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कैसी ये मानसिकता .... नस्लभेदी ,रंगभेदी ,लिंगभेदी......?

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        हम सब में कुछ न कुछ कमी है और यही खूबसूरती है। क्यूंकि उस कमी को पूरा करने के लिए हम कोशिश करते हैं या उस कमी को  स्वीकार कर सहज जीवन में आगे बढ़ जाते हैं।आज ये विषय पर लिखने का एक कारण है। अभी हाल ही में मैंने ऐसी दो घटनाओं के बारे में पढ़ा और उन घटनाओं ने मुझे मजबूर किया कि इस विषय पर  लिखूं।            हाल ही में बॉलीवुड एक्टर रणदीप हुड्डा का एक पुराना वीडियो वॉयरल हुआ। इस वीडियो में वो सार्वजनिक मंच से एक चुटकुला सुनाते नजर आ रहे हैं। अंग्रेजी में सुनाये गए इस चुटकुले का मायावती की  राजनीति से ताल्लुक नहीं है ,बल्कि उनकी शक्ल -सूरत का मजाक उड़ाया गया है ,यानी बदसूरत महिला कहने की जगह उनका नाम का इस्तेमाल किया गया है। कितनी शर्मनाक बात है ये ...            ये चुटकुले उन्हीं मायावती को निशाना बनाते हैं जो भारत में पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनी ,जो ४ बार उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री पद पर रह चुकी हैं ,जो राष्ट्रीय स्तर की बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष हैं और जिन्हें पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हां राव  ने "लोकतंत्र का चमत्कार " कहा था।          यह  कोई पहला और अकेला मौ

भयानक गहराई के बिना कोई सतह सुन्दर नहीं लगती। ....

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          "सब्र के समुद्र की गहराई से बहुत रास्ते मिल जायेंगे।               जहां सुकून की गहराई है वहां आनंद सी शीतलता है। " अक्सर गांव में बड़े बूढ़ों से सुना होगा -     " तालाब  सदा कुएं से सैकड़ों गुना चौड़ा और बड़ा  होता है ,फिर भी लोग कुएं का ही पानी पीते हैं, क्यूंकि कुएं में गहराई और शुद्धता  होती है। वैसे ही मनुष्य का बड़ा होना अच्छी बात है , लेकिन उसके व्यक्तित्व में गहराई और विचारों में शुद्धता भी होने चाहिए तभी वह महान बनता है।"        गहरा ,गूढ़ ,गंभीर  ये शब्द सुनकर सोचने पर मैंने पाया  - मीरा बाई के कृष्ण प्रेम की गहराई , कबीर की गुरुभक्ति की गहराई जिसमे कबीर ने गुरु को भगवान् से बड़ा माना  ,महात्मा गाँधी  के सत्य और अहिंसा पर अटूट विश्वास की गहराई जिससे भारत को आज़दी मिली। .... तो वहीं भगत सिंह  क्रांतिकारी विचारों की गहराई , मदर टेरेसा के करुणा की गहराई या फिर यों कहे  जगजीत सिंह के गजलों की गहराई   , प्रेमचंद के उपन्यासों की गहराई ,र वीन्द्रनाथ टैगोर के गीतों की गहराई , रहमान के संगीत की गहराई , कल्पना चावला के सपनो की गहराई  आदि , और भी अनेक उदाहरण

oil.....ऑइल (तेल )

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             आप लोग भी  सोच रहे होगे ,तेल शीर्षक है ।दरअसल आज मुझे सरदर्द हो रहा था। अचानक याद आया चम्पी (बालों में तेल लगाना )करने से सही हो जाएगा। ऐसे ही चम्पी करते- करते मैंने तेल के बारे में सोचा पहले तो दिमाग में आया मेरी दादी के सरसों तेल के नुस्खे जो सर्दी में बहुत काम आते हैं , और हिंदी के मुहावरे फिर मैंने सोचा कि इसके बारे में क्या लिख सकती हूँ ?और  जो सोचा वही ये ब्लॉग का मुख्यवस्तु है।               कितनी  आवश्यक और उपयोगी  वस्तु है ये तो हम सब जानते हैं। पर बहुत प्रकार के तेल और उनका प्रयोग भी अलग-अलग होता है  तेल खाद्य वस्तु, औषधि ,कॉस्मेटिक और अब सामरिक(वैश्विक रणनीति ) वस्तु है। तेल के बिना आज हम अर्थव्यवस्था की कल्पना से भी डरते हैं। कृषि ,ऊर्जा, परिवहन आदि सभी क्षेत्रों में तेल की महती भूमिका है। तेल कूटनीति तो बरसों पुरानी बात हो गई। चाणक्य नीति में चाणक्य ने तेल के उपयोग को लेकर भ्रष्टाचार न करने का संदेश दिया था। सरकारी धन का उपयोग अपने फायदे लिए नहीं करना चाहिए। इसलिए वे स्वयं महामंत्री होते हुए भी सरकारी तेल से जलते हुए दीये का प्रयोग अपने निजी कार्य के लिए नहीं

पहले आकाश को छुओ। ......

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पहले आकाश को छुओ। ......                हाल ही में मैंने एक खूबसूरत लघु कथा पढ़ी। ... और मुझे ये इतनी अच्छी लगी कि मैंने सोचा आपके साथ भी शेयर करूँ। ...                ज्ञान , भावना और कर्म में एक बार अपने को बड़ा बताने और प्रमाणित करने को लेकर विवाद छिड़ गया। विवाद का कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा था। फलतः इस विवाद में हाथापाई तक  हो गई। इसका निपटारा करने के लिए तीनो ब्रम्हा जी के पास पहुंचे। ब्रम्हाजी ने समस्या का समाधान बताते हुए कहा -" जो भी इस आकाश को छू लेगा ,वह सबसे बड़ा होगा। "                                             " अक्ल ये कहती दुनिया मिलती है बाजार में ,         दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिये।"                                           -जावेद अख्तर                  अब तीनो आकाश को छूने चले। ज्ञान सूर्य तक पहुंच पाया। उससे आगे वह नहीं जा पाया। भावना ने जब छलांग लगाई तो वह आकाश के दूसरे छोर पर पहुंच गई पर नीचे नहीं आ  पाई। वह वहीं पर लटक कर रह गई। अब कर्म ने सीढ़ियाँ बनानी शुरू की। दोपहर होते- होते वह थक गया।                 इसके बाद ब्र

कुछ बातें ....

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 कुछ बातें  .... बस यूँ ही। ..                            बड़े दिनों बाद कुछ लिख रही। अभी तक सोचा नहीं कि क्या लिखूंगी। .. पर मन कर रहा कि कुछ लिखूं। ... अब मौसम भी अपने रंग बदल रहा,उमस भरी गर्मी के बाद हल्की -हल्की गुलाबी ठण्ड ने दस्तक दे दी है। .. कोरोना के साथ -साथ त्योहारों का मौसम चल ही रहा है।  बिहार में चुनावी दौर चल रहा और राजनेता काम के मुद्दों के  अलावा फालतू बयानबाजी और आरोप -प्रत्यारोप किये जा रहे। चुनावी रैलियों और बाजारों में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ रही है। मगर चुनाव में सब जायज है। पूरी दुनियां में वैक्सीन राष्ट्रवाद की लहर चल रही और अमेरिका के चुनाव का एक मुख्य मुद्दा भी वैक्सीन ही है। और हमारे भारत में तो चुनावी वादों में  वैक्सीन फ्री में बांटी जा चुकी है जो कि अभी तक बनी भी नहीं है।  यही न्यू नार्मल बनी जिंदगी बैचैन भी कर रही। आज ही न्यूज़ में देखा एक २१ साल की लड़की को दिन दहाड़े गोली मार दी गई और उसकी गलती केवल इतनी थी कि उसने शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। कैसी घटना है ये  ....??? कुछ दिन पहले हाथरस और बलरामपुर और पंजाब में बलात्कार की  घटनाएं  हुई। ये घटनाए

बारिश और मैं ..................

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              मुझे बारिश बहुत पसंद है हर बार जब बारिश होती है तब एक अलग सा सुकून होता है। बचपन की बहुत सारी यादें ताजा हो जाती हैं। इस बार तो दिल्ली में बस नाम की बारिश हुई है। ऊपर से अभी भी इतनी ऊमस और गरमी बनी हुई है। लग ही नहीं रहा की सावन का महीना है  पिछले २ दिन यहां बारिश हुई परन्तु यहां की बारिश में वो बात कहां जो मेरे गावं में होती थी। आज में अपनी बारिश की यादें शेयर कर रही। दरअसल इन ४ महीनो के लॉक डाउन में सब कुछ बोरिंग होने लगा है अब इसलिए आज पुराने दिनों में जाने की इच्छा हो रही फिर से। ....                   " बूंदों से बना हुआ छोटा सा समुन्दर ,                             लहरों से भीगती छोटी सी बस्ती।                     चलो ढूंढे बारिश में दोस्ती की यादें ,                         हाथ में लेकर एक कागज़ की कश्ती। "               बात तब की है जब मैं ८ वीं कक्षा में थी और हर बार की तरह इस बार भी गर्मी की छुट्टियों में, मैं और मेरा भाई पूरे २ महीने स्कूल के खुलने तक दादी के साथ ही रहे थे हमारे पुराने ओडिशा के गावं साहसपुर में।  पहाड़ों के नीचे बसा छोटा सा ,सुन्दर सा ग

राजनीति का अपराधीकरण /अपराध का राजनीतिकरण

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                       मैं लिखना कुछ और चाहती थी पर लिख इस टॉपिक पे रही हूं। मैं रोक नहीं पायी खुद को लिखने से  .... अजीब सी बात है ,अजीब हालात हैं। ...मैं पहले ही बताना चाहती हूँ मुझे अपराधियों से कोई सहानुभूति नहीं हैऔर न मैं ऐसे लोगों को सपोर्ट करती हूँ। मेरा मानना है कि किसी ने अपराध किया है तो उसको सजा जरूर मिलनी चाहिए। पर आज हम अपने खोखले हो चुके  सिस्टम की बात करेंगे।  कैसी घटना है...  एक अपराधी जिस पर ३० सालों से लगभग ६० लोगों की हत्या का आरोप हो ,५ लाख रूपए का इनाम रखा गया है।  एक बीजेपी विधायक की हत्या का भी आरोपी है और फिर भी अभी तक बचा रहा ?बिना राजनीतिक और पुलिस सहायता के एक गुंडा इतने दिनों तक कैसे बच सकता है ?सामान्य तौर पे यदि किसी आम आदमी पे एक पुलिस केस हो जाये तो उसकी पूरी जिंदगी बर्बाद हो जाती है। और एक गुंडा राजनीतिक सहायता पाकर इतना ताकतवर हो जाता है कि -एक पूरा संगठित अपराध करता है, ८ पुलिस वालो को मारने में कामयाब हो जाता है वो भी कुछ पुलिस वालों की सहायता से ही। और ये केवल एक नहीं था और भी बहुत सारे ऐसे गुंडे राजनेताओं की शरण में फलते- फूलते हैं ताकि धनबल और बा