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टेक कोलोनाइजेशन

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      टेक कोलोनाइजेशन (तकनीकि साम्राज्यवाद/उपनिवेशवाद  )/डिजिटल कोलोनाइजेशन /मॉडर्न कोलोनाइजेशन                                   पिछले २ हफ़्तों से कोरोना के बढ़ते मामलों के साथ -साथ  भारत -चीन सीमा विवाद सुर्ख़ियों में है। चीन के सपोर्ट के साथ नेपाल भी भारत को दुखी कर रहा है। और अब तो अम्फान चक्रवात ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी।  अभी हाल ही में टिकटोक बनाम यूट्यूब विवाद भी चर्चा में रहा।  ये तो समाचारों की बात हुई। आज मेरा विषय तकनीकि साम्राज्यवाद है।  तो इस बारे में ही बात करेंगे और आपको बहुत कुछ रोचक तथ्य जानने को मिलेगा। इसलिए ब्लॉग को आखिर तक पढ़िए। वादा करती हूँ आपको निराश नहीं करुँगी।                                                                             "DATA is the new OIL ."               आंकड़ों के इस दौर में जहां हम ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था (नॉलेज इकॉनमी )में जी रहे हैं । ऐसे में भारत जैसे संवेदनशील देश जहाँ डिजिटल डिवाइड बहुत बड़ी समस्या  है। भारत में साइबर सुरक्षा के साथ -साथ डिजिटल साक्षरता का आभाव है। ऐसे में भारत कैसे इसके जाल में उलझ के रह गया है,

कोरोना काल में गाँधी की प्रासंगिकता

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            स्वदेशी ,स्वच्छता और सर्वोदय                  कल ही हमारे प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में बहुत बार ,लोकल (स्वदेशी )और आत्मनिर्भरता जैसे शब्दों का प्रयोग किया। दरअसल ये वर्त्तमान की आवश्यकता बन चुकी है। आज जब अंधाधुन गति से दौड़ रहे विश्व के सभी देशों की गति पर कोरोना ने ब्रेक लगा दिया है। वैश्विक मंदी भयावह नजर आ रही है।तब अचानक फिर से गांधी प्रासंगिक नजर आते हैं। वैसे तो महात्मा गांधी हमेशा ही प्रासंगिक रहे हैं और हमेशा ही रहेंगे। वर्तमान परिस्थिति में गांधीवादी दृष्टिकोण पर आधारित स्वदेशी ,स्वच्छता और सर्वोदय की अवधारणा  व्यवस्था को प्रभावी बनाने में मददगार साबित होंगे।              "एक देश में बाँध संकुचित करो न इसको,                    गांधी का कर्तव्य क्षेत्र, दिक् नहीं काल है।                 गांधी है कल्पना जगत के अगले युग की ,                       गांधी मानवता का अगला उद्विकास है। "                                                        -रामधारी सिंह दिनकर                    एक समय था जब स्वदेशी की अवधारणा ने भारतियों के मन में

जिम्मेदार कौन ?

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          जिम्मेदार कौन ?                                   " डर   ने  सड़कों को वीरान कर दिया ,                 वक़्त ने जिंदगी को हैरान कर दिया ,            काम के बोझ से दबे हर इंसान को ,                   आराम के एहसास ने परेशान कर दिया                क्या मुक्कमल हो गई थी जिंदगी हमारी ,       ये इस नए माहौल ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया ,                मिली है अगर कुछ फुरसत जिंदगी में ,           क्यों न इसमें भी कुछ नया आज़मां कर देख लें। "                                                                   - अज्ञात                      लॉक डाउन ३. ०  चालू है। शराब की दुकाने भी खुल गयी हैं।  कैसा नजारा था हम सबने देखा ,सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ाई गई।  और जगह -जगह महिलाओं के विरोध भी दिखाई दे रहे हैं । और इसका कारण है फ़्रस्टेटेड आदमी घर से बाहर नहीं जा पा रहे तो इसका परिणाम घरेलु हिंसा के बढ़ते केस के रूप में सामने आ रहे हैं। और शराब की दुकाने खुलने के बाद और परिस्थितियां विपरीत हो जाएँगी महिलाओं के लिए  और ये गंभीर चिंता का विषय है। महिला आय

कठिन परिस्थितियां बेहतर अवसर लेकर आती हैं। .......

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     कठिन परिस्थितियां बेहतर अवसर लेकर आती हैं।  ...               आप ऊपर लगी  ये पौधे की फोटो देख रहे होंगे जो तुलसी पौधे के बगल में है। ये पौधा मेरे दिल के बहुत करीब है।  कुछ २० दिन पहले तक मेरे पास केवल एक तुलसी का पौधा ही था  ,एक दिन छत पे एक गमला मिला ,जिसमे लगा पौधा लगभग सूख चुका था उसमें शिवलिंग रखा था। मैंने सोचा कि इसको अपनी तुलसी के पौधे के पास ही ले जाती हूँ और इसके सूख चुके पौधे को हटा कर नया पौधा लगाउंगी। लॉक डाउन के कारण कोई पौधा बेचने वाला आ ही नहीं रहा तो मैंने सूखे पौधे को नहीं हटाया। और तुलसी के पौधे पर जब पानी डालती थी तब दूसरे गमले में भी पानी डालने लगी क्यूंकि उसमें शिवलिंग रखा है। एक हफ्ते बाद ही ये पूरी तरह से सूख चुका पौधा हरा होने लगा। मैं देख के इतनी आश्चर्य और खुश दोनों थी। क्यूंकि कुछ दिन पहले ही मैं उसको हटा कर दूसरा पौधा लगाना चाहती थी। मुझे कोई उम्मीद नहीं थी कि ये पौधा फिर से हरा हो जायेगा। और आज जब मैं हर सुबह इस पौधे को बढ़ते हुए देखती हूँ तो सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ महसूस करती हूँ।                    इस घटना से मैंने निष्कर्ष निकल

अकेलापन

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                                अकेलापन       " अगर आप अकेले में अकेले हैं तो आप बुरी संगति में हैं। " - अस्तित्ववादी चिंतक सार्त्र                अकेलापन सुनने में नकारात्मक प्रतीत होता है। लेकिन आज मैं  इस विषय पर कुछ अलग नजरिया लेकर आई हूँ।आप बिलकुल परेशान मत होइए कि  निराशा के माहौल में क्यों इस टॉपिक पे बात करें। यकीन मानिये और इस ब्लॉग को अंतिम तक पढ़िए  मैं आपको निराश नहीं करूंगी।                   कोरोना के कारण  बहुत सारे लोग आइसोलेट हैं ,घरों में कैद हैं। उनमें से कई लोग अकेले फंस गए हैं।और उन लोगों में से एक मैं भी हूँ। मैं अभी पीजी में अकेले हूँ और मेरे साथ १०-१२ कबूतर और ४-५ चूहे जो कल ही मुझे अपने ऊपर वाले खाली फ्लोर पर नजर आये ,वो अभी मेरे पडोसी हैं। पर चिंता की कोई बात नहीं है मैं सुरक्षित हूँ। खाना समय पे मिल जाता है और वाई -फाई का साथ ऐसा है कि लगता नहीं कि  किसी की जरुरत है मुझे ... और अगर उससे भी बोर हो जाऊं तो सर्वाइवल कुकिंग आती है मुझे जो कि अच्छा टाइमपास है। खैर ये तो मेरी बात हुई  अब उन लोगों की भी बात करते हैं   जो कोरोना पॉजिटिव हैं वो भी अ

अंधकार से प्रकाश की ओर

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   अंधकार से प्रकाश की ओर ....            कल जब  मैं शाम को चाय पी रही थी ,तभी अचानक भूकंप के झटके महसूस हुए। एक पल को तो लगा कि सिरदर्द की वजह से हो रहा है फिर जब न्यूज़ देखा तो सच में भूकंप ही था। तब में सोचने पे मजबूर हो गई गयी कि जिंदगी कितनी अनिश्चितताओं से भरी है। कैसी विडम्बना होती कि भूकंप में लोग घर से बाहर ही न निकल पाते। बाहर कोरोना का डर जो है।                             " ये  शहरों का                              सन्नाटा बता रहा है                              इंसानों ने कुदरत को                               नाराज बहुत किया है। "              ये प्रकृति का कहर है जो हमने प्रकृति के साथ किया अब वो बदले ले रही है। ये समय है ऐसे अंधकार का ,जिसने सम्पूर्ण मानवता को अपने आगोश में जकड लिया है। और कैसी विडम्बना है जो मानव पंछियों  और जानवरों  को कैद में रखता आ रहा था अब तक, आज वो खुद ही कैद रहने की दहशत झेल रहा है। अब लोगों को आज़ाद रहने की कीमत समझ में आ रही होगी।                           " पाबंदियां  जब भी लगी                              

समाजिक दूरी बनाम शरीरिक दूरी

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   सोशल डिस्टेंसिंग  बनाम फिजिकल डिस्टेंसिंग                  कोरोना के  कहर ने सामाजिक दूरी बनाने के लिए मजबूर किया है। कितना अनोखा शब्द  है ये मानव सामाजिक प्राणी है। और आज समाज से ही दूरी बनाये हुए है। पिछले कुछ  दिनों से सोशल डिस्टेंसिंग शब्द काफी प्रचलित रहा है। यदि हम विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्यप्रणाली पर ध्यान दें तो यह पाते हैं कि इसके द्वारा लगातार सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी ) के स्थान पर फिजिकल डिस्टेंसिंग (शारीरिक दूरी ) की  अवधारणा को बल दिया जा रहा रहा है।                  विशेषज्ञों का ये मानना है कि  ये शारीरिक दूरी बनाये रखने का समय है  ,लेकिन साथ ही सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर एकजुट होने का समय है। प्रोफेसर डेनियल एल्ड्रिच का तो ये मानना है कि सोशल डिस्टेंसिंग शब्द का इस्तेमाल न सिर्फ गलत है बल्कि इसका अत्यधिक प्रयोग हानिकारक साबित होगा। इनके अनुसार अभी शारीरिक दूरी और सामाजिक तौर पर एकजुटता प्रदर्शित करने का समय है।                   सोशल डिस्टेंसिंग से संबंधित समस्याओं को जानने की कोशिश करते हैं  - सामाजिक दूरी को भारतीय जनमानस जिन अर्थों में