परिवर्तन

                         परिवर्तन/बदलाव 

                परिवर्तन प्रकृति का नियम है जीवन का सत्य है। समय के साथ सारी चीजें परिवर्तित हो जाती है जैसे आदिमानव से सभ्य मानव तक का सफर ,ये भी तो एक बदलाव ही है। ठहराव और जड़ता मृत्यु है। जिस प्रकार ठहरा  हुआ पानी प्रदूषित हो जाता है ,उसी प्रकार यथास्थिति से मनुष्य प्रगति नहीं कर सकता है। उसे हमेशा समय के साथ स्वयं में बदलाव/ परिवर्तन करते रहना चाहिए। अर्थात अपडेटेड रहना चाहिए। नहीं तो हम  पीछे रह जायेंगे इस तेजी से बदलती दुनिया में।





                "हम परिवर्तन तो चाहते हैं पर इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं ,हमें हर सुविधा चाहिए पर उसकी प्राप्ति के लिए उठाये जाने वाले कष्ट हमें स्वीकार नहीं। "

                   हम सफाई तब करेंगे जब सरकार कहेगी ,अन्यथा सार्वजनिक स्थानों पर बेधड़क गन्दगी फैलाएंगे।कहीं भी पान खाकर थूकना भी लोग अपना  अधिकार समझते हैं।  हम अपने गावों में शौचालय बनवाने के लिए भी वर्षों सरकार का इंतज़ार करते हैं। हमें अपनी जान भी प्यारी नहीं है इसलिए हेलमेट भी ट्रैफिक पुलिस को देखने के बाद ही लगाते हैं और सीट बेल्ट भी तभी अटका लेते हैं। नार्थईस्ट के अपने लोगों के ऊपर  ही नस्लभेदी कम्मेंट करते हैं और सोशल मीडिया में बिना बात के लोगों को ट्रोल करते हैं। बिना सोचे समझे व्हाट्सउप पे फेक न्यूज़ फॉरवर्ड करते हैं। और अब तो  कबीर सिंह देखने के बाद लोग शान  से नशा भी करते हैं (पहले भी करते थे ,इस मूवी के बाद थोड़ी और प्रेरणा मिली है लोगो को। ) हम प्लास्टिक थैली में पर्यावरण  की किताब खरीद के लेके आते हैं और जलवायु परिवर्तन  पर चर्चा  करते हैं।  ऐसे बहुत सारे उदहारण मिलेंगे अभी मुझे इतने ही याद आ रहे हैं। 


                 
                    हर किसी को लगता है ये बदलना चाहिए ,वो बदलना चाहिए पर इस बदलाव में हमारी क्या भूमिका है? हम २१ वीं सदी में रहते हैं अभी भी हमारे देश में कई सारी सामाजिक समस्याएं  हैं जैसे -स्वच्छता की समस्या,दहेज़ प्रथा , नस्लवाद, भेदभाव ,जात -पात ,धार्मिक उन्माद /कट्टरता , भीड़ हत्या ,फेक न्यूज़ कन्या भ्रूण हत्या ,प्रकृति सरंक्षण ,महिला सुरक्षा  , सामाजिक नैतिकता का पतन ,असहिष्णुता , भ्रष्टाचार गरीबी ,कुपोषण आदि। 


                    कैसी विडम्बना है हमारे समाज की आजकल सबलोग सोशल मीडिया में बड़ी- बड़ी बातें  करते हैं   नैतिक उपदेश देने वाले सन्देश भेजते हैं , देश -विदेश की ख़बरों से लेकर महिला सशक्तिकरण के बारे  में ,सरकार की नीतियों  के बारे  में और भी सब  तरह की  चर्चा  करते हैं। लेकिन व्यक्तिगत जीवन में जब खुद अमल करने की बारी आती है तो दहेज़ प्रथा का विरोध करने वाले  लोग भी उपहार समझ कर शान से दहेज़ स्वीकार करते हैं ये एक ही इंसान की विरोधी तस्वीरें हैं जो सामाजिक और पारिवारिक दवाब  के सामने   झुक जाना बेहतर समझते हैं। हमारे अधिकतर पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के उद्धार  के  लिए  सारे नियम पुरुष बनाते हैं और उनको महिला सशक्तिकरण से मतलब  ही नहीं होता। जबकि महिलाएं समाज का आधा हिस्सा हैं महिलाओं के  लिए सामाजिक नियम महिलाओं द्वारा  ही बनाया जाना चाहिए  लेकिन  उनका नेतृत्व केवल नाम मात्र  है। और गावों में महिला सरपंचों  के पास कितनी शक्ति होती है  वो तो हम सब जानते हैं।  सरपंच महिला  होती है लेकिन उनके काम  पुरुष देखते हैं अधिकांश मामलों में।  


              "हम स्वप्न तो खूब देखते हैं पर उन्हें साकार करने के लिए दिव्य शक्तियों से चमत्कार की उम्मीद पाल लेते हैं। हमारी पोशाक आधुनिक हो चुकी है ,रहन -सहन  आधुनिक हो चुकी है। शिक्षा, स्वास्थ के मानक मजबूत  हैं ,हम मंगल और चाँद तक पहुँच चुके हैं विशेष रूप से  हम तरक्की कर रहे हैं। परन्तु केवल एक चीज़ नहीं बदली  और वो है हमारी मानसिकता। आज भी  लगभग वैसी ही  सामाजिक समस्यांए हैं जैसे कबीर और तुलसी के  काल में थी (जात -पात ,भेदभाव ,धार्मिक आडम्बर ,दिखावा  आदि  )इसलिए तो  आज  भी ये संत  प्रासंगिक लगते हैं उनकी प्रगतिशीलता के कारण। जबकि आधुनकि होते हुए भी हम  प्रगतिशील नहीं  हैं।क्यों की हमारी सोच प्रगतिशील नहीं है।  

                  "हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए 
                      इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए 
                        सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं 
                            मेरी कोशिश है कि सूरत बदलनी चाहिए। "
                                                                                                                                                          -दुष्यंत कुमार 
                                                                  
 
                " नदी की गति उसकी धारा में है ,हवा का महत्व उसके बहने  में है ,सूरज की उपलब्धि उसके प्रकाश में है तथा सागर की विशेषता उसकी गंभीरता में है ,ये सब इनके स्वाभाविक प्राकृतिक गुण हैं। सृष्टि की निरंतरता का कारण भी यही है। जैसे ही ये अपने प्राकृतिक गुणों से विमुख होते हैं कि उथल पुथल  मचनी  शुरू हो  जाती है। स्वाभाविक गुणों में परिवर्तन अधिकांशतः विनाश  का सूचक होता है। 






                  नदी की धारा को जब अवरुद्ध किया जाता है तो बाढ़ आती है हवा के बहाव को जब क्षीण किया जाता है तब मौत आती है ,सूरज के प्रकाश में रूकावट होने से ग्रहण लगता है तथा जब सागर चंचल होता है तब सुनामी आती है ये सारी घटनाएं इनके प्राकृतिक गुणों में बाधा  उत्त्पन्न होने के कारण ही होती हैं। कहने का मतलब है कि सृष्टि की निरंतरता के लिए प्राकृतिक गुणों का पालन आवश्यक है और इसके विपरीत आचरण विनाशकारी परिणाम लाता  है। ईश्वर प्रदत्त इस सृष्टि में सबकी भूमिका तय है और  उसी के अनुरूप उसका व्यवहार सृष्टि के संतुलन को बनाये रखता है।  

                 लेकिन इनसब में एक ही बात समान है और वो है निरंतरता / गतिशीलता /परिवर्तन। नदी, हवा ,पानी सब गतिशील हैं। निरतंर अपना मार्ग/दिशा  परिवर्तित करती रहती हैं  और हमें परिवर्तन करने की प्रेरणा  देती हैं। "अपनी समस्याओं का समाधान  आप  स्वयं  हैं। जैसे -अपनी जीवन शैली  में बदलाव लाकर आप स्वास्थ्य समस्याओं  से छुटकारा  पा सकते हैं। अपनी रणनीतिक विफलता  का विश्लेषण कर आप परीक्षा में पास हो सकते हैं। आदि। 

                 "अपनी आदतों में परिवर्तन कर  हम अपना नया अपडेटेड वर्जन बना सकते हैं ताकि जीवन की समस्या रुपी वायरस का समय -समय पर समाधान होता रहे।" 


                   नए परिवर्तनों  के लिए सहज रहिये। स्वयं  को भी समयानुसार बदलने की कोशिश करें ताकि बदलते ज़माने  के साथ कदम मिला सकें। और  मन एवं  विचारों  से  भी आधुनकि बन सकें। अपने आसपास  होने वाले सकारात्मक बदलावों  में भागीदार बनिए।  ..... 


 

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