संदेश

क्यों?

                                   क्यों (why?)     "जिनके पास जीने का ' क्यों ' मौजूद होता है।  वे लगभग किसी भी तरह के 'कैसे' को सह लेते हैं।  - नीत्शे                कुछ भी करने से पूर्व यह जानने की  कोशिश करना कि  ये हम क्यों कर रहे हैं ?ताकि करने का उद्देश्य स्पष्ट हो एवं करने के लिए  प्रेरणा मिलती रहे।  किसी कि सलाह लेना अच्छी बात है पर ये खुद  तय करें कि ये आप करना चाहते हैं या नहीं। क्यों कि अपने अच्छे बुरे के लिए आप स्वयं जिम्मेदार होते हैं। दूसरों को देख  कर अपने लक्ष्य मत बनाइये कि  वो कर रहा है तो मैं भी करूँगा क्यों कि सबकी इच्छा शक्ति ,रणनीति ,परिस्थिति अलग -अलग होती है। आप दूसरों से प्रेरणा ले सकते हैं पर पूरी तरह किसी को फॉलो  न करें(अंधानुकरण )।   वो कहते हैं -"  हर चीज़ के पीछे वजह होती है। "यही  वजह ये क्यों है।               व्यक्ति के   जीवन का यह ' क्यों '( जीवन का उद्देश्य ,लक्ष्य व  जीवन दृष्टि को जानना ) उसके दृढ -निश्चय का प्रतीक है तथा उसके संघर्ष और जिजीविषा का ठोस प्रमाण प्रदान करता है। व्यक्ति की सफलता और

शिक्षक

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                           शिक्षक                 मानव को अधिक परिपक़्व ,समझदार और प्रबुद्ध बनाने में शिक्षा की भूमिका हर युग में बेहद प्रभावी  रही है। चाहे वो अनौपचारिक रूप से घर-बाहर ,माता -पिता ,दादी -नानी ,पड़ोसियों द्वारा सिखाये गए सबक हों  या वैदिक वाचिक परंपरा से आधुनकि  युग की औपचारिक शिक्षा पद्धातियाँ ,निसंदेह शिक्षा  और शिक्षक का मानव व्यक्तित्व के सर्वांगीण  विकास में  महत्वपूर्ण योगदान रहा है।              "मुझे जन्म देने के लिए मैं अपने माता -पिता की ऋणी रहूंगी एवं मुझे बेहतर इंसान बनाने ,आगे बढ़ने की प्रेरणा देने के लिए अपने शिक्षकों की ऋणी रहूंगी।"   पहले शिक्षक माता -पिता ही होते हैं।                                          शिक्षक = शि - शिष्टाचार                                                         क्ष -   क्षमाशील                                                         क -कर्तव्यनिष्ठ                  यदि मानव इन गुणों से घिरा है तो उसका हमेशा विकास होता है शिक्षक हमें कर्तव्यनिष्ठ रहने की शिक्षा देते हैं। चाहे वो कर्तव्य समाज के प्रति ह

नुआखाई त्योहार

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                        नुआखाई त्यौहार                             भारत में बहुत सारे त्यौहार मनाये जाते हैं या यूँ कह सकते है हर अवसर का एक त्यौहार होता है। चाहे वो पहली बारिश की ख़ुशी का हो या धान बोवाई का अवसर अथवा होली ,दिवाली। खासकर भारत के जनजाति बहुल क्षेत्रों में कृषि से सम्बंधित बहुत सारे त्यौहार मनाये जाते हैं (जैसे -असम का बिहू ) ओड़िशा , मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ और उत्तरपूर्व के राज्यों में। भारत गावों में बसता है।  और कृषि पर आज भी  लगभग ५० % आबादी निर्भर है। इसलिए कृषि और इससे सम्बंधित त्यौहार भारतीय संस्कृति का  महत्वपूर्ण हिस्सा हमेशा से रहे  हैं।                   नुआखाई त्यौहार भी एक कृषि से सम्बंधित त्यौहार है।और मुख्य रूप से  पश्चिमी ओडिशा के सम्बलपुर जिले में  मनाया जाता है। हालांकि छत्तीसगढ़ में भी लगभग ३० % ओड़िया बोलने वाले लोग रहते हैं है तथा ओड़िशा से बॉर्डर शेयर करते हैं इसलिए यहाँ भी ये त्यौहार मनाया जाता है।  कह सकते है फ़ूड फेस्टिवल है। और ये त्यौहार भाद्रपद (अगस्त -सितम्बर ) महीने के पंचमी तिथि ( गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद ) मनाया जाता है।  और  माँ समल

स्वयं की खोज

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                 अपने जवाब खुद ढूँढे।                "हर कोई आपको बताना चाहता है की आपको क्या करना चाहिए और आपके लिए क्या अच्छा है। वे नहीं चाहते कि आप अपने जवाब खुद खोजें ,वे चाहते हैं की आप उनके जवाबों पर विश्वास करें।"                                                                                                                             -सुकरात           हर व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसाआता  है, जब उसे लगता है कि सभी चीज़ें उसके विरोध में हैं  और वह कितना ही अच्छा क्यों न कर ले ,लेकिन उसके हाथ असफलता  लगेगी। ऐसे समय में व्यक्ति के मन में नकारात्मक विचारों का मेला उमड़ पड़ता है। ऐसी दशा में व्यक्ति आत्महत्या करने तक की सोचने लगता है। आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। बल्कि ऐसे समय में व्यक्ति को कहीं से छोटी सी प्रेरणा मिल जाये ,तो यह संभव है कि वही व्यक्ति भविष्य में ऐसा इतिहास रच दे कि लोग दांतों तले ऊँगली दबाने लगे।          असल में हर व्यक्ति की अपनी सीमायें और क्षमताएं  होती है। लेकिन कई बार जीवन में विपरीत परिस्थिति आने पर व्यक्ति को अपनी क्षमत

रंग/कलर्स

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                            रंग /कलर               अपने स्टडी टेबल पर रखे रंगबिरंगे पेन को देखकर ऐसे  ही मन किया कि क्यों न इसपे कुछ लिखा जाये। मुझे रंगोली बनाना पसंद है और रंगों  के साथ एक्सपेरिमेंट करना भी ,उनके साथ खेलना रंगो को मिक्स करके नए -नए शेड्स बनाना। वैसे व्यक्तिगत तौर पर मेरा पसंदीदा रंग सफ़ेद और काला  है। बाकि रंग भी पसंद है पर सफ़ेद  की बात  ही कुछ और है सफ़ेद रंग कलरलेस  होते हुए भी कलरफुल होता है।                               सफ़ेद रंग के लिए मैं  ऑब्सेस्ड हूँ। पता नहीं क्यों सफ़ेद चीज़ें अनायास ही मुझे आकर्षित करते हैं। सफ़ेद रंग शांति और अमन का पैगाम देता है।                   अब बात करते हैं रंगों का हमारे जीवन में क्या  महत्व होता है?और बिना रंगों के हमारा जीवन कैसा हो सकता है ?             " मनुष्यों के संबंधों में रंग भले बदल जाये परन्तु रंगों से मनुष्यों का सम्बन्ध कभी नहीं बदल सकता।"                हमारे जीवन में सदैव से रंग रहे हैं और सदा के लिए रहे हैं। रंग जीवन का प्रतीक है ,सृष्टि का सृजन भी। दो रंग आपस में मिलकर नए रंग का सृजन करते हैं

धैर्य में ही सफलता......

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                          प्रेरक कहानी                एक आश्रम में ,शिक्षा -सत्र समाप्ति पर ,गुरु ने शिष्यों की अंतिम परीक्षा लेने के उदेद्श्य से ,सबके हाथों में बांस से बनी एक -एक टोकरी पकड़ाते हुए कहा -"तुम सब नदी पर जाकर इन टोकरियों  में जल भरकर लाओ और आश्रम की सफाई करो। "                   गुरु की आज्ञा मानकर शिष्य चल पड़े। सोचने लगे कि टोकरियों में जल कैसे भरा जायेगा ? जल तो छेदों से बहकर निकल जायेगा। नदी पर वही हुआ। टोकरियों में पानी भरते ही बह जाता था।                  सदाव्रत नामक शिष्य को छोड़कर सभी शिष्य टोकरियां फेंक कर  आश्रम आ गए। लेकिन सदाव्रत ने प्रयास नहीं छोड़ा और शाम तक टोकरी में जल भरने का प्रयास करता रहा। आखिर उसका धैर्य रंग लाया और टोकरी में बार -बार जल लगने से बांस की कमानियां  फूल गईं  और उनके बीच के छेद बंद हो गए और जल रिसना बंद हो गया।                                            सदाव्रत  टोकरी में जल लाकर  आश्रम की सफाई में जुट गया। तब गुरु ने सभी शिष्यों  बुलाकर कहा -" यह अंतिम शिक्षा थी जिसमें सदाव्रत के अलावा सभी छात्र अनुत्तीर्

परिवर्तन

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                         परिवर्तन/बदलाव                  परिवर्तन प्रकृति का नियम है जीवन का सत्य है। समय के साथ सारी चीजें परिवर्तित हो जाती है जैसे आदिमानव से सभ्य मानव तक का सफर ,ये भी तो एक बदलाव ही है। ठहराव और जड़ता मृत्यु है। जिस प्रकार ठहरा  हुआ पानी प्रदूषित हो जाता है ,उसी प्रकार यथास्थिति से मनुष्य प्रगति नहीं कर सकता है। उसे हमेशा समय के साथ स्वयं में बदलाव/ परिवर्तन करते रहना चाहिए। अर्थात अपडेटेड रहना चाहिए। नहीं तो हम  पीछे रह जायेंगे इस तेजी से बदलती दुनिया में।                 "हम परिवर्तन तो चाहते हैं पर इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं ,हमें हर सुविधा चाहिए पर उसकी प्राप्ति के लिए उठाये जाने वाले कष्ट हमें स्वीकार नहीं। "                    हम सफाई तब करेंगे जब सरकार कहेगी ,अन्यथा सार्वजनिक स्थानों पर बेधड़क गन्दगी फैलाएंगे।कहीं भी पान खाकर थूकना भी लोग अपना  अधिकार समझते हैं।  हम अपने गावों में शौचालय बनवाने के लिए भी वर्षों सरकार का इंतज़ार करते हैं। हमें अपनी जान भी प्यारी नहीं है इसलिए हेलमेट भी ट्रैफिक पुलिस को देखने के बाद