जीवन दर्शन

                       तीन मार्गदर्शक सिद्धांत 


           ये तीन ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत हैं ,जिससे मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत अधिक प्रभावित हूँ। और ये तीन सिद्धांत सार्वभौमिक हैं। 

(१)   गीता का निष्काम कर्मयोग 

         " कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचना। 
          मा कर्मफलहेतुर्भूः मा ते संगोत्सव कर्मणि।। "

         सामान्य भाषा में निष्काम कर्मयोग के सिद्धांत को इस रूप में समझाया जाता है कि -
         " कर्म करते रहो फल की इच्छा मत करो। "

           इस सिद्धांत का शाब्दिक अभिप्राय ही ग्रहण करने पर यह अक्सर प्रश्न उठता है कि -

           जब फल की इच्छा ही नहीं है तो कर्म करने के लिए प्रेरणा /मोटिवेशन कहाँ से लायें ?बिना लक्ष्य के जीवन अधूरा है ?बिना मोटिवेशन के लक्ष्य पूरे नहीं हो सकते ? तो फिर?

          'निष्काम कर्मयोग ' फल की इच्छा रखने पर प्रतिबन्ध नहीं लगाता बल्कि यह तो फल की प्राप्ति के लिए बिना आसक्त (अटैच )हुए कर्म में लगे रहने की प्रेरणा देता है। 
           
          'धर्मवीर भारती' ने अंधायुग गीतिनाट्य में निष्काम कर्मयोग की शक्ति को इस प्रकार व्यक्त किया है - 

            " जब कोई भी मानव अनासक्त होकर चुनौती देता है इतिहास को, उस दिन नक्षत्रों की दिशा बदल जाती है।  नियति नहीं है पूर्व निर्धारित , उसको हर क्षण मानव बनाता है मिटाता है। "


(२ )  जैन धर्म का अनेकांतवाद अथवा स्यादवाद (नॉन -अब्सोल्यूटनेस )

                 इस अनूठे सिद्धांत का अभिप्राय -
                " सत्य को सभी लोग अपने भिन्न भिन्न दृष्टिकोण से देखते हैं। परन्तु  कोई भी नजरिया न तो पूरी तरह सही है और न ही पूरी तरह गलत। "

                 आपको एक हाथी और ७ अंधों की कहानी याद होगी तो - सड़क पर बैठे हाथी के विभिन्न अंगों को स्पर्श कर सात अंधे हाथी का स्वरुप वैसा ही अलग-अलग समझते हैं। जैसे कोई झाड़ू समझता है ,तो कोई पंखा। 

                  अनेकांतवाद सिखाता है कि सिर्फ अपने ही विचारों को सही मानना और दूसरे के विचारों को सिरे से नकारने का आग्रह स्वयं में गलत है। दूसरों के विचारों का सम्मान करना और  स्वीकार्यता सिखाता है। वर्तमान में लोग असहिष्णुता (इन्टोलेरेंस )की बात करते है उसका मतलब भी इसी सिद्धांत से समझ सकते हैं। भारत विविधताओं का देश है यहाँ विभिन्न  धर्म ,जाति के लोग रहते हैं और सदियों से रहते आ रहे हैं इसका मतलब ही है कि भारत में लोग सहिष्णु (टॉलरेंस) है। एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते है ,दूसरों के विचारों को महत्व देते हैं। हालांकि  हाल की कुछ घटनाओं से ऐसा लग रहा था कि भारत में असहिष्णुता बढ़ रही है। उदहारण के तौर पर- मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं के कारण। परन्तु भारत बहुत बड़ा देश है और अपने धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्र के कारण विश्व प्रसिद्ध है और अभी तक अपने अनेकता में एकता को बनाकर रखा है ये काबिले तारीफ है ,और जब एक साथ बहुत सारे बर्तन रखे होते हैं तो वे आवाज़ करते ही हैं। इसलिए इस असहिष्णुता का भी समाधान हो जायेगा। अगर हर कोई स्यादवाद के  सिद्धांत  का अनुकरण करे और अपने अतिवादी रवैये से बाहर निकले तो ऐसी समस्या आएगी ही नहीं। और ये सिद्धांत व्यक्तिगत जीवन में भी बहुत उपयोगी है।इससे रिश्ते मजबूत  हो जाते हैं। भारतीय समाज में महिलाओं के विचारों की हमेशा से ही उपेक्षा हुई है।ऐसा नहीं होना चाहिए।इसीलिए अपने विचारों के   साथ - साथ  दूसरों के विचारों को भी उतना ही  महत्व दीजिये चाहे वो विचार आपके विरोध में ही क्यों  न हो ,और ऐसा करने से आपका नजरिया बदल जायेगा सामने वाले के  लिए।और सोचने का एक नया दृष्टिकोण मिलेगा। क्या है ना कि वर्तमान में हर कोई अपनी बात सुनाना  चाहता है पर दूसरों की बात सुनना नहीं चाहता। 

(३ ) बौद्ध दर्शन का मध्यम मार्ग या (गोल्डन मीन )

                  गौतम बुद्ध दोनों अतियों ( एक्सट्रीम्स )की उपेक्षा कर माध्यम मार्ग का रास्ता बताते हैं। मध्यम मार्ग का मतलब शांतिपूर्ण समझौता। जैसा आजकल लोक अदालतें करती है।  हर तरह के विवादों के सरल और मैत्रीपूर्ण समाधान की राह सुझाता है मध्यम मार्ग। कई बार नैतिक दुविधाओं का समाधान भी इससे हो  जाता है। 


                    ये तीनो दर्शनों का मुझपर बहुत प्रभाव है इसलिए मैंने आप लोगों के साथ शेयर किया। मुझे कमेंट में बताइये आपको ये ब्लॉग कैसा लगा।   
  



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