संदेश

कठिन परिस्थितियां बेहतर अवसर लेकर आती हैं। .......

चित्र
     कठिन परिस्थितियां बेहतर अवसर लेकर आती हैं।  ...               आप ऊपर लगी  ये पौधे की फोटो देख रहे होंगे जो तुलसी पौधे के बगल में है। ये पौधा मेरे दिल के बहुत करीब है।  कुछ २० दिन पहले तक मेरे पास केवल एक तुलसी का पौधा ही था  ,एक दिन छत पे एक गमला मिला ,जिसमे लगा पौधा लगभग सूख चुका था उसमें शिवलिंग रखा था। मैंने सोचा कि इसको अपनी तुलसी के पौधे के पास ही ले जाती हूँ और इसके सूख चुके पौधे को हटा कर नया पौधा लगाउंगी। लॉक डाउन के कारण कोई पौधा बेचने वाला आ ही नहीं रहा तो मैंने सूखे पौधे को नहीं हटाया। और तुलसी के पौधे पर जब पानी डालती थी तब दूसरे गमले में भी पानी डालने लगी क्यूंकि उसमें शिवलिंग रखा है। एक हफ्ते बाद ही ये पूरी तरह से सूख चुका पौधा हरा होने लगा। मैं देख के इतनी आश्चर्य और खुश दोनों थी। क्यूंकि कुछ दिन पहले ही मैं उसको हटा कर दूसरा पौधा लगाना चाहती थी। मुझे कोई उम्मीद नहीं थी कि ये पौधा फिर से हरा हो जायेगा। और आज जब मैं हर सुबह इस पौधे को बढ़ते हुए देखती हूँ तो सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ महसूस करती हूँ।                    इस घटना से मैंने निष्कर्ष निकल

अकेलापन

चित्र
                                अकेलापन       " अगर आप अकेले में अकेले हैं तो आप बुरी संगति में हैं। " - अस्तित्ववादी चिंतक सार्त्र                अकेलापन सुनने में नकारात्मक प्रतीत होता है। लेकिन आज मैं  इस विषय पर कुछ अलग नजरिया लेकर आई हूँ।आप बिलकुल परेशान मत होइए कि  निराशा के माहौल में क्यों इस टॉपिक पे बात करें। यकीन मानिये और इस ब्लॉग को अंतिम तक पढ़िए  मैं आपको निराश नहीं करूंगी।                   कोरोना के कारण  बहुत सारे लोग आइसोलेट हैं ,घरों में कैद हैं। उनमें से कई लोग अकेले फंस गए हैं।और उन लोगों में से एक मैं भी हूँ। मैं अभी पीजी में अकेले हूँ और मेरे साथ १०-१२ कबूतर और ४-५ चूहे जो कल ही मुझे अपने ऊपर वाले खाली फ्लोर पर नजर आये ,वो अभी मेरे पडोसी हैं। पर चिंता की कोई बात नहीं है मैं सुरक्षित हूँ। खाना समय पे मिल जाता है और वाई -फाई का साथ ऐसा है कि लगता नहीं कि  किसी की जरुरत है मुझे ... और अगर उससे भी बोर हो जाऊं तो सर्वाइवल कुकिंग आती है मुझे जो कि अच्छा टाइमपास है। खैर ये तो मेरी बात हुई  अब उन लोगों की भी बात करते हैं   जो कोरोना पॉजिटिव हैं वो भी अ

अंधकार से प्रकाश की ओर

चित्र
   अंधकार से प्रकाश की ओर ....            कल जब  मैं शाम को चाय पी रही थी ,तभी अचानक भूकंप के झटके महसूस हुए। एक पल को तो लगा कि सिरदर्द की वजह से हो रहा है फिर जब न्यूज़ देखा तो सच में भूकंप ही था। तब में सोचने पे मजबूर हो गई गयी कि जिंदगी कितनी अनिश्चितताओं से भरी है। कैसी विडम्बना होती कि भूकंप में लोग घर से बाहर ही न निकल पाते। बाहर कोरोना का डर जो है।                             " ये  शहरों का                              सन्नाटा बता रहा है                              इंसानों ने कुदरत को                               नाराज बहुत किया है। "              ये प्रकृति का कहर है जो हमने प्रकृति के साथ किया अब वो बदले ले रही है। ये समय है ऐसे अंधकार का ,जिसने सम्पूर्ण मानवता को अपने आगोश में जकड लिया है। और कैसी विडम्बना है जो मानव पंछियों  और जानवरों  को कैद में रखता आ रहा था अब तक, आज वो खुद ही कैद रहने की दहशत झेल रहा है। अब लोगों को आज़ाद रहने की कीमत समझ में आ रही होगी।                           " पाबंदियां  जब भी लगी                              

समाजिक दूरी बनाम शरीरिक दूरी

चित्र
   सोशल डिस्टेंसिंग  बनाम फिजिकल डिस्टेंसिंग                  कोरोना के  कहर ने सामाजिक दूरी बनाने के लिए मजबूर किया है। कितना अनोखा शब्द  है ये मानव सामाजिक प्राणी है। और आज समाज से ही दूरी बनाये हुए है। पिछले कुछ  दिनों से सोशल डिस्टेंसिंग शब्द काफी प्रचलित रहा है। यदि हम विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्यप्रणाली पर ध्यान दें तो यह पाते हैं कि इसके द्वारा लगातार सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी ) के स्थान पर फिजिकल डिस्टेंसिंग (शारीरिक दूरी ) की  अवधारणा को बल दिया जा रहा रहा है।                  विशेषज्ञों का ये मानना है कि  ये शारीरिक दूरी बनाये रखने का समय है  ,लेकिन साथ ही सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर एकजुट होने का समय है। प्रोफेसर डेनियल एल्ड्रिच का तो ये मानना है कि सोशल डिस्टेंसिंग शब्द का इस्तेमाल न सिर्फ गलत है बल्कि इसका अत्यधिक प्रयोग हानिकारक साबित होगा। इनके अनुसार अभी शारीरिक दूरी और सामाजिक तौर पर एकजुटता प्रदर्शित करने का समय है।                   सोशल डिस्टेंसिंग से संबंधित समस्याओं को जानने की कोशिश करते हैं  - सामाजिक दूरी को भारतीय जनमानस जिन अर्थों में

दुविधा में मन

चित्र
                                मन के द्वन्द              आजकल मेरी रुचि  मिथक कहानियां पढ़ने में बढ़ गयी है। हाल ही में मैंने डॉ देवदत्त पटनायक कि किताब मिथक पढ़ी। जो कि हिंदु आख्यानों को समझने का अच्छा प्रयास है। वैसे तो हम सबको ही रामायण ,महाभारत की कहानियां मुंह जबानी याद है। परन्तु जब पुराने मिथक प्रसंगो के साथ नया नजरिया जुड़ जाता है तब बात अलग बन जाती है। आज मैं आप सब के साथ वो  दार्शनिक नजरिया बाँटने जा रही हूँ।           द्वन्द में गिरना मन का स्वभाव है। मन को भ्रम बहुत प्रिय होता है। मन सीधे -सीधे कोई काम करता नहीं ,चूंकि मन हमारे शरीर का अंग नहीं बल्कि अवस्था है ,और इस अवस्था  का निर्माण भी हमने अपने विचार और स्मृतियों से किया है ,इसलिए इस पर नियंत्रण करना ,इसको समझना ही संकल्प को बचाने की सबसे बड़ी क्रिया होगी। यदि मन खुला और सक्रिय है तो कोई भी संकल्प को पूरा होने नहीं देगा। बार -बार विकल्प चुनेगा और भ्रमित लोग कभी कोई संकल्प पूरा नहीं कर पाते।           मन का भोजन विचार है ,इसलिए विचारों के मामले में मन को बारीकी  से समझिये। मन भी तीन प्रकार का होता है -

त्वरित न्याय

चित्र
                   त्वरित न्याय        "नई हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती है,         कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है।         जुर्म करने वाले उतने बुरे नहीं होते                                                   ये जो अदालत है उनको समय पर सजा                                       न देके बिगाड़ देती है। "       हॉल   ही में जब तीसरी बार निर्भया रेप केस के गुनाहगारों  की फांसी टल गयी। तब मुझे बड़ा गुस्सा आया। (हालंकि फिर से नयी डेथ वारंट जारी की गयी है २०  मार्च को  )गुस्सा इस बात पे नहीं कि उनको फांसी नहीं हुई बल्कि उस बात पे जो निर्भया के माँ -बाप की धैर्य की परीक्षा इतनी लम्बी क्यों है। पिछले ८ साल से वो हर रोज़ सोचते होंगे  कि कब उनकी बेटी को  न्याय मिलेगा ?इतना दुःख झेलने के बाद क्या उनका जीवन सामान्य हो पायेगा ? कब वो सुकून की नींद ले पाएंगे।          दूसरे पक्ष के बारे में भी सोचिये की अपराधी के परिवार वाले जिनका कोई कसूर नहीं है वो भी ये लम्बी मानसिक प्रताड़ना सहने को मजबूर हैं।      "  justice delayed is justice denied."(न्याय में देरी न्याय से

महिला दिवस

चित्र
                             विमेंस डे   #breakthestereotype  #SheEqualsHe                           आजकल एक डिबेट चल पड़ा है। कुछ लड़कियां अगर बोलने की हिम्मत करती हैं तो उनपर नारीवादी  होने का   टैग लगा दिया जाता है। हाल ही में हमारे कुछ दोस्तों के बीच नारीवाद को लेकर बहस चल पड़ी और उनमें से एक ने कहा -यार हम मर्द कुछ भी कर लें हमेशा विलन ही रहेंगे। इतना भी क्या बुरा कर दिया यार हमने औरतों के साथ।  आज भी कितने मर्द कार में बैठने से पहले औरतों के लिए दरवाजा खोलते हैं ,सिनेमा हॉल में लेडीज फर्स्ट कहते हैं। बसों में औरतों के लिए रिज़र्व सीट होती है। और मेट्रो में तो पूरा डब्बा औरतों के लिए आरक्षित होता है। इतना सब तो कर दिया और क्या करें ?                     अच्छा इतना सब  कर दिया। जनाब पहले औरतों से तो पूछो वो बताएगी - "इतना सब मत करो ,खोलना है तो कार के दरवाजे नहीं बल्कि अपने दिमाग की खिड़कियां खोलो। लेडीज फर्स्ट नहीं बल्कि हम बराबर हैं बोलो। वीमेन एम्पावरमेंट के पोस्ट डोंट शेयर लेकिन ऑफिस में किसी वीमेन के आइडियाज सुनने के लिए बी फेयर। मेट्रो में डब्बा ,बस में