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mensturation and sanitary napkins ...lets talk about period...and safe healthcare for women in our country

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"women are born with pain build in". ....                ये लाइन मैंने एक  पॉडकास्ट  में सुना था तब से ये मेरे मन  में घर कर गयी  है।पुबर्टी ,पीरियड   का दर्द ,चाइल्ड बर्थ का दर्द ,एबॉर्शन का दर्द ,pcos और मेनोपोज़। बचपन  से  लेकर बुढ़ापे तक साला  ये   दर्द कभी ख़तम ही नहीं होता। उपाय है ,मेडिसिन है और तो  और भारतीय महिलाओं की हेल्थ और सेफ्टी के  लिए कई कानून भी हैं। थ्योरी में सबकुछ एकदम फर्स्टक्लास है, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है।               अनमैरिड हो और gynac के पास जाओ  तो सबसे पहले वो जज करते हैं। शादी के बाद सब ठीक हो जायेगा जैसे दकियानूसी और  सेंसलेस बात करते हैं। अनवांटेड प्रेग्नन्सी की बात आये तो सब बैठ के गॉसिप करते हैं। अगर  सेक्सुअली एक्टिव हो का आंसर हां हुआ तो जज करने में  कोई कमी नहीं रखते।    DO I NOT DESERVE DIGNITY WHEN I AM  SEEKING HEALTHCARE?         2022 ख़तम  हो रहा है और हम  अभी भी 1922 कि मानसिकता को  झेल  रहे हैं। क्या आपके मोरल वैल्यू  मेरे फिजिकल ,मेन्टल और  सेक्सुअल हेल्थ से ज्यादा महत्वपूर्ण है ?क्या आपकी ओपिनियन मेरी जिंदगी से ज्या

रूबरू..... रौशनी..

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                   "पहली और  सबसे अच्छी जीत स्वयं को जीतना है। " - प्लेटो                आज बड़े दिनों बाद कुछ लिख रही। .. अजीब सा निराशा का  माहौल है। हर दिन सुबह उठकर बस यही सोचती हूँ कि आज कोई बुरी खबर न मिले पर कोरोना ऐसा होने नहीं दे रहा। इतनी सारी मौतें त्रासदी है। पिछले वर्ष का लॉक डाउन भी अकेले बीता  दिया था मैंने और इस बार भी यही सोचा कि ये लॉक डाउन भी कट ही जाएगी। पर इस बार ये लॉक डाउन डरावनी और निराशा भरी रही। इस लॉक डाउन ने ये एहसास करवाया  कि बेचैनी कैसी होती है। मई में मेरे भाई को कोरोना हुआ था जो कि अब पूरी तरह ठीक हो चुका है। और घर में माँ -पापा थे उसको ध्यान रखने के  लिए और मैं यहाँ अकेले हेल्पलेस थी। डर लग रहा था कि माँ -पापा को न हो जाये।और भगवान् का शुक्र है कि माँ -पापा भी ठीक हैं।  वो १५ दिन मेरी जिंदगी के डरावने दिन थे हर वक़्त इतनी बैचेनी ,इतना डर था कि मेरा कहीं मन नहीं लग रहा था। हर वक़्त निगाहें फ़ोन  पे होती थी और नेगेटिव ख्याल आ रहे थे। उसी वक़्त मेरी सहेली के पिताजी का देहांत हो गया था कोरोना से ही और सोशल मीडिया और समाचारों ने डराने की  कोई कसर छोड़ी

कैसी ये मानसिकता .... नस्लभेदी ,रंगभेदी ,लिंगभेदी......?

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        हम सब में कुछ न कुछ कमी है और यही खूबसूरती है। क्यूंकि उस कमी को पूरा करने के लिए हम कोशिश करते हैं या उस कमी को  स्वीकार कर सहज जीवन में आगे बढ़ जाते हैं।आज ये विषय पर लिखने का एक कारण है। अभी हाल ही में मैंने ऐसी दो घटनाओं के बारे में पढ़ा और उन घटनाओं ने मुझे मजबूर किया कि इस विषय पर  लिखूं।            हाल ही में बॉलीवुड एक्टर रणदीप हुड्डा का एक पुराना वीडियो वॉयरल हुआ। इस वीडियो में वो सार्वजनिक मंच से एक चुटकुला सुनाते नजर आ रहे हैं। अंग्रेजी में सुनाये गए इस चुटकुले का मायावती की  राजनीति से ताल्लुक नहीं है ,बल्कि उनकी शक्ल -सूरत का मजाक उड़ाया गया है ,यानी बदसूरत महिला कहने की जगह उनका नाम का इस्तेमाल किया गया है। कितनी शर्मनाक बात है ये ...            ये चुटकुले उन्हीं मायावती को निशाना बनाते हैं जो भारत में पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनी ,जो ४ बार उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री पद पर रह चुकी हैं ,जो राष्ट्रीय स्तर की बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष हैं और जिन्हें पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हां राव  ने "लोकतंत्र का चमत्कार " कहा था।          यह  कोई पहला और अकेला मौ

भयानक गहराई के बिना कोई सतह सुन्दर नहीं लगती। ....

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          "सब्र के समुद्र की गहराई से बहुत रास्ते मिल जायेंगे।               जहां सुकून की गहराई है वहां आनंद सी शीतलता है। " अक्सर गांव में बड़े बूढ़ों से सुना होगा -     " तालाब  सदा कुएं से सैकड़ों गुना चौड़ा और बड़ा  होता है ,फिर भी लोग कुएं का ही पानी पीते हैं, क्यूंकि कुएं में गहराई और शुद्धता  होती है। वैसे ही मनुष्य का बड़ा होना अच्छी बात है , लेकिन उसके व्यक्तित्व में गहराई और विचारों में शुद्धता भी होने चाहिए तभी वह महान बनता है।"        गहरा ,गूढ़ ,गंभीर  ये शब्द सुनकर सोचने पर मैंने पाया  - मीरा बाई के कृष्ण प्रेम की गहराई , कबीर की गुरुभक्ति की गहराई जिसमे कबीर ने गुरु को भगवान् से बड़ा माना  ,महात्मा गाँधी  के सत्य और अहिंसा पर अटूट विश्वास की गहराई जिससे भारत को आज़दी मिली। .... तो वहीं भगत सिंह  क्रांतिकारी विचारों की गहराई , मदर टेरेसा के करुणा की गहराई या फिर यों कहे  जगजीत सिंह के गजलों की गहराई   , प्रेमचंद के उपन्यासों की गहराई ,र वीन्द्रनाथ टैगोर के गीतों की गहराई , रहमान के संगीत की गहराई , कल्पना चावला के सपनो की गहराई  आदि , और भी अनेक उदाहरण

oil.....ऑइल (तेल )

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             आप लोग भी  सोच रहे होगे ,तेल शीर्षक है ।दरअसल आज मुझे सरदर्द हो रहा था। अचानक याद आया चम्पी (बालों में तेल लगाना )करने से सही हो जाएगा। ऐसे ही चम्पी करते- करते मैंने तेल के बारे में सोचा पहले तो दिमाग में आया मेरी दादी के सरसों तेल के नुस्खे जो सर्दी में बहुत काम आते हैं , और हिंदी के मुहावरे फिर मैंने सोचा कि इसके बारे में क्या लिख सकती हूँ ?और  जो सोचा वही ये ब्लॉग का मुख्यवस्तु है।               कितनी  आवश्यक और उपयोगी  वस्तु है ये तो हम सब जानते हैं। पर बहुत प्रकार के तेल और उनका प्रयोग भी अलग-अलग होता है  तेल खाद्य वस्तु, औषधि ,कॉस्मेटिक और अब सामरिक(वैश्विक रणनीति ) वस्तु है। तेल के बिना आज हम अर्थव्यवस्था की कल्पना से भी डरते हैं। कृषि ,ऊर्जा, परिवहन आदि सभी क्षेत्रों में तेल की महती भूमिका है। तेल कूटनीति तो बरसों पुरानी बात हो गई। चाणक्य नीति में चाणक्य ने तेल के उपयोग को लेकर भ्रष्टाचार न करने का संदेश दिया था। सरकारी धन का उपयोग अपने फायदे लिए नहीं करना चाहिए। इसलिए वे स्वयं महामंत्री होते हुए भी सरकारी तेल से जलते हुए दीये का प्रयोग अपने निजी कार्य के लिए नहीं

पहले आकाश को छुओ। ......

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पहले आकाश को छुओ। ......                हाल ही में मैंने एक खूबसूरत लघु कथा पढ़ी। ... और मुझे ये इतनी अच्छी लगी कि मैंने सोचा आपके साथ भी शेयर करूँ। ...                ज्ञान , भावना और कर्म में एक बार अपने को बड़ा बताने और प्रमाणित करने को लेकर विवाद छिड़ गया। विवाद का कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा था। फलतः इस विवाद में हाथापाई तक  हो गई। इसका निपटारा करने के लिए तीनो ब्रम्हा जी के पास पहुंचे। ब्रम्हाजी ने समस्या का समाधान बताते हुए कहा -" जो भी इस आकाश को छू लेगा ,वह सबसे बड़ा होगा। "                                             " अक्ल ये कहती दुनिया मिलती है बाजार में ,         दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिये।"                                           -जावेद अख्तर                  अब तीनो आकाश को छूने चले। ज्ञान सूर्य तक पहुंच पाया। उससे आगे वह नहीं जा पाया। भावना ने जब छलांग लगाई तो वह आकाश के दूसरे छोर पर पहुंच गई पर नीचे नहीं आ  पाई। वह वहीं पर लटक कर रह गई। अब कर्म ने सीढ़ियाँ बनानी शुरू की। दोपहर होते- होते वह थक गया।                 इसके बाद ब्र

कुछ बातें ....

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 कुछ बातें  .... बस यूँ ही। ..                            बड़े दिनों बाद कुछ लिख रही। अभी तक सोचा नहीं कि क्या लिखूंगी। .. पर मन कर रहा कि कुछ लिखूं। ... अब मौसम भी अपने रंग बदल रहा,उमस भरी गर्मी के बाद हल्की -हल्की गुलाबी ठण्ड ने दस्तक दे दी है। .. कोरोना के साथ -साथ त्योहारों का मौसम चल ही रहा है।  बिहार में चुनावी दौर चल रहा और राजनेता काम के मुद्दों के  अलावा फालतू बयानबाजी और आरोप -प्रत्यारोप किये जा रहे। चुनावी रैलियों और बाजारों में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ रही है। मगर चुनाव में सब जायज है। पूरी दुनियां में वैक्सीन राष्ट्रवाद की लहर चल रही और अमेरिका के चुनाव का एक मुख्य मुद्दा भी वैक्सीन ही है। और हमारे भारत में तो चुनावी वादों में  वैक्सीन फ्री में बांटी जा चुकी है जो कि अभी तक बनी भी नहीं है।  यही न्यू नार्मल बनी जिंदगी बैचैन भी कर रही। आज ही न्यूज़ में देखा एक २१ साल की लड़की को दिन दहाड़े गोली मार दी गई और उसकी गलती केवल इतनी थी कि उसने शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। कैसी घटना है ये  ....??? कुछ दिन पहले हाथरस और बलरामपुर और पंजाब में बलात्कार की  घटनाएं  हुई। ये घटनाए