संदेश

रक्षाबंधन..

भैय्या मेरे राखी के बंधन को निभाना .........                   आज रक्षा बंधन और स्वतंत्रता दिवस दोनों है इसलिए सबको हार्दिक शुभकामनायें ....               आज  घर की बहुत याद आ रही है ,आज के दिन की चहल -पहल , माँ के हाथ का बना खाना,मिठाइयां, तोहफे मिलने की ख़ुशी  और वो पुरे परिवार का साथ खुशियों में शामिल होना ,सब याद आ रहा है। पिछले ३ वर्ष से मैं कभी राखी पे घर नहीं जा पाती ,हर बार राखी भेज देती हूँ भाइयों को ,इस बार तो मेरे भाई भी घर पे नहीं है वो भी घर नहीं जा रहे। मम्मी कहती है घर में रौनक ही नहीं है त्यौहार मनाने  का दिल नहीं कर रहा ,पर फिर भी त्यौहार मनाएंगे क्यों की पापा की बहनें  और मम्मी के भाई भी तो हैं। वैसे मैंने भी अपने भाइयों को राखी भेज दी है। मैं खुश भी हूँ हम चाहे जहाँ भी रहे राखी का त्यौहार हर बार ये एहसास कराता है कि  हमारा रिश्ता कितना मजबूत है। कभी -कभी सोचती हूँ  काश की हम बड़े ही न होते तो कभी घर से दूर जाना नहीं पड़ता। और हम ऐसे ही साथ में हसीं -ख़ुशी लड़ते झगडते रहते । पर कितनी अजीब बात है जब हम बच्चे होते थे तब लगता था जल्दी से बड़े हो जाएँ और आज जब बड़े हो च

क्रोध (गुस्सा)

                                  क्रोध              क्रोध ताश का पत्ता है।लेकिन यह पत्ता सामान्य न होकर तुरुप का इक्का होता है। जिसका इस्तेमाल कभी- कभी ही करना चाहिए और वो भी तब जब अन्य  कोई  चारा न हो। " क्यों की आग अगर रौशनी दे सकती है तो जला भी सकती है"               गुस्सा रिश्ते ख़राब कर देती है।  कड़वाहट ले आती है संबंधों  में ,गुस्से में हम कुछ भी बोलते हैं और हमे पता नहीं चलता की हमने सामने वाले को दुःख पहुँचाया। ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। ३ वर्ष पहले तक मुझे बहुत गुस्सा आता था पर अब मैंने काफी हद तक नियंत्रण कर लिया। और ये सब की वजह थी कि  मैंने  परिवार में किसी अपने को दुःख पहुंचाया। गुस्से में व्यक्तिगत कंमेंट कर दिया ,पर बाद में माफ़ी भी मांग ली थी। परन्तु नुकसान हो चुका  था।  आज भी गिल्ट है उस बात का। मम्मी से  बहुत डांट पड़ी ,उन्होंने बोला - तू बहुत बत्तमीज़ हो रही है।  तब से मैंने सोच लिया कि जब भी गुस्सा आये मैं  किसी से बात ही नहीं करूंगी।अपना ध्यान बंटा दूंगी ,जब तक गुस्सा शांत नहीं हो जाता तब तक मौन व्रत रखूंगी। और यकीन मानो ये तरीका कारगर है।

समाजिक स्वतंत्रता..

"जिस  स्वतंत्रता में गलती कर पाने का अधिकार शामिल नहीं  हो उस स्वतंत्रता का कोई मूल्य नहीं है।"-महात्मा गाँधी                       १५ अगस्त आने वाला है ,भारत को आजाद हुए ७२ वर्ष हो चुके हैं। ... इन ७२ वर्षों में देश ने बहुत तरक्की की है ,हम विश्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं और आने वाले ५ वर्षो में ५ ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने की क्षमता रखतें हैं।  परन्तु क्या हम सच में स्वतंत्र है? या ये केवल कानूनी स्वतंत्रता है ? क्या हम सामाजिक रूप से स्वतंत्र हैं?                                   "जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते ,कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वह आपके किसी काम के नहीं। "   -भीमराव अम्बेडकर                    विशेषकर    महिलओं की स्थिति में आज़ादी के बाद सुधार हुआ है परन्तु उतना नहीं जितना की अपेक्षित था ,आज भी महिलाओं की स्थिति दयनीय है। जीवन के हर क्षेत्र में उनकी उपेक्षा होती है। आये दिन खबरों में घरेलु हिंसा,रेप  की घटनाएं देखने मिलती है.महिलाये कहीं  स्वतंत्र होकर जा नहीं सकती ,उन्हें डर लगा रहता है कि अगर उनक

सबसे सुंदर क्या है.....

                                            नजरिया  एक बार एक व्यक्ति के मन में सवाल उठा की सर्वोत्तम सौंदर्य क्या है  ? वह उत्तर की खोज में चल पड़ा। उसने एक तपस्वी के सामने अपनी जिज्ञासा रखी। तपस्वी बोले-" श्रद्धा -भक्ति ही सबसे सुन्दर है ,जो मिटटी को भी ईश्वर में परिवर्तित कर देती है।"                        जिज्ञासु तपस्वी की बात से संतुष्ट नहीं हुआ और आगे बढ़ गया। उसे एक प्रेमी मिला   जिसने कहा -" इस दुनिया में सर्वोत्तम  सौंदर्य सिर्फ प्रेम है। प्रेम के बल पर इंसान दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत को पराजित कर सकता है। "                 उस जिज्ञासु को इससे भी संतुष्टि  नहीं हुई। उस समय एक योद्धा रक्तरंजित ,हताश लौट रहा था। उस व्यक्ति ने योद्धा से पूछा तो योद्धा बोला -" शक्ति  ही सर्वोत्तम  सौंदर्य है ,क्यों की युद्ध की विनाशलीला मैं स्वयं देख के आया हूँ। मैंने देखा कि किस कदर ईर्ष्या और लोभ से वशीभूत लड़ा गया युद्ध अनेक जिंदगियां बर्बाद कर देता है। "             तभी एक स्त्री विलाप करती हुई नजर आई। उस व्यक्ति ने उस स्त्री से उसका कारण  जानना

प्रेरक कथाएँ

                                      धैर्य  एक बार  ईशा मसीह  अपने शिष्यों के साथ जंगल में जड़ी  बूटियां ढूंढने के लिए  गए। लौटते समय उन्हें प्यास लगी। शिष्य इधर उधर पानी की तलाश करने लगे। तभी उन्हें एक खेत  दिखाई दिया। वहां पहुंचने पर ईशा मसीह को जगह जगह गड्ढे  दिखाई दिए। उन्होंने शिष्यों से पूछा-" क्या तुम बता सकते हो कि इस खेत में ये गढ्ढे क्यों खोदे गए हैं ?"                                      सभी शिष्य एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। तब उन्होंने शिष्यों को समझाते   हुए कहा  - " इस खेत में ये गढ्ढे कुआँ खोदने के लिए किये गए हैं। किसान ने खेत में पानी की तलाश के लिए कुछ  फुट तक तो गढ्ढा खोदा  ,जब उसे पानी नहीं मिला तो दूसरी जगह खोद दिया। इस तरह कई जगह गढ्ढे खोदे ,लेकिन पानी नहीं मिला। अगर वो लगन और  दृढ़विश्वास के साथ एक ही गढ्ढे पर कड़ी मेहनत करता तो निश्चय ही उसे जमीन  से पानी मिलता।  लेकिन धैर्य  नहीं होने के कारण किसान का कार्य पूरा नहीं हुआ। उसका सारा श्रम व्यर्थ चला गया। "                                                      कुछ देर रुक कर ईशा

अनुभव..

                              सावन का महीना  पवन करे शोर..                                आज सावन का आखरी सोमवार है मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी है लोग पूजा करने में इतने मगन हैं की धक्का मुक्की हो रही है ,आज मैं  भी मंदिर आई हूँ ,जनरली मैं पूजा पाठ नहीं करती ,बस प्रार्थना करती हूँ ,काफी दिनों बाद आज मेरा भी मन हुआ..पर मैं मंदिर खाली हाथ ही आई हूँ ,मुझे लगता है  कि  मैं भगवन को दे ही क्या  सकती हूँ  इसके अलावा की मेरा उनपर भरोषा है और हमेशा रहेगा चाहे मैं अगरबत्तीमूलक पूजा न करूँ। मंदिर के नज़ारे ही अलग हैं आज , आज शिव जी का दिन है। मेरी मम्मी कहती है की मैं सोमवार को पैदा हुई थी इसलिए मेरा नाम शिवाश्री है  जिसका मतलब है शिवा +श्री , अर्थात शिव जी का अंश + लक्ष्मी जी ,जब  भी मेरा मन अशांत होता है मम्मी कहती है तू मंदिर चले जाना ,पर मैं कभी कभार ही जाती हूँ...                                  शिव जी पे आज ढूध  ,दही ,फल -फूल चढ़ाये जा रहें है , मंदिर मैं खड़े होकर सोच रही  थी  कि इतना सारा ढूध वेस्ट हो जायेगा  जबकि अगर इतना ढूध लोग यदि सिर्फ भगवान के नाम  से किसी अनाथ आश्रम या

मैं चिड़िया बनना चाहती हूँ ताकि खुले आसमान मैं उड़ सकूँ।

मेरे  कटु  अनुभव  एक चर्चित फिल्म देखी PADMEN  ,बहुत ही अच्छी लगी थी मुझे पहली बार ऐसा लगा की एक फिल्म के माध्यम से ही सही समाज में मासिक धर्म (पीरियड ) के बारे  में बातें हो रही  हैं | लड़कियां भी  अब अपनी परेशानीयों  के बारे में बातें कर सकेंगी |  अब बात करते हैं मेरे साथ घटी एक घटना की, जिसने मुझे सोचने पर विवश कर दिया की लड़की होना इतना चुनौतीपूर्ण क्यों है?  बात एक हफ्ते पहले की है मैं और मेरी सहेली जूही मुनाफा बाजार सामान खरीदने गए थे ,हमने खाने पीने के सामान के साथ पैड भी ख़रीदा ,उसी वक़्त मेरी सहेली ने मुझसे कहा यार वैक्सिंग कराने पर बहुत दर्द होता है मैं एक रेज़र भी खरीद लेती हूँ ,तभी उस शॉप में हमारे पीछे खड़े दो लड़कों ने कमेंट पास कर दिया -"मैडम साफ सफाई करने वाली है|" तभी हमारा ध्यान गया और हमने पीछे मुड़ के देखा -दो पढ़े लिखे लड़के थे दिखने में भी ठीक ठाक घर के लग रहे थे ,तभी मैंने तुरंत उनको जवाब दिया -"हम कुछ भी खरीदें  कहीं भी सफाई  करें तुमसे मतलब, क्या परेशानी है तुमको ?"  मेरी सहेली ने बोला प्लीज़ यहाँ से चल नहीं तो ये और कमेंट करेंगे ,जब हम बिल