कुछ भी। .... आज बस यूँ ही।.....
आज बड़े दिनों बाद कुछ लिख रही। ....सोचा नहीं है कि क्या लिखूंगी .... फिर भी कोशिश कर रही सोच कर लिखने की। ..... अजीब सा माहौल है अभी देश में। .. कोरोना ने पीछा नहीं छोड़ा बल्कि और भयावह हो चुका है ,३ महीने बाद लॉक डाउन खुलने के बाद भी समस्याएं वहीं बनी हुई हैं। .... लोग अब कोरोना के साथ जीने की कोशिश को न्यू नार्मल कहने लगे हैं। चीन की हिमाकत बढ़ती ही जा रही है,देश में साइबर हमले आंतरिक सुरक्षा को चुनौती दे रहे तो सामाजिक -आर्थिक समस्याएं मुँह बाएं खड़ी हैं। गरीबी ,बेरोजगारी और असमानता की खाई गहरी होती जा रही। हिंसक घटनाओं के साथ आत्महत्या जैसी घटनाओं में वृद्धि हुई है।वर्तमान में मानसिक अवसाद गंभीर चिंता का विषय है। जून के महीने में कितना कुछ घट गया.... कितने सारे नए विवाद ,समस्याएं हुई। नेपोटिस्म (भाई -भतीजावाद ) ग्रूपिस्म (किसी को अलग -थलग करना ) , ब्लेम गेम, टाइप के कितने शब्दावलियाँ चर्चा का विषय थी। " हर कोई किसी भी मामले में जज बना बैठा है। वो कहते हैं - " आदमी अपने मामले में वकील और दूसरों के मामले में जज बन जाता है। . ...