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oil.....ऑइल (तेल )

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             आप लोग भी  सोच रहे होगे ,तेल शीर्षक है ।दरअसल आज मुझे सरदर्द हो रहा था। अचानक याद आया चम्पी (बालों में तेल लगाना )करने से सही हो जाएगा। ऐसे ही चम्पी करते- करते मैंने तेल के बारे में सोचा पहले तो दिमाग में आया मेरी दादी के सरसों तेल के नुस्खे जो सर्दी में बहुत काम आते हैं , और हिंदी के मुहावरे फिर मैंने सोचा कि इसके बारे में क्या लिख सकती हूँ ?और  जो सोचा वही ये ब्लॉग का मुख्यवस्तु है।               कितनी  आवश्यक और उपयोगी  वस्तु है ये तो हम सब जानते हैं। पर बहुत प्रकार के तेल और उनका प्रयोग भी अलग-अलग होता है  तेल खाद्य वस्तु, औषधि ,कॉस्मेटिक और अब सामरिक(वैश्विक रणनीति ) वस्तु है। तेल के बिना आज हम अर्थव्यवस्था की कल्पना से भी डरते हैं। कृषि ,ऊर्जा, परिवहन आदि सभी क्षेत्रों में तेल की महती भूमिका है। तेल कूटनीति तो बरसों पुरानी बात हो गई। चाणक्य नीति में चाणक्य ने तेल के उपयोग को लेकर भ्रष्टाचार न करने का संदेश दिया था। सरकारी धन का उपयोग अपने फायदे लिए नहीं करना चाहिए। इसलिए वे स्वयं महामंत्री होते हुए भी सरकारी तेल से जलते हुए दीये का प्रयोग अपने निजी कार्य के लिए नहीं

पहले आकाश को छुओ। ......

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पहले आकाश को छुओ। ......                हाल ही में मैंने एक खूबसूरत लघु कथा पढ़ी। ... और मुझे ये इतनी अच्छी लगी कि मैंने सोचा आपके साथ भी शेयर करूँ। ...                ज्ञान , भावना और कर्म में एक बार अपने को बड़ा बताने और प्रमाणित करने को लेकर विवाद छिड़ गया। विवाद का कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा था। फलतः इस विवाद में हाथापाई तक  हो गई। इसका निपटारा करने के लिए तीनो ब्रम्हा जी के पास पहुंचे। ब्रम्हाजी ने समस्या का समाधान बताते हुए कहा -" जो भी इस आकाश को छू लेगा ,वह सबसे बड़ा होगा। "                                             " अक्ल ये कहती दुनिया मिलती है बाजार में ,         दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिये।"                                           -जावेद अख्तर                  अब तीनो आकाश को छूने चले। ज्ञान सूर्य तक पहुंच पाया। उससे आगे वह नहीं जा पाया। भावना ने जब छलांग लगाई तो वह आकाश के दूसरे छोर पर पहुंच गई पर नीचे नहीं आ  पाई। वह वहीं पर लटक कर रह गई। अब कर्म ने सीढ़ियाँ बनानी शुरू की। दोपहर होते- होते वह थक गया।                 इसके बाद ब्र

कुछ बातें ....

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 कुछ बातें  .... बस यूँ ही। ..                            बड़े दिनों बाद कुछ लिख रही। अभी तक सोचा नहीं कि क्या लिखूंगी। .. पर मन कर रहा कि कुछ लिखूं। ... अब मौसम भी अपने रंग बदल रहा,उमस भरी गर्मी के बाद हल्की -हल्की गुलाबी ठण्ड ने दस्तक दे दी है। .. कोरोना के साथ -साथ त्योहारों का मौसम चल ही रहा है।  बिहार में चुनावी दौर चल रहा और राजनेता काम के मुद्दों के  अलावा फालतू बयानबाजी और आरोप -प्रत्यारोप किये जा रहे। चुनावी रैलियों और बाजारों में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ रही है। मगर चुनाव में सब जायज है। पूरी दुनियां में वैक्सीन राष्ट्रवाद की लहर चल रही और अमेरिका के चुनाव का एक मुख्य मुद्दा भी वैक्सीन ही है। और हमारे भारत में तो चुनावी वादों में  वैक्सीन फ्री में बांटी जा चुकी है जो कि अभी तक बनी भी नहीं है।  यही न्यू नार्मल बनी जिंदगी बैचैन भी कर रही। आज ही न्यूज़ में देखा एक २१ साल की लड़की को दिन दहाड़े गोली मार दी गई और उसकी गलती केवल इतनी थी कि उसने शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। कैसी घटना है ये  ....??? कुछ दिन पहले हाथरस और बलरामपुर और पंजाब में बलात्कार की  घटनाएं  हुई। ये घटनाए

बारिश और मैं ..................

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              मुझे बारिश बहुत पसंद है हर बार जब बारिश होती है तब एक अलग सा सुकून होता है। बचपन की बहुत सारी यादें ताजा हो जाती हैं। इस बार तो दिल्ली में बस नाम की बारिश हुई है। ऊपर से अभी भी इतनी ऊमस और गरमी बनी हुई है। लग ही नहीं रहा की सावन का महीना है  पिछले २ दिन यहां बारिश हुई परन्तु यहां की बारिश में वो बात कहां जो मेरे गावं में होती थी। आज में अपनी बारिश की यादें शेयर कर रही। दरअसल इन ४ महीनो के लॉक डाउन में सब कुछ बोरिंग होने लगा है अब इसलिए आज पुराने दिनों में जाने की इच्छा हो रही फिर से। ....                   " बूंदों से बना हुआ छोटा सा समुन्दर ,                             लहरों से भीगती छोटी सी बस्ती।                     चलो ढूंढे बारिश में दोस्ती की यादें ,                         हाथ में लेकर एक कागज़ की कश्ती। "               बात तब की है जब मैं ८ वीं कक्षा में थी और हर बार की तरह इस बार भी गर्मी की छुट्टियों में, मैं और मेरा भाई पूरे २ महीने स्कूल के खुलने तक दादी के साथ ही रहे थे हमारे पुराने ओडिशा के गावं साहसपुर में।  पहाड़ों के नीचे बसा छोटा सा ,सुन्दर सा ग

राजनीति का अपराधीकरण /अपराध का राजनीतिकरण

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                       मैं लिखना कुछ और चाहती थी पर लिख इस टॉपिक पे रही हूं। मैं रोक नहीं पायी खुद को लिखने से  .... अजीब सी बात है ,अजीब हालात हैं। ...मैं पहले ही बताना चाहती हूँ मुझे अपराधियों से कोई सहानुभूति नहीं हैऔर न मैं ऐसे लोगों को सपोर्ट करती हूँ। मेरा मानना है कि किसी ने अपराध किया है तो उसको सजा जरूर मिलनी चाहिए। पर आज हम अपने खोखले हो चुके  सिस्टम की बात करेंगे।  कैसी घटना है...  एक अपराधी जिस पर ३० सालों से लगभग ६० लोगों की हत्या का आरोप हो ,५ लाख रूपए का इनाम रखा गया है।  एक बीजेपी विधायक की हत्या का भी आरोपी है और फिर भी अभी तक बचा रहा ?बिना राजनीतिक और पुलिस सहायता के एक गुंडा इतने दिनों तक कैसे बच सकता है ?सामान्य तौर पे यदि किसी आम आदमी पे एक पुलिस केस हो जाये तो उसकी पूरी जिंदगी बर्बाद हो जाती है। और एक गुंडा राजनीतिक सहायता पाकर इतना ताकतवर हो जाता है कि -एक पूरा संगठित अपराध करता है, ८ पुलिस वालो को मारने में कामयाब हो जाता है वो भी कुछ पुलिस वालों की सहायता से ही। और ये केवल एक नहीं था और भी बहुत सारे ऐसे गुंडे राजनेताओं की शरण में फलते- फूलते हैं ताकि धनबल और बा

कुछ भी। .... आज बस यूँ ही।.....

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                   आज बड़े दिनों बाद कुछ लिख रही। ....सोचा नहीं है कि क्या लिखूंगी  .... फिर भी कोशिश कर रही सोच कर  लिखने की। ..... अजीब सा माहौल है अभी देश में। .. कोरोना ने पीछा नहीं छोड़ा बल्कि और भयावह हो चुका है ,३ महीने बाद लॉक डाउन खुलने के बाद भी समस्याएं वहीं बनी हुई हैं। .... लोग अब कोरोना के साथ जीने की कोशिश को न्यू नार्मल कहने लगे हैं।  चीन की हिमाकत बढ़ती ही जा रही है,देश में साइबर हमले आंतरिक सुरक्षा को चुनौती दे रहे तो सामाजिक -आर्थिक समस्याएं मुँह बाएं खड़ी हैं। गरीबी ,बेरोजगारी और असमानता की खाई गहरी होती जा रही। हिंसक घटनाओं के साथ आत्महत्या जैसी घटनाओं में वृद्धि हुई है।वर्तमान में मानसिक अवसाद गंभीर चिंता का विषय है।                       जून के महीने में कितना कुछ घट गया.... कितने सारे नए विवाद ,समस्याएं  हुई। नेपोटिस्म (भाई -भतीजावाद ) ग्रूपिस्म (किसी को अलग -थलग करना ) , ब्लेम गेम, टाइप के कितने शब्दावलियाँ चर्चा का विषय थी।     " हर कोई किसी भी मामले में जज बना बैठा है।  वो कहते हैं - " आदमी अपने मामले में वकील और दूसरों के मामले में जज बन जाता है। . ...

जाने कब ?

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               इस कोरोना काल की अनिश्चितता गहराती ही जा रही है।  कितना कुछ हो गया बीते दिनों ,चाहे वो उत्तर- पश्चिम भारत में टिड्डी दलों का अटैक हो या फिर अम्फान चक्रवात का कहर ,या फिर  उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग हो अथवा असम और पूर्वोत्तर में मानसून से पहले ही बाढ़ जैसी स्थिति। बिन मौसम बरसात तो सब जगह हो रही थी । कुछ दिनों पहले बढ़ते तापमान ने राजस्थान ,दिल्ली में रिकॉर्ड तोडा था ,अब बारिश ने माहौल ठंडा किया है।महाराष्ट्र में भी चक्रवात निसर्ग ने बेचैनी पैदा कर दी है।  साथ में चीन भारत -सीमा विवाद में युद्ध जैसे हालात। अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है ,गरीब -मजदूरों की दयनीय स्थिति ,रोजगार संकट ,भुखमरी जैसी स्थिति भयावह होती जा रही है।                  हाल ही में एक और व्यथित समाचार सुनने मिला। अमेरिका की विफलता तो कोरोना ने जगजाहिर कर ही दी थी अब वहां दंगे भी शुरू हो गए और कारण जानकर तो और भी बुरा लगा। वाइट सुप्रीमसी (नीओ -नज़िस्म अर्थात नाजीवाद का नया रूप  )  सामान्यता रंगभेद ,नस्लभेद। जॉर्ज फ्लॉएड नामक व्यक्ति की जान चली गयी वो अफ्रीकीअमेरिकन(अश्वेत ) था । उसके विरोध में पूर