विश्वास

                        विश्वास (भरोषा ) 

           " विश्वास तब उस पहले कदम को उठाये जाने जैसा है ,जब आप पूरी सीढ़ी को देख नहीं रहे होते हैं। "
                                                                                                                                               -मार्टिन लूथर किंग 


                       शरबत बनाने की सारी वस्तुएं एक जगह पे रख देने मात्र से शरबत नहीं बनता जब तक की कोई व्यक्ति उन्हें मिलाकर शरबत  बनाने का उपक्रम न करे। जब इतनी छोटी सी वस्तु किसी चेतन सत्ता के बगैर नहीं बन रही है। तो समस्त सृष्टि जो कि इतने नियमानुसार चल रही है बिना किसी के बनाये कैसे बन सकती है। ऐसे सोचने पर एक परम शक्ति के होने का विश्वास होता है।


                  " दो चीज़ें जो सदैव मेरे मन को ईश्वर के प्रति आश्चर्य तथा प्रशंसा की भावना से भर देती है -एक तो तारों से आच्छादित आकाश तथा दूसरे ह्रदय में बसे नैतिक नियम ,मैं इनके सन्दर्भ में कोई भी स्पष्टता  अथवा दुविधा नहीं पालता।"                                                                   - कांट 


                        धर्म तथा ईश्वरीय  विश्वास मानव सभ्यता के अविष्कार हैं। विश्वास एक ऐसी शक्ति है जिसके माध्यम से व्यक्ति स्वयं का विकास करता है। यह मानव जीवन में शांति, स्थिरता तथा समृद्धि लता है। 

                       सतह से देखने वालों के द्वारा विश्वास को प्रायः विचार का विरोधी माना लिया जाता है ,लेकिन ऐसा नहीं है। विचार ,तर्क तथा संदेह विश्वास की पहली सीढ़ी है। किसी वैज्ञानिक खोज के लिए अपने विज़न में विश्वास की आवश्यकता होती है। कॉपरनिकस ,केपलर ,गैलीलियो ,न्यूटन  सभी को अपने तर्कों पर निष्कंप विश्वास था। ये विश्वास किसी आदि सत्ता की बजाय स्वयं के अपने अनुभवों ,अवलोकनों ,अपनी सोच ,चयन तथा निर्णयों पर था। ऐसे विश्वास शुद्ध ,तार्किक तथा विचारवान विश्वास हैं।                                                                                                                                                                          स्वयं पर विश्वास करने पर मुश्किलें आसान लगती हैं। अपने रिश्तों पर विश्वास रखने पर वो और मजबूत होतें हैं।अपनी मेहनत करने की क्षमता पर यदि विश्वास है तो कोई भी कठिन कार्य सफल हो सकता है। इसलिए विश्वास स्वयं पर, अपने ईश्वर पर एवं अपने रिश्तों पर बनाये रखना अति आवश्यक हो जाता है। 


                      "  प्रार्थना ऐसे करो जैसे सबकुछ ईश्वर पर निर्भर करता है और कर्म ऐसे करो जैसे सबकुछ केवल आप पर निर्भर करता है।  "                                                                                                                                                                                              मानव जो ईश्वरीय चेतना की अभिव्यक्ति है उसके लिए ईश्वर के प्रति यह विश्वास वस्तुतः स्वयं के प्रति विश्वास को सशक्त करने का साधन मात्र है। जिस प्रकार प्रेम सभी स्थितियों को आसान बना देता है उसी प्रकार विश्वास हर चीज़ को संभव बना देता है। जब हम किसी पर भरोषा करते हैं तब हम उसे आजादी ( स्वतंत्रता)  देते हैं। (जैसे माता -पिता का अपने  बच्चे पर भरोषा कि अपने जीवन में कुछ अच्छा करेगा। इसलिए उसे बाहर पढ़ने (कर्म करने)के लिए भेजा जाता है।)  जब ये मैं सोचती हूँ तो लगता है कि क्या हमारे समाज  को लड़कियों की कबिलियत पर भरोषा नहीं  है? तभी उनको हमेशा पाबंदियों में रखा जाता है  जबकि महिलाओं ने हर क्षेत्र में स्वयं को  साबित किया है। आज महिलायें आजाद होकर भी कैद हैं।  जीवन के हर क्षेत्र में उनके साथ  भेद भाव किया जाता है। (घर, नौकरी या सेलेरी, अवसर सब जगह भेद -भाव)अगर यही भरोषा (विश्वास) महिलाओं पर करके उनको मौका दिया जाये तो समाज में बहुत सकारात्मक परिवर्तन होंगे। महिला सशक्तिकरण  को बल मिलेगा।और  महिलाओं कि अर्थ -व्यवस्था में सहभागिता दर  बढ़ जाएगी। जो कि घटती जा रही है। और  हमारी GDP ग्रोथ भी  बढ़ेगी।                                                                                                                       किसी भी चीज पर भरोषा एक शक्ति का स्रोत  बनता है चाहे वो भरोषा स्वयं पर हो, या ईश्वर पर या फिर अपने मेहनत पर।इसलिएअपने भरोसे पे भरोषा रखें। और हमेशा प्रयत्नशील रहें। 





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