समाजिक स्वतंत्रता..
"जिस स्वतंत्रता में गलती कर पाने का अधिकार शामिल नहीं हो उस स्वतंत्रता का कोई मूल्य नहीं है।"-महात्मा गाँधी
१५ अगस्त आने वाला है ,भारत को आजाद हुए ७२ वर्ष हो चुके हैं। ... इन ७२ वर्षों में देश ने बहुत तरक्की की है ,हम विश्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं और आने वाले ५ वर्षो में ५ ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने की क्षमता रखतें हैं। परन्तु क्या हम सच में स्वतंत्र है? या ये केवल कानूनी स्वतंत्रता है ? क्या हम सामाजिक रूप से स्वतंत्र हैं?
"जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते ,कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वह आपके किसी काम के नहीं। " -भीमराव अम्बेडकर
विशेषकर महिलओं की स्थिति में आज़ादी के बाद सुधार हुआ है परन्तु उतना नहीं जितना की अपेक्षित था ,आज भी महिलाओं की स्थिति दयनीय है। जीवन के हर क्षेत्र में उनकी उपेक्षा होती है। आये दिन खबरों में घरेलु हिंसा,रेप की घटनाएं देखने मिलती है.महिलाये कहीं स्वतंत्र होकर जा नहीं सकती ,उन्हें डर लगा रहता है कि अगर उनके साथ कुछ हो गया तो उसके परिवार की इज़्ज़त चली जाएगी। हर वक़्त डर के साये में जीना कि कहीं मुझसे कोई गलती न हो जाये ? लोग क्या कहेंगे ? समाज क्या कहेगा? एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को विश्व का रेप कैपिटल का दर्जा मिला है। और एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक विशेषकर मेट्रो शहरों में कामकाजी महिलाएं डर के साये काम करने की वजह से महिलओं की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है।
"तन के भूगोल से परे किसी स्त्री के ,
मन की गाठें खोलकर
कभी पढ़ा है तुमने ,
उसके भीतर का खौलता इतिहास। "
-कवियत्री निर्मला
क्यों नैतिक होने की जिम्मेदारी केवल महिलाओं की है ?अगर कोई लड़की चाहे भी न कि सारे बंधनो को तोड़ कर आज़ाद हो जाऊं ,एक चिड़िया की तरह अपने पंख फैलाकर पूरा आसमान देखूं ,तो उसका नारी स्वाभाव उसे इतना स्वार्थी होने नहीं देता ? केवल कुछेक ही उदहारण आपको मिलेंगे जिसमे महिलाएं अपने मन की बात को तवज्जो देती है। अन्यथा समाज की नैतिकताओं के जाल में महिलाएं इस कदर उलझी हुई हैं कि चाह के भी बाहर नहीं आ पा रही।
"न मुझसे इतर जन्म है
न मुझसे इतर इश्क़
दोनों ही तुम्हारी दुनिया की जरुरत
फिर मैं हासिये पर क्यों ?"
-अज्ञात
महिला सशक्तिकरण के वर्तमान में कई उदहारण मिलेंगे। परन्तु महिलाओं की आबादी के हिसाब से ये बहुत कम है उदहारण के तौर पर -अगर कोई ग्रामीण महिला जिसके २ बच्चे हो और उसकी उम्र महज २६ वर्ष, क्यों की विवाह ही १८ वर्ष में हो गया था,और वो विधवा हो गई,या परित्यक्ता हो। तो इस परिस्थिति में उसके पास क्या विकल्प बचता है? विधवा पुनर्विवाह अधिनियम भले ही १८५६ में ही बन गया था पर वास्तविकता में कितने (विधवा /तलाकशुदा ) महिलाओं का पुनर्विवाह हो पाता है ? तीन तलाक़ विधेयक पारित होने के बाद मुस्लिम महिलाएं खुश दिखाई दे रही हैं न्यूज़ चेनलों में। ये एक सराहनीय कदम है परन्तु इस नियम को धरातल पर लागु होने में दशक बीत जायेंगे।
" स्वतंत्रता कभी भी अत्याचारी द्वारा अपनी इच्छा से नहीं दी जाती बल्कि ये पीड़ित व्यक्ति द्वारा अनिवार्य रूप से मांगी जाती है। " -मार्टिन लूथर किंग
मैंने केवल एक आयाम लिखा नारी को लेकर ,इस टॉपिक के कई आयाम बन सकते है। स्वतंत्रता एक व्यापक मुद्दा है और इसे एक पेज पर समेटना मेरे बस में नहीं है।इसमें,दलित विमर्श ,जनजातियों की स्वतंत्रता ,प्रकृति , गरीबी, कुपोषण, आतंक वाद ,आदि कई मुद्दों को भी जोड़ा जा सकता है।
" मानव एक सामाजिक प्राणी है जो स्वतंत्रता चाहते हुए भी अपने समस्त बंधनो से प्यार करता है और स्वतंत्र होते हुए भी सामाजिक बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। "
Bhut sundar 👌
जवाब देंहटाएंThanku
हटाएंBilkul sahi kaha .....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंVery nice... keep it up 👍👏
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