छोटी- छोटी सफलतायें
छोटे छोटे लक्ष्य/ छोटी छोटी सफलताएँ छोटे और लक्ष्य का संयोग हमेशा ही विरोधाभास पूर्ण लगता रहा है ,दरअसल किसी भी लक्ष्य का निर्धारण करना ही अपने आप में एक बड़ा काम है ,क्यों की यह व्यक्ति की संकल्पशक्ति का सूचक है। एक कहानी जो मैंने अपने नानाजी से सुनी थी आपको सुनाती हूँ- शिवाजी उनदिनों मुगलों के विरूद्ध छापामार युद्ध लड़ रहे थे। रात को थके मांदे एक वनवासी बुजुर्ग महिला की झोपड़ी में आ पहुंचे। घर में कोदों थी। सो ,उसने प्रेमपूर्वक भात पकाया और पत्तल पर शिवाजी के सामने परोस दिया। शिवाजी को बहुत भूख लगी थी। सपाट से भात खाने की आतुरता में उँगलियाँ जला बैठे। बुजुर्ग महिला बोली -"सिपाही ,तेरी शक्ल तो शिवाजी जैसी लगती है और ये भी लगता है कि तू उसी की तरह मूर्ख है। " यह सुनकर शिवाजी स्तब्ध रह गए। बोले- "शिवाजी की मूर्खता बताओ और साथ में मेरी भी। " बुजुर्ग महिला बोली -" तूने किनारे -किनारे से थोड़ी -थोड़ी ठंडी कोदों खाने के बजाय भात के बीच में हाथ मारा और उँगलियाँ जला लीं