोग ,आत्म निर्भरता तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर जोर  दिया है। इस संकट काल में गांधी के विचारों की महत्ता एक बार फिर स्थापित होती है।
                  



टिप्पणियाँ

  1. गांधीवादी दृष्टिकोण ने हमेशा ही पर्यावरण संरक्षण ,स्वच्छता ,जरुरत के अनुसार ही उपयोग ,आत्म निर्भरता तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर जोर दिया है। इस संकट काल में गांधी के विचारों की महत्ता एक बार फिर स्थापित होती है।
    पर वर्तमान मे ऐसा नहीं है हमारे नेता पूंजीपतियों, उद्योगपतियों के गुलाम हो चुके हैं, करोना लाकडाउन को भी लगाना है कैसे लगाना है कब से कब तक लगाना है ये सब वे ही निर्धारित करते हैं।

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    1. आप सही कह रहे हैं सर, लेकिन अगर आत्मनिर्भरता लाना होगा देश में तो गांधी की राह पर चलना होगा। जोकि वर्तमान की परिस्थितियों में बहुत कठिन प्रतीत होता है। पर मोदी सरकार के कल के भाषण से तो लगता है कि वो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकास की राह पर ले जायेंगे। अब ये कितना सफल होगा ये तो वक़्त ही बताएगा।

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  2. आवश्यकता पर लालच को हावी नहीं होने देना ही वर्तमान समय की मांग है .
    बहुत सुन्दर अनुभव का प्रवाह ...
    👏👏👏

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  3. आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है। Keep it up 👍

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