अंधकार से प्रकाश की ओर
अंधकार से प्रकाश की ओर ....
कल जब मैं शाम को चाय पी रही थी ,तभी अचानक भूकंप के झटके महसूस हुए। एक पल को तो लगा कि सिरदर्द की वजह से हो रहा है फिर जब न्यूज़ देखा तो सच में भूकंप ही था। तब में सोचने पे मजबूर हो गई गयी कि जिंदगी कितनी अनिश्चितताओं से भरी है। कैसी विडम्बना होती कि भूकंप में लोग घर से बाहर ही न निकल पाते। बाहर कोरोना का डर जो है।
" ये शहरों का
सन्नाटा बता रहा है
इंसानों ने कुदरत को
नाराज बहुत किया है। "
" ये शहरों का
सन्नाटा बता रहा है
इंसानों ने कुदरत को
नाराज बहुत किया है। "
ये प्रकृति का कहर है जो हमने प्रकृति के साथ किया अब वो बदले ले रही है। ये समय है ऐसे अंधकार का ,जिसने सम्पूर्ण मानवता को अपने आगोश में जकड लिया है। और कैसी विडम्बना है जो मानव पंछियों और जानवरों को कैद में रखता आ रहा था अब तक, आज वो खुद ही कैद रहने की दहशत झेल रहा है। अब लोगों को आज़ाद रहने की कीमत समझ में आ रही होगी।
" पाबंदियां जब भी लगी
इंसानों पर ,
बेजुबानों को बहुत
सुकून मिला।" ... .... गुलजार
" पाबंदियां जब भी लगी
इंसानों पर ,
बेजुबानों को बहुत
सुकून मिला।" ... .... गुलजार
एक रिपोर्ट के अनुसार लॉक डाउन की वजह से वैश्विक स्तर में और विशेषकर भारत में घरेलु हिंसा की घटनायें तेजी से बढ़ी हैं। ये कैसा संकेत है कि एक तो पुरूषों को पहली बार मजबूरीवश घर में कैद होना पड़ गया है जिसका फ़्रस्टेशन अब बाहर निकल रहा है। अब समाज को सोचना चाहिए कि महिलाएं तो सदियों से परंपरा के नाम पर घरों में कैद हैं। क्या उनको फ़्रस्टेशन नहीं होता होगा ?ऊपर से घरेलु हिंसा के बढ़ते केस ये दिखाते हैं कि कितनी दयनीय स्थिति है भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं और बच्चों की।
हालंकि लॉक डाउन से बहुत सारी अन्य समस्याएं जैसे -साइबर अपराध ,घरेलु हिंसा की बढ़ती घटनाएं हो रही हैं तो दूसरी तरफ गरीब मजदूर वर्ग जिनके पास मूलभूत आवश्यक सामग्री भी नहीं है अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है तो दूसरी तरफ एक वर्ग ऐसा है जिसका टाइमपास नहीं हो रहा है। इस वैश्विक महामारी से पश्चिमी देशों की हालत दयनीय हो चुकी है और पूरे विश्व में निराशा ,अंधकार का माहौल है। लोग बेचैन है कि आगे क्या होगा ? कितनी अनिश्चततायें घर कर चुकी है?-अर्थव्यस्था मंदी के चपेट में है और वर्ल्ड बैंक के अनुसार अभी की वैश्विक मंदी १९२९ की महामंदी से भी भयावह होगी। लाखों की संख्या में लोग बेरोजगार हो जायेंगे, गरीबी,भुकमरी और बढ़ेगी आदि ।
ऐसे में एक सुखद खबर है कि पर्यावरण स्वच्छ हो रहा है ,महानगरों में भी अब आसमान नीला दिखने लगा है। वायु प्रदुषण रिकॉर्ड स्तर से कम हुई है। गंगा, यमुना फिर से खिलखिलाने लगी है। कहते हैं -पर्यावरण सरंक्षण और आर्थिक विकास एक दूसरे के विरोधाभासी हैं। जब -जब आर्थिक विकास अपने चरम पर रहा तब ही पर्यावरण प्रदूषण भी चरम पर रहा है। इस लॉक डाउन में प्रकृति स्वयं को रिचार्ज कर रही है।
"कठिन परिस्थितियां बेहतर अवसर लेकर आती हैं। "
वैश्विक मानव समुदाय ने कई समस्यांए देखी है ,२ विश्व युद्ध ,कई महामारियाँ आदि। ये वैश्विक महामारी भी मानव समुदाय के लिए चुनौती लेकर आई है और इस चुनौती को पार करना ही अभी प्राथमिकता है। जैसे हर काली रात के बाद सूरज उम्मीदों की रौशनी लेकर आता है उसी प्रकार ये महामारी के बाद एक नया दौर आएगा और एक संवेदनशील मानव समुदाय का उदय होगा जो प्रकृति की उपेक्षा नहीं करेगा बल्कि संधारणीय विकास के पथ पर समवेशी विकास को प्राथमिकता देगा। इसी आशा के साथ। ........
"यूँ चेहरे पर उदासी ना
ओढ़िये साहब
वक़्त तख़लीफ़ का जरूर है ,
लेकिन कटेगा मुस्कुराने ,
से ही! ....... !
-गुलजार
बेहतरीन आलेख.👌👌👌👌यह आपके चिंतनशील व्यक्तित्व को प्रदर्शित कर रहा है। बधाई💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंThankyou
हटाएंGood
जवाब देंहटाएंThankyou
हटाएंBahut badhiya 👏👍💐
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंExcellent. Keep it up
जवाब देंहटाएंThankyou
हटाएंNice...🤘 Keep writing...
जवाब देंहटाएंThankyou
हटाएंVery good 👌👌
जवाब देंहटाएंFrom mausi
Thankyou mausi
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