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सितंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बारिश की यादें

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               बारिश                   पूरे १ हफ्ते बाद आज दिल्ली में बारिश हो रही है। अजीब बात है  कि पिछले २ महीने से यहाँ बारिश केवल ( शनिवार या रविवार )के दिन ही हो रही है। ऐसा मैंने नोटिस किया जब मैं संडे को अपने क्लास के लिए जा रही होती हूँ तभी बारिश होती है। और सबसे बुरी बात ये है की यहाँ बारिश होने के बाद मौसम अच्छा नहीं बल्कि और कष्टदायी हो जाता है। १ हफ्ते में आधे घंटे की बारिश होती है और उसी वजह से इतनी ऊमस बढ़ जाती है कि सब कुछ चिपचिपा लगने लगता है। खैर ये तो दिल्ली की बारिश है।                      आज शाम से को जब में अपने बाल्कनी में टहल रही थी  तब  हल्की -हल्की  बारिश के साथ ठंडी हवा चल रही थी। मन किया कि चाय पीनी चाहिए। फिर याद आया कि मैं हॉस्टल में रहती हूँ और  मेस की चाय बहुत बकवास होती है।इसलिए मैंने चाय पीना ही बंद कर दिया था।  फिर भी मन तो कर ही रहा था बारिश की वजह से बाहर जा नहीं  सकते  इसलिए सोचा कि आज फिर से  मेस की चाय पी के देखते हैं क्यों की कुक वाले भैय्या कभी -कभी अच्छी चाय गलती से बना देते हैं पर ऐसा बहुत कम ही होता है। आज उम्मीद थी कि शायद बारिश

विश्वास

                        विश्वास (भरोषा )             "  विश्वास तब उस पहले कदम को उठाये जाने जैसा है ,जब आप पूरी सीढ़ी को देख नहीं रहे होते हैं। "                                                                                                                                                -मार्टिन लूथर किंग                         शरबत बनाने की सारी वस्तुएं एक जगह पे रख देने मात्र से शरबत नहीं बनता जब तक की कोई व्यक्ति उन्हें मिलाकर शरबत  बनाने का उपक्रम न करे। जब इतनी छोटी सी वस्तु किसी चेतन सत्ता के बगैर नहीं बन रही है। तो समस्त सृष्टि जो कि इतने नियमानुसार चल रही है बिना किसी के बनाये कैसे बन सकती है। ऐसे सोचने पर एक परम शक्ति के होने का विश्वास होता है।                    " दो चीज़ें जो सदैव मेरे मन को ईश्वर के प्रति आश्चर्य तथा प्रशंसा की भावना से भर देती है -एक तो तारों से आच्छादित आकाश तथा दूसरे ह्रदय में बसे नैतिक नियम ,मैं इनके सन्दर्भ में कोई भी स्पष्टता  अथवा दुविधा नहीं पालता।"                                                               

प्लास्टिक

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                                प्लास्टिक               हॉल  ही में सरकार ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक को पूरी तरह बैन करने का निर्णय लिया है। पर ये बात हम बरसों से सुनते आ रहे हैं। प्लास्टिक जैव निम्नीकरणीय  नहीं है। तथा सर्वत्र पाये जाने के कारण इससे निजात पाना भी मुश्किल है। इस वजह से ये प्लास्टिक खत्म न होने वाली विपत्ति बन गई है।               फिक्की  के मुताबिक  भारत में साल २०१४-२०१५ के दौरान प्रति व्यक्ति प्लास्टिक उपभोग ११ किलो था जिसके २०२२ तक बढ़कर २० किलो होने की संभावना है। और इसमें लगभग ४३ % हिस्सा सिंगल यूज़  प्लास्टिक का है।                  विश्व भर में निकाले गए तेल का लगभग ४ % भाग उन प्लास्टिक सामानों के निर्माण में काम आता है जिनका उपयोग दैनिक जीवन में किया जाता है। तेल के लगभग एक तिहाई भाग का उपयोग उन समस्त प्लास्टिक पैकजिंग सामग्री की आपूर्ति में किया जाता है। जिनकी जरुरत आधुनिक समाज को पड़ती है। तेल की मात्रा प्रतिशत में अवश्य ही कम  मालूम होती है पर जब इसे टनों में परिवर्तित करके देखा जाता है तो ये मात्रा खरबों टन तक पहुँच जाती है।                  प्

भाषा

                                  भाषा               स्वतंत्र भारत ने भाषा संबंधी एक ऐसा प्रारूप अपनाया जिसमें सभी भाषाओं को महत्व दिया गया। फलस्वरूप संविधान के ८ वीं  अनुसूची में भाषा को स्थान दिया गया जिसमें पहले १४ भाषाएं थी परन्तु वर्तमान में २२ भाषाएं हैं। हालांकि  जनगणना २००१ के आंकड़ों के हिसाब से भारत में लगभग मुख्य  भाषा १२२ और अन्य भाषा १५९९ हैं इनमें से कई क्षेत्रीय भाषा और बोलियां हैं जो कम लोगों द्वारा बोली जाती है।                    आज राजभाषा दिवस (हिंदी दिवस )है। और मेरा हिंदी से लगाव स्वाभाविक ही है। स्कूलिंग हिंदी माध्यम से हुई। मेरे पापा ने हिंदी साहित्य में एम ए  किया है। इसलिए उनकी हिंदी साहित्य की किताबें मैं बचपन से ही पढ़ती आई हूँ। मेरा वैकल्पिक विषय भी हिंदी साहित्य रहा है। कॉलेज  में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।अंग्रेजी भाषा भी ठीकठाक है मेरी और में  इंग्लिश नॉवेल  पढ़ने में भी रुचि रखती हूँ। पर हिंदी की बात ही  अलग है।  कॉलेज में भी मैं  हिंदी से जुडी रही एवं २ वर्षों तक कॉलेज के राजभाषा समिति की मुख्य समन्वयक (लीड कॉर्डिनेटर )की भूमिका में थी।          

आशा और निराशा

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                 आशा और निराशा                      मनुष्य का जीवन आशा और निराशा का मिश्रण है। कभी हम ये सोचते हैं कि ऐसा करेंगे तो हमें सफलता मिल सकती है ,लेकिन दूसरे ही पल में हमें अपनी सफलता संदिग्ध लगने लगती है। फिर हम किन्तु- परन्तु के चक्कर में पड़ जाते हैं। यह हम पर निर्भर है कि हम किस दृष्टिकोण को अपनाते हैं।  यदि हम आशावान बनकर सफलता के प्रति आसक्त हैं ,तो हम हर हाल में सफलता को प्राप्त करेंगे ,लेकिन यदि हम निराशा के भवँर जाल में फंसकर यह चिंता करने लगेंगे कि हम सफल हो पाएंगे या नहीं ,तो हमारी सफलता भी संदिग्ध हो जाएगी।                   " हमारी हार और जीत को हमारा मन और मस्तिष्क ही तय करता है।"                   " मन के हारे हार है मन के जीते जीत। "                    कभी -कभी जरूर ऐसा होता है कि हम पूरी उम्मीद और निष्ठा के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए  कठोर परिश्रम करते हैं ,लेकिन इसके बावजूद हम लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते। ऐसी स्थिति में भी हमें आशा का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। इस स्थिति में हमें यह मानना चाहिए कि यह आवश्यक नहीं कि ह

क्यों?

                                   क्यों (why?)     "जिनके पास जीने का ' क्यों ' मौजूद होता है।  वे लगभग किसी भी तरह के 'कैसे' को सह लेते हैं।  - नीत्शे                कुछ भी करने से पूर्व यह जानने की  कोशिश करना कि  ये हम क्यों कर रहे हैं ?ताकि करने का उद्देश्य स्पष्ट हो एवं करने के लिए  प्रेरणा मिलती रहे।  किसी कि सलाह लेना अच्छी बात है पर ये खुद  तय करें कि ये आप करना चाहते हैं या नहीं। क्यों कि अपने अच्छे बुरे के लिए आप स्वयं जिम्मेदार होते हैं। दूसरों को देख  कर अपने लक्ष्य मत बनाइये कि  वो कर रहा है तो मैं भी करूँगा क्यों कि सबकी इच्छा शक्ति ,रणनीति ,परिस्थिति अलग -अलग होती है। आप दूसरों से प्रेरणा ले सकते हैं पर पूरी तरह किसी को फॉलो  न करें(अंधानुकरण )।   वो कहते हैं -"  हर चीज़ के पीछे वजह होती है। "यही  वजह ये क्यों है।               व्यक्ति के   जीवन का यह ' क्यों '( जीवन का उद्देश्य ,लक्ष्य व  जीवन दृष्टि को जानना ) उसके दृढ -निश्चय का प्रतीक है तथा उसके संघर्ष और जिजीविषा का ठोस प्रमाण प्रदान करता है। व्यक्ति की सफलता और

शिक्षक

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                           शिक्षक                 मानव को अधिक परिपक़्व ,समझदार और प्रबुद्ध बनाने में शिक्षा की भूमिका हर युग में बेहद प्रभावी  रही है। चाहे वो अनौपचारिक रूप से घर-बाहर ,माता -पिता ,दादी -नानी ,पड़ोसियों द्वारा सिखाये गए सबक हों  या वैदिक वाचिक परंपरा से आधुनकि  युग की औपचारिक शिक्षा पद्धातियाँ ,निसंदेह शिक्षा  और शिक्षक का मानव व्यक्तित्व के सर्वांगीण  विकास में  महत्वपूर्ण योगदान रहा है।              "मुझे जन्म देने के लिए मैं अपने माता -पिता की ऋणी रहूंगी एवं मुझे बेहतर इंसान बनाने ,आगे बढ़ने की प्रेरणा देने के लिए अपने शिक्षकों की ऋणी रहूंगी।"   पहले शिक्षक माता -पिता ही होते हैं।                                          शिक्षक = शि - शिष्टाचार                                                         क्ष -   क्षमाशील                                                         क -कर्तव्यनिष्ठ                  यदि मानव इन गुणों से घिरा है तो उसका हमेशा विकास होता है शिक्षक हमें कर्तव्यनिष्ठ रहने की शिक्षा देते हैं। चाहे वो कर्तव्य समाज के प्रति ह

नुआखाई त्योहार

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                        नुआखाई त्यौहार                             भारत में बहुत सारे त्यौहार मनाये जाते हैं या यूँ कह सकते है हर अवसर का एक त्यौहार होता है। चाहे वो पहली बारिश की ख़ुशी का हो या धान बोवाई का अवसर अथवा होली ,दिवाली। खासकर भारत के जनजाति बहुल क्षेत्रों में कृषि से सम्बंधित बहुत सारे त्यौहार मनाये जाते हैं (जैसे -असम का बिहू ) ओड़िशा , मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ और उत्तरपूर्व के राज्यों में। भारत गावों में बसता है।  और कृषि पर आज भी  लगभग ५० % आबादी निर्भर है। इसलिए कृषि और इससे सम्बंधित त्यौहार भारतीय संस्कृति का  महत्वपूर्ण हिस्सा हमेशा से रहे  हैं।                   नुआखाई त्यौहार भी एक कृषि से सम्बंधित त्यौहार है।और मुख्य रूप से  पश्चिमी ओडिशा के सम्बलपुर जिले में  मनाया जाता है। हालांकि छत्तीसगढ़ में भी लगभग ३० % ओड़िया बोलने वाले लोग रहते हैं है तथा ओड़िशा से बॉर्डर शेयर करते हैं इसलिए यहाँ भी ये त्यौहार मनाया जाता है।  कह सकते है फ़ूड फेस्टिवल है। और ये त्यौहार भाद्रपद (अगस्त -सितम्बर ) महीने के पंचमी तिथि ( गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद ) मनाया जाता है।  और  माँ समल