जिज्ञासा

                      जिज्ञासा /कौतुहल 



                    "नभ के तारे देख कर एक दिन बबलू बोला ,
                     अंतरिक्ष की सैर करें माँ ले आ उड़नखटोला। 
                      कितने प्यारे लगते हैं ये आसमान के तारे,
                       कौतुहल पैदा करते है मन में रोज हमारे। "
                                                                -अज्ञात 

            ऊपर लिखी पंक्तियाँ बचपन की याद दिलाती है कैसे हम चाँद तारों को देख के कुछ भी अनुमान लगाते थे ,खाना खिलाने के लिए मम्मी चंदा मामा के हिस्से का लड्डू बना के खाना खिलाती थी। ये तो हमारी जिज्ञासा थी बचपन में लगता था सबकुछ जल्दी से सीख जाएँ ,जल्दी बड़े हो जाएँ। (बड़े हुए तो चाँद का कुछ और मतलब पता चला ,फिल्मी गानों में चाँद का जिक्र अक्सर ही होता है। कितनी अजीब बात है जिस चाँद से  प्रेमी अपनी  प्रेमिका के चेहरे की तुलना कर रहा होता है ,५ वर्ष बाद उसी चाँद को अपने बच्चे का मामा  बना देती है वो।) 
                "हनुमान चालीसा में एक प्रसंग है की कैसे हनुमान  जी ने सूर्य को फल समझ के निगल  लिया था ,  ये उनकी बचपन की नादानी ही थी।"  

             मेरे चाचा का बेटा नवम्बर में २ वर्ष का होगा,बहुत बातूनी है कार्टून है पूरा ,उसका  एक किस्सा सुनाती हूँ- हमारे घर के पीछे बहुत सारे कबूतर रहने लगे है आजकल उनको देखकर वो चाचा से कहता   है -"पापा जाओ न इन सबको पकड़ के मेरे लिए लाओ मैं इनको झोले में भर के घर ले के जाऊंगा।" २ साल का बच्चा पता नहीं क्या दिमाग में चल रहा होगा उसके। कभी -कभी बच्चे आश्चर्य में डाल  देते है अपनी हरकतों से। ये उनकी जिज्ञासा ही तो होती है। 
     
              अपनी जिज्ञासा के दम पर ही आज मानव अंतरिक्ष की सैर सच में कर रहा है। हम चाँद तक पहुँच चुके हैं। भविष्य में  अंतरिक्ष पर्यटन का सपना भी पूरा होगा। वो कहते हैं न -

                धरती पर सबसे सर्वश्रेष्ठ रचना मानव है और इसकी वजह है - मानव की सोचने समझने की शक्ति ,उसका बुध्दि बल ,उसकी जिज्ञासा। और इसी की बदौलत वह असंभव को भी संभव बना सकता है मानव की जिज्ञासा का ही परिणाम है कि आदिमानव से वर्त्तमान का सभ्य मानव तक की यात्रा हो चुकी है। नई -नई खोज करके मानव ने  सभ्यता को श्रेष्ठतम ऊचाँइयों तक पंहुचा दिया। हालांकि अब जिज्ञासा के साथ -साथ मानव का लालच भी बढ़ता जा रहा है और वो प्रकृति की उपेक्षा इस कदर कर रहा है कि अब प्रकृति का भी सब्र का बाँध टूट चुकाहै और इसका परिणाम आजकल बाढ़ ,भूस्खलन  के रूप में देखने मिल रहा है।  

                परमाणु बम भी तो मानव की जिज्ञासा का  ही परिणाम है ,जिसकी आये दिन धमकी मिलती रहती है। वर्तमान में पूरा विश्व बारूद के ढेर में बैठा है। किसी ने भी गलती से भी आग लगा दी तो एक झटके में सब खत्म हो जायेगा। उत्तर कोरिया और पकिस्तान जैसे देशों का कोई  भरोषा नहीं है। जैसी विश्व राजनीति की उथलपुथल है उसको देख कर लगता है सब सरफिरे हैं वर्तमान में।  खैर हम बुध्दिबल  पे बात कर रहे थे  तो उसे जारी रखते हैं - 

                " सद्बुध्दि मानव को गांधी ,टैगोर,कलाम  बना सकती है तो भ्रष्ट बुध्दि मानव को हिटलर ,आतंकवादी लादेन ,या हाफिज सईद  बना सकती है। "हालांकि हर इंसान में अच्छाई और बुराई दोनों होती है अंतर बस मात्रा /अनुपात का है अगर अच्छाई अधिक है तो अच्छे इंसान बनेंगे और बुराई अधिक है तो बुरे। 

                  "हर आदमी में है १०-२० आदमी जिसको भी देखना हो तो बार -बार देखो।"
                                             -निदा फ़ाज़ली 

              मतलब हर मनुष्य के अंदर राम और रावण दोनों के गुण होते हैं। बात सिर्फ इतनी है की वो किस गुण को ज्यादा अपनाता हैं। व्यक्ति कितना भी सुलझा हुआ क्यों न हो उसके मन में नैतिक -अनैतिक विचलन होते  ही हैं। मानव गलतियों का पुतला है वो गलतियां करेगा ही स्वाभाविक है। 
                         "मैं सोचता हूँ इसलिए मैं हूँ।" 
                                                                -डेकार्ट 
            
              जिज्ञासा ही मानव की  सीखने की क्षमता बढ़ाता है। जिज्ञासा के बिना मानव का अस्तित्व ही नहीं  होगा।इसलिए जिज्ञासु बने रहिये  ,हर दिन कुछ नया सीखिए ,कुछ नया करिये। सीखने के लिए  बहुत  कुछ है। अपने दिलोदिमाग की खिड़कियों को खोलिये और नए विचारों का स्वागत करिये। 
                     

                

 



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