संदेश

स्वयं की खोज

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                 अपने जवाब खुद ढूँढे।                "हर कोई आपको बताना चाहता है की आपको क्या करना चाहिए और आपके लिए क्या अच्छा है। वे नहीं चाहते कि आप अपने जवाब खुद खोजें ,वे चाहते हैं की आप उनके जवाबों पर विश्वास करें।"                                                                                                                             -सुकरात           हर व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसाआता  है, जब उसे लगता है कि सभी चीज़ें उसके विरोध में हैं  और वह कितना ही अच्छा क्यों न कर ले ,लेकिन उसके हाथ असफलता  लगेगी। ऐसे समय में व्यक्ति के मन में नकारात्मक विचारों का मेला उमड़ पड़ता है। ऐसी दशा में व्यक्ति आत्महत्या करने तक की सोचने लगता है। आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। बल्कि ऐसे समय में व्यक्ति को कहीं से छोटी सी प्रेरणा मिल जाये ,तो यह संभव है कि वही व्यक्ति भविष्य में ऐसा इतिहास रच दे कि लोग दांतों तले ऊँगली दबाने लगे।          असल में हर व्यक्ति की अपनी सीमायें और क्षमताएं  होती है। लेकिन कई बार जीवन में विपरीत परिस्थिति आने पर व्यक्ति को अपनी क्षमत

रंग/कलर्स

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                            रंग /कलर               अपने स्टडी टेबल पर रखे रंगबिरंगे पेन को देखकर ऐसे  ही मन किया कि क्यों न इसपे कुछ लिखा जाये। मुझे रंगोली बनाना पसंद है और रंगों  के साथ एक्सपेरिमेंट करना भी ,उनके साथ खेलना रंगो को मिक्स करके नए -नए शेड्स बनाना। वैसे व्यक्तिगत तौर पर मेरा पसंदीदा रंग सफ़ेद और काला  है। बाकि रंग भी पसंद है पर सफ़ेद  की बात  ही कुछ और है सफ़ेद रंग कलरलेस  होते हुए भी कलरफुल होता है।                               सफ़ेद रंग के लिए मैं  ऑब्सेस्ड हूँ। पता नहीं क्यों सफ़ेद चीज़ें अनायास ही मुझे आकर्षित करते हैं। सफ़ेद रंग शांति और अमन का पैगाम देता है।                   अब बात करते हैं रंगों का हमारे जीवन में क्या  महत्व होता है?और बिना रंगों के हमारा जीवन कैसा हो सकता है ?             " मनुष्यों के संबंधों में रंग भले बदल जाये परन्तु रंगों से मनुष्यों का सम्बन्ध कभी नहीं बदल सकता।"                हमारे जीवन में सदैव से रंग रहे हैं और सदा के लिए रहे हैं। रंग जीवन का प्रतीक है ,सृष्टि का सृजन भी। दो रंग आपस में मिलकर नए रंग का सृजन करते हैं

धैर्य में ही सफलता......

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                          प्रेरक कहानी                एक आश्रम में ,शिक्षा -सत्र समाप्ति पर ,गुरु ने शिष्यों की अंतिम परीक्षा लेने के उदेद्श्य से ,सबके हाथों में बांस से बनी एक -एक टोकरी पकड़ाते हुए कहा -"तुम सब नदी पर जाकर इन टोकरियों  में जल भरकर लाओ और आश्रम की सफाई करो। "                   गुरु की आज्ञा मानकर शिष्य चल पड़े। सोचने लगे कि टोकरियों में जल कैसे भरा जायेगा ? जल तो छेदों से बहकर निकल जायेगा। नदी पर वही हुआ। टोकरियों में पानी भरते ही बह जाता था।                  सदाव्रत नामक शिष्य को छोड़कर सभी शिष्य टोकरियां फेंक कर  आश्रम आ गए। लेकिन सदाव्रत ने प्रयास नहीं छोड़ा और शाम तक टोकरी में जल भरने का प्रयास करता रहा। आखिर उसका धैर्य रंग लाया और टोकरी में बार -बार जल लगने से बांस की कमानियां  फूल गईं  और उनके बीच के छेद बंद हो गए और जल रिसना बंद हो गया।                                            सदाव्रत  टोकरी में जल लाकर  आश्रम की सफाई में जुट गया। तब गुरु ने सभी शिष्यों  बुलाकर कहा -" यह अंतिम शिक्षा थी जिसमें सदाव्रत के अलावा सभी छात्र अनुत्तीर्

परिवर्तन

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                         परिवर्तन/बदलाव                  परिवर्तन प्रकृति का नियम है जीवन का सत्य है। समय के साथ सारी चीजें परिवर्तित हो जाती है जैसे आदिमानव से सभ्य मानव तक का सफर ,ये भी तो एक बदलाव ही है। ठहराव और जड़ता मृत्यु है। जिस प्रकार ठहरा  हुआ पानी प्रदूषित हो जाता है ,उसी प्रकार यथास्थिति से मनुष्य प्रगति नहीं कर सकता है। उसे हमेशा समय के साथ स्वयं में बदलाव/ परिवर्तन करते रहना चाहिए। अर्थात अपडेटेड रहना चाहिए। नहीं तो हम  पीछे रह जायेंगे इस तेजी से बदलती दुनिया में।                 "हम परिवर्तन तो चाहते हैं पर इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं ,हमें हर सुविधा चाहिए पर उसकी प्राप्ति के लिए उठाये जाने वाले कष्ट हमें स्वीकार नहीं। "                    हम सफाई तब करेंगे जब सरकार कहेगी ,अन्यथा सार्वजनिक स्थानों पर बेधड़क गन्दगी फैलाएंगे।कहीं भी पान खाकर थूकना भी लोग अपना  अधिकार समझते हैं।  हम अपने गावों में शौचालय बनवाने के लिए भी वर्षों सरकार का इंतज़ार करते हैं। हमें अपनी जान भी प्यारी नहीं है इसलिए हेलमेट भी ट्रैफिक पुलिस को देखने के बाद

जीवन दर्शन

                       तीन मार्गदर्शक सिद्धांत             ये तीन ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत हैं ,जिससे मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत अधिक प्रभावित हूँ। और ये तीन सिद्धांत सार्वभौमिक हैं।  (१)   गीता का निष्काम कर्मयोग           " कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचना।            मा कर्मफलहेतुर्भूः मा ते संगोत्सव कर्मणि।। "          सामान्य भाषा में निष्काम कर्मयोग के सिद्धांत को इस रूप में समझाया जाता है कि -          "  कर्म करते रहो फल की इच्छा मत करो। "             इस सिद्धांत का शाब्दिक अभिप्राय ही ग्रहण करने पर यह अक्सर प्रश्न उठता है कि -            जब फल की इच्छा ही नहीं है तो कर्म करने के लिए प्रेरणा /मोटिवेशन कहाँ से लायें ?बिना लक्ष्य के जीवन अधूरा है ?बिना मोटिवेशन के लक्ष्य पूरे नहीं हो सकते ? तो फिर?           'निष्काम कर्मयोग ' फल की इच्छा रखने पर प्रतिबन्ध नहीं लगाता बल्कि यह तो फल की प्राप्ति के लिए बिना आसक्त (अटैच )हुए कर्म में लगे रहने की प्रेरणा देता है।                        ' धर्मवीर भारती' ने अंधाय

जिज्ञासा

                      जिज्ञासा /कौतुहल                      "नभ के तारे देख कर एक दिन बबलू बोला ,                      अंतरिक्ष की सैर करें माँ ले आ उड़नखटोला।                        कितने प्यारे लगते हैं ये आसमान के तारे,                        कौतुहल पैदा करते है मन में रोज हमारे। "                                                                 -अज्ञात              ऊपर लिखी पंक्तियाँ बचपन की याद दिलाती है कैसे हम चाँद तारों को देख के कुछ भी अनुमान लगाते थे ,खाना खिलाने के लिए मम्मी चंदा मामा के हिस्से का लड्डू बना के खाना खिलाती थी। ये तो हमारी जिज्ञासा थी बचपन में लगता था सबकुछ जल्दी से सीख जाएँ ,जल्दी बड़े हो जाएँ। (बड़े हुए तो चाँद का कुछ और मतलब पता चला ,फिल्मी गानों में चाँद का जिक्र अक्सर ही होता है। कितनी अजीब बात है जिस चाँद से  प्रेमी अपनी  प्रेमिका के चेहरे की तुलना कर रहा होता है ,५ वर्ष बाद उसी चाँद को अपने बच्चे का मामा  बना देती है वो।)                  " हनुमान चालीसा में एक प्रसंग है की कैसे हनुमान  जी ने सूर्य को फल समझ के निगल  लिया था

सफलता और संघर्ष

              सफलता और संघर्ष                 "यूँ ही नहीं मिलती मंजिल राही को ,                   एक जूनून सा दिल में जगाना पड़ता है।                    ऐसे ही नहीं बन जाते आशियाने परिंदों के ,                    भरनी पड़ती है उड़ान बार -बार ,                     तिनका तिनका उठाना पड़ता है। "         सफलता और संघर्ष साथ -साथ चलते हैं ,चुनौतियाँ केवल बुलंदियों को छूने की नहीं होती ,बल्कि वहां टिके रहने की भी होती है यह ठीक है कि एक काम करते करते हम उसमें कुशल हो जाते हैं और उसे करना आसान हो जाता है ,पर वही करते रह जाना हमें अपने ही बनाई सुविधा के घेरे में कैद कर लेता है।            रोम के महान दार्शानिक सेनेका कहते हैं - "कठिन रास्ते भी हमें ऊंचाइयों तक ले जाते हैं। अनिश्चितताएँ  हमारी शत्रु  नहीं है। कुछ स्थायी नहीं होना बताता है कि - मैं और आप कोई भी जीवन की असीमित संभावनाओं को जान नहीं सकते। कभी आप अनिश्चितताओं की तरफ बढ़ते हैं तो कभी वे आपको ढूंढ लेती हैं। "           यही जीवन है ,हर रात के बाद सवेरा आता है और यह भी सत्य है कि रात जितनी क