क्रोध (गुस्सा)

                                  क्रोध 




            क्रोध ताश का पत्ता है।लेकिन यह पत्ता सामान्य न होकर तुरुप का इक्का होता है। जिसका इस्तेमाल कभी- कभी ही करना चाहिए और वो भी तब जब अन्य  कोई  चारा न हो। "क्यों की आग अगर रौशनी दे सकती है तो जला भी सकती है"

             गुस्सा रिश्ते ख़राब कर देती है।  कड़वाहट ले आती है संबंधों  में ,गुस्से में हम कुछ भी बोलते हैं और हमे पता नहीं चलता की हमने सामने वाले को दुःख पहुँचाया। ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। ३ वर्ष पहले तक मुझे बहुत गुस्सा आता था पर अब मैंने काफी हद तक नियंत्रण कर लिया। और ये सब की वजह थी कि  मैंने  परिवार में किसी अपने को दुःख पहुंचाया। गुस्से में व्यक्तिगत कंमेंट कर दिया ,पर बाद में माफ़ी भी मांग ली थी। परन्तु नुकसान हो चुका  था।  आज भी गिल्ट है उस बात का। मम्मी से  बहुत डांट पड़ी ,उन्होंने बोला - तू बहुत बत्तमीज़ हो रही है।  तब से मैंने सोच लिया कि जब भी गुस्सा आये मैं  किसी से बात ही नहीं करूंगी।अपना ध्यान बंटा दूंगी ,जब तक गुस्सा शांत नहीं हो जाता तब तक मौन व्रत रखूंगी। और यकीन मानो ये तरीका कारगर है। पिछले ३ वर्ष से मैंने किसी को गुस्से की वजह से दुःख नहीं  पहुँचाया।  
            

            क्रोध और कला की कुंजी !

              माइकल एंजेलो पन्द्रहवीं  शताब्दी में इटली का एक महान कलाकार था ,जिसने मात्र २७ की उम्र में 'डेविड ' नाम की प्रतिमा बना कर दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया था। इस कलाकार के कर्म का स्त्रोत  था -उसका क्रोध। 
 माइकल एंजेल ने लिखा है कि -जब भी मुझे क्रोध आता है ,मैं छैनी  उठाकर अपनी मूर्ति को आकार देने लगता हूँ। और मैं हैरान रह जाता हूँ की मेरा क्रोध  न जाने कहा चले गया। 


               माचिस  की   एक डिब्बी में ५० तीली है मानलो ,सूखे घास की ढेरी को या पेट्रोल के कुंए को आग की लपटों में  बदल देने के लिए पचास तीली भी मिलकर वही काम करेंगी ,जो अकेली तीली कर सकती है। हम किसी दुकान पर जाकर ये नहीं कहते कि -" हमें घर फूंकने  की माचिस चाहिए  या आरती का दीपक जलाने वाली माचिस चाहिए।  माचिस एक ही होती है यह हमारे ऊपर है की हम उससे घर फूंकते हैं या दीपक जलाते हैं। "

                क्रोध को चुनौती बना लें। 

                हर आदमी की एक इमेज बन जाती है फिर उसका मूल्यांकन और उसका प्रभाव इमेज के अनुसार ही होने लगता है। क्रोध को याद रखने का अर्थ यह भी नहीं की हम अपने अंदर उसके लिए प्रतिशोध पाल लें जिसने हमें क्रोध दिलाया था या जो घटना हमारे क्रोध का कारण  बनी थी। यदि हम प्रतिशोध की भावना से भरकर किसी को बर्बाद करने में लग जाते हैं और इसमें सफल भी हो जाते हैं तो सोचकर देखें की हमे इससे मिलता क्या है सिवाय इसके की दिल की आग थोड़ी ठंडी हो जाती है। 
                उदहारण -महाभारत में यही होता है प्रतिशोध  जिसकी परिणति सबकी बर्बादी में होती है यहाँ  तक कि  पांडव भी जीतने  के बाद खुश नहीं होते। ( राष्ट्रकवि दिनकर की कुरुक्षेत्र  रचना में )युधिष्ठिर का कथन - "एक विखंडित विजय" यह एक ऐसी जीत है जो हार  से भी कहीं अधिक बुरी है।  

                वर्तमान उदाहरणों को देखें तो ,आये दिन खबरों में रेप की घटना,एसिड अटैक,मर्डर,घरेलु हिंसा   की घटना होती है इसके पीछे भी क्रोध और बदले की  भावना है ,लोग गुस्से में क्या क्या कर जाते है ,पर इसका परिणाम भुगतने वाली एसिड अटैक पीड़ित महिला  से पूछो की उसने क्या खोया है ऐसे बहुत सारे उदहारण आजकल  देखने मिलते हैं। 

       
              " मनुष्य और मोटर कार अंदरूनी विस्फोटों के श्रृंखला के कारण  प्रगति करते हैं",हमारे अंदर की जड़ता टूटे और हमारी सोई हुई ऊर्जा गतिशील  हो सके इसके लिए किसी न किसी धक्के की जरुरत होती है तथा क्रोध एक ऐसे धक्के का ,एक जबरदस्त धक्के का काम कर सकता है। बशर्ते की आप  चाहें ,हालाकिं लोग चाहते  तो है पर सही तरीका अपना नहीं पाते। 

                प्रतिशोध लेने का एक रचनात्मक तरीका भी  होता है और वो तरीका ये है -उससे भी आगे निकल जाना जिससे प्रतिशोध लेना है क्रोध को एक प्रेरक शक्ति बना लें यही इसका अचूक उपाय है। " बदला नहीं बदलाव की भावना रखें ,गुस्से  को खुद पे हावी मत होने दें ,ये सिर्फ नुकसान ही कराता है। 

टिप्पणियाँ

  1. क्रोध बहुत कुछ सीखा जाता हैं और इसपे संयम रखना जरूरी है मनुष्य को.... क्रोध को जो मनुष्य पी जाता है वही आगे बढ़ते है..☺👍

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  2. बेहतरीन रचना है पूजा..पढ़कर महसूस हो रहा है कि तुम्हारे अनुभव लेखनी से इस रचना में आ गए है। शुभकामनाये👍💐

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