प्लास्टिक
प्लास्टिक
हॉल ही में सरकार ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक को पूरी तरह बैन करने का निर्णय लिया है। पर ये बात हम बरसों से सुनते आ रहे हैं। प्लास्टिक जैव निम्नीकरणीय नहीं है। तथा सर्वत्र पाये जाने के कारण इससे निजात पाना भी मुश्किल है। इस वजह से ये प्लास्टिक खत्म न होने वाली विपत्ति बन गई है।
फिक्की के मुताबिक भारत में साल २०१४-२०१५ के दौरान प्रति व्यक्ति प्लास्टिक उपभोग ११ किलो था जिसके २०२२ तक बढ़कर २० किलो होने की संभावना है। और इसमें लगभग ४३ % हिस्सा सिंगल यूज़ प्लास्टिक का है।
विश्व भर में निकाले गए तेल का लगभग ४ % भाग उन प्लास्टिक सामानों के निर्माण में काम आता है जिनका उपयोग दैनिक जीवन में किया जाता है। तेल के लगभग एक तिहाई भाग का उपयोग उन समस्त प्लास्टिक पैकजिंग सामग्री की आपूर्ति में किया जाता है। जिनकी जरुरत आधुनिक समाज को पड़ती है। तेल की मात्रा प्रतिशत में अवश्य ही कम मालूम होती है पर जब इसे टनों में परिवर्तित करके देखा जाता है तो ये मात्रा खरबों टन तक पहुँच जाती है।
प्लास्टिक पदार्थ भंजन प्रक्रिया (क्रैकिंग प्रोसेस ) के द्वारा हाइड्रोकार्बनों को गर्म करके बनाये जाते हैं। पेट्रोलियम पदार्थों को निकालने और उनका परिष्करण (रिफाइनिंग )करने से पर्यावरण को काफी क्षति पहुँचती है। प्रवेधन (ड्रिलिंग ) के दौरान अत्यधिक मात्रा में बने अपशिष्ट के निकलने और तेल के बिखरने से न केवल समुद्री पारिस्थितिक तंत्र (इकोसिस्टम ) को अत्यधिक नुकसान पहुंचता है। बल्कि इससे अत्यंत सीमित संसाधन भी समाप्त हो जाते हैं।
ज़्यादातर जिन प्लास्टिकों को हम काम में लाते हैं वे तुरंत अपशिष्ट के रूप में फेंक दिए जाते हैं। अधिकतर प्लास्टिक भारत में पैकजिंग सेक्टरों में प्रयुक्त की जाती है। वास्तव में कुल प्लास्टिक का ५२ % पैकेजिंग में इस्तेमाल होता है। एक बार इस्तेमाल करके फेंक देने के कारण संसाधनों की कितनी बड़ी बर्बादी होती है।
प्लास्टिक उद्योग द्वारा बार -बार विश्वास दिलाने के बावजूद भी प्लास्टिक को हर बार पुनश्चक्रित नहीं किया जाता। अधिक से अधिक तीन से चार बार तक। असंगठित सेक्टरों द्वारा गरीब मजदूरों से उनके कमजोर स्वास्थ्य की कीमत पर निम्न स्तरीय मानक दशाओं में प्लास्टिक को पुनश्चक्रित (रिसायकल ) करवाया जाता है। ये एक विषैली प्रक्रिया हो सकती है।
ऐसे प्लास्टिक जिन्हे रिसायकल नहीं किया जा सकता ,उन्हें जमीन में दबा दिया जाता है। जिससे हमारी मिट्टी प्रदूषित होती है साथ ही भू -जल (ग्राउंड वाटर ) दूषित होता है। और प्लास्टिक जलाने पर वायु प्रदूषण जिससे कई स्वास्थ्य संबंधी समस्या पैदा होती है। इन प्लास्टिक को नदी -नालों ,सीवर लाइनों में बहा दिया जाता है जिससे ये कभी गाय के आंत में पायी जाती है तो कभी व्हेल मछली में। प्लास्टिक अपने अवशेषों में वृहत पारिस्थितिकी दुष्प्रभाव छोड़ती है। हमें REDUCE,REUSE,RECYCLE की रणनीति अपनानी होगी।
हम सब जानते हैं कि प्लास्टिक कितना नुकसानदायक हैं।कैंसर जैसी बीमारियां सामान्य हो गई हैं। ये हमारी जीवन शैली का हिस्सा बन चुका है। एक बुरी आदत की तरह। हमें जिम्मेदार नागरिक बनने की आवश्यकता है। सरकार की प्लास्टिक मुक्त भारत बनाने की मुहिम में हमें भी साथ देना होगा। बिना जनभागीदारी के प्लास्टिक से छुटकारा नहीं पाया जा सकता है। मैंने भी प्लास्टिक मुक्त जीवन जीने प्रयास किया है और प्लास्टिक वाटर बॉटल और सिंगल यूज प्लास्टिक नहीं प्रयोग करने की कसम ली है। मैं तांबे का बोतल प्रयोग करती हूँ लगभग एक वर्ष हो चुके हैं मुझे। आप भी प्लास्टिक वाटर बॉटल की जगह स्टील या कॉपर (तांबा )के बॉटल का प्रयोग करें इसके फायदे भी हैं। और सामान खरीदने के लिए जूट या कपडे के थैले प्रयोग में लाएं। इससे जूट किसानो को भी फायदा होगा। ये छोटा सा प्रयास परिवर्तनकारी हो सकता है। आप भी अपने जीवन को प्लास्टिक मुक्त बनाइये। और स्वस्थ्य रहिये।
कावेरी कॉलिंग अभियान का भी हिस्सा बने। पेड़ लगाएं। अपने पर्यावरण को स्वच्छ रखना और इसका सरंक्षण करना हमारी जिम्मेदारी है।
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़ )का स्वच्छता अभियान और उनकी प्लास्टिक से निपटान के तरीके सराहनीय हैं जिसमे वहां के लोगों की भागीदारी महत्वपूर्ण थी। लिंक में जा के देख सकते हैं।https://youtu.be/U79LKU96dTg
बहुत बढ़िया...👌👍
जवाब देंहटाएं