समाजिक दूरी बनाम शरीरिक दूरी

   सोशल डिस्टेंसिंग  बनाम फिजिकल डिस्टेंसिंग 


                कोरोना के  कहर ने सामाजिक दूरी बनाने के लिए मजबूर किया है। कितना अनोखा शब्द  है ये मानव सामाजिक प्राणी है। और आज समाज से ही दूरी बनाये हुए है। पिछले कुछ  दिनों से सोशल डिस्टेंसिंग शब्द काफी प्रचलित रहा है। यदि हम विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्यप्रणाली पर ध्यान दें तो यह पाते हैं कि इसके द्वारा लगातार सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी ) के स्थान पर फिजिकल डिस्टेंसिंग (शारीरिक दूरी ) की  अवधारणा को बल दिया जा रहा रहा है।

                 विशेषज्ञों का ये मानना है कि  ये शारीरिक दूरी बनाये रखने का समय है  ,लेकिन साथ ही सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर एकजुट होने का समय है। प्रोफेसर डेनियल एल्ड्रिच का तो ये मानना है कि सोशल डिस्टेंसिंग शब्द का इस्तेमाल न सिर्फ गलत है बल्कि इसका अत्यधिक प्रयोग हानिकारक साबित होगा। इनके अनुसार अभी शारीरिक दूरी और सामाजिक तौर पर एकजुटता प्रदर्शित करने का समय है।

                 सोशल डिस्टेंसिंग से संबंधित समस्याओं को जानने की कोशिश करते हैं - सामाजिक दूरी को भारतीय जनमानस जिन अर्थों में ग्रहण करता है ,उसके पीछे सामाजिक ,सांस्कृतिक  व् ऐतिहासिक पृष्ठ्भूमि को ध्यान में रखना जरूरी है  - ये शब्द लम्बे समय से सामाजिक -सांस्कृतिक वर्चस्व बनाये रखने के लिए इस्तेमाल होता रहा है। सामाजिक दूरी हमेशा शक्तिशाली समूह द्वारा कमजोर समूह पर थोपी जाती रही है।

                  भारत में भेदभाव और दूरी बनाये रखने और अस्पृश्यता को अमल में लाने के तरीके के तौर पर इसका इस्तेमाल होता रहा है। विश्व के कई देशों में विभिन्न जातियों में सोशल डिस्टेंसिंग जाति व्यवस्था को बनाये रखने के लिए पूर्व से ही प्रचलित है। भारत में तो विवाह ,खान -पान से लेकर छुआछूत तक सोशल डिस्टेंसिंग का क्रूरतम रूप सामने आता रहा है। ऐसे में यह डर है कि कोरोना वायरस की  सोशल डिस्टेंसिंग  कहीं जाति प्रथा की सोशल डिस्टेंसिंग के पुनरुत्थान का कारण न बन जाए।


              भारत में अभी भी पानी भरने के स्थलों से लेकर सार्वजनिक स्थलों ,मंदिरों या अन्य धार्मिक स्थलों पर दलितों के साथ सोशल डिस्टेंसिंग का व्यवहार किया जाता है। किसका बनाया हुआ खाना कौन खा सकता है और कौन नहीं खा सकता है ?इसका पूरा विधान है और ये व्यवस्था भारत में अभी भी ग्रामीण इलाकों में व्याप्त है।
           
              ग्रामीण क्षेत्रों में तो अब उच्च जातियों के लोग इस महामारी के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के सूत्र से लोगों के सामने जाति व्यवस्था के औचित्य का तर्क रखने लग गए हैं। इसके साथ ही यह तर्क बार -बार दिया जा रहा है कि  न छूकर किया जाने वाला अभिवादन ,यानी हाथ जोड़कर दूर से किया जाने वाला नमस्ते ,भारतीय परंपरा की श्रेष्ठता को दर्शाता है।
           
               पितृसत्तात्मक भारतीय समाज में( विशेष कर ग्रामीण) परिवार के अंदर भी स्त्री और पुरुष के बीच सोशल डिस्टेंसिंग की दीवार बनाई गयी है ताकि स्त्री को कमजोर होने का एहसास दिलाकर उसका शोषण किया जा सके। स्त्री के लिए सोशल डिस्टेंसिंग इस तरह से की गयी है कि वह घर से बाहर न निकल सके।

                प्रत्येक समाज में गरीब और अमीर के बीच भी सोशल डिस्टेंसिंग व्याप्त है इसप्रकार यदि कोरोना वायरस की सोशल डिस्टेंसिंग का फायदा उठाकर शक्तिशाली समूह सोशल डिस्टेंसिंग की पुरातन रूढ़िवादी अवधारणा को मजबूत करने में जुट जाते हैं ,तो इस पर न सिर्फ नजर रखने बल्कि इस विचारधारा के प्रतिकार करने की भी आवश्यकता है।

                 सोशल डिस्टेंसिंग लोगों के बीच सामाजिक दूरी को बढाकर उनके मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है संकट की इस घडी में स्पष्ट रूप से फिजिकल डिस्टेंसिंग को बनाये रखते हुए सामाजिक निकटता को बनाये रखने की आवश्यकता है। उदाहरण -गरीब मजदूरों की मदद करना ,लॉक डाउन में खाना प्रोवाइड करना जरुरतमंदो को। आदि। आप भी सामाजिक बनिए और फिजिकल डिस्टेंस बढ़ाइए न कि सोशल।

       








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