संदेश

अगस्त, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

स्वयं की खोज

चित्र
                 अपने जवाब खुद ढूँढे।                "हर कोई आपको बताना चाहता है की आपको क्या करना चाहिए और आपके लिए क्या अच्छा है। वे नहीं चाहते कि आप अपने जवाब खुद खोजें ,वे चाहते हैं की आप उनके जवाबों पर विश्वास करें।"                                                                                                                             -सुकरात           हर व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसाआता  है, जब उसे लगता है कि सभी चीज़ें उसके विरोध में हैं  और वह कितना ही अच्छा क्यों न कर ले ,लेकिन उसके हाथ असफलता  लगेगी। ऐसे समय में व्यक्ति के मन में नकारात्मक विचारों का मेला उमड़ पड़ता है। ऐसी दशा में व्यक्ति आत्महत्या करने तक की सोचने लगता है। आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। बल्कि ऐसे समय में व्यक्ति को कहीं से छोटी सी प्रेरणा मिल जाये ,तो यह संभव है कि वही व्यक्ति भविष्य में ऐसा इतिहास रच दे कि लोग दांतों तले ऊँगली दबाने लगे।          असल में हर व्यक्ति की अपनी सीमायें और क्षमताएं  होती है। लेकिन कई बार जीवन में विपरीत परिस्थिति आने पर व्यक्ति को अपनी क्षमत

रंग/कलर्स

चित्र
                            रंग /कलर               अपने स्टडी टेबल पर रखे रंगबिरंगे पेन को देखकर ऐसे  ही मन किया कि क्यों न इसपे कुछ लिखा जाये। मुझे रंगोली बनाना पसंद है और रंगों  के साथ एक्सपेरिमेंट करना भी ,उनके साथ खेलना रंगो को मिक्स करके नए -नए शेड्स बनाना। वैसे व्यक्तिगत तौर पर मेरा पसंदीदा रंग सफ़ेद और काला  है। बाकि रंग भी पसंद है पर सफ़ेद  की बात  ही कुछ और है सफ़ेद रंग कलरलेस  होते हुए भी कलरफुल होता है।                               सफ़ेद रंग के लिए मैं  ऑब्सेस्ड हूँ। पता नहीं क्यों सफ़ेद चीज़ें अनायास ही मुझे आकर्षित करते हैं। सफ़ेद रंग शांति और अमन का पैगाम देता है।                   अब बात करते हैं रंगों का हमारे जीवन में क्या  महत्व होता है?और बिना रंगों के हमारा जीवन कैसा हो सकता है ?             " मनुष्यों के संबंधों में रंग भले बदल जाये परन्तु रंगों से मनुष्यों का सम्बन्ध कभी नहीं बदल सकता।"                हमारे जीवन में सदैव से रंग रहे हैं और सदा के लिए रहे हैं। रंग जीवन का प्रतीक है ,सृष्टि का सृजन भी। दो रंग आपस में मिलकर नए रंग का सृजन करते हैं

धैर्य में ही सफलता......

चित्र
                          प्रेरक कहानी                एक आश्रम में ,शिक्षा -सत्र समाप्ति पर ,गुरु ने शिष्यों की अंतिम परीक्षा लेने के उदेद्श्य से ,सबके हाथों में बांस से बनी एक -एक टोकरी पकड़ाते हुए कहा -"तुम सब नदी पर जाकर इन टोकरियों  में जल भरकर लाओ और आश्रम की सफाई करो। "                   गुरु की आज्ञा मानकर शिष्य चल पड़े। सोचने लगे कि टोकरियों में जल कैसे भरा जायेगा ? जल तो छेदों से बहकर निकल जायेगा। नदी पर वही हुआ। टोकरियों में पानी भरते ही बह जाता था।                  सदाव्रत नामक शिष्य को छोड़कर सभी शिष्य टोकरियां फेंक कर  आश्रम आ गए। लेकिन सदाव्रत ने प्रयास नहीं छोड़ा और शाम तक टोकरी में जल भरने का प्रयास करता रहा। आखिर उसका धैर्य रंग लाया और टोकरी में बार -बार जल लगने से बांस की कमानियां  फूल गईं  और उनके बीच के छेद बंद हो गए और जल रिसना बंद हो गया।                                            सदाव्रत  टोकरी में जल लाकर  आश्रम की सफाई में जुट गया। तब गुरु ने सभी शिष्यों  बुलाकर कहा -" यह अंतिम शिक्षा थी जिसमें सदाव्रत के अलावा सभी छात्र अनुत्तीर्

परिवर्तन

चित्र
                         परिवर्तन/बदलाव                  परिवर्तन प्रकृति का नियम है जीवन का सत्य है। समय के साथ सारी चीजें परिवर्तित हो जाती है जैसे आदिमानव से सभ्य मानव तक का सफर ,ये भी तो एक बदलाव ही है। ठहराव और जड़ता मृत्यु है। जिस प्रकार ठहरा  हुआ पानी प्रदूषित हो जाता है ,उसी प्रकार यथास्थिति से मनुष्य प्रगति नहीं कर सकता है। उसे हमेशा समय के साथ स्वयं में बदलाव/ परिवर्तन करते रहना चाहिए। अर्थात अपडेटेड रहना चाहिए। नहीं तो हम  पीछे रह जायेंगे इस तेजी से बदलती दुनिया में।                 "हम परिवर्तन तो चाहते हैं पर इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं ,हमें हर सुविधा चाहिए पर उसकी प्राप्ति के लिए उठाये जाने वाले कष्ट हमें स्वीकार नहीं। "                    हम सफाई तब करेंगे जब सरकार कहेगी ,अन्यथा सार्वजनिक स्थानों पर बेधड़क गन्दगी फैलाएंगे।कहीं भी पान खाकर थूकना भी लोग अपना  अधिकार समझते हैं।  हम अपने गावों में शौचालय बनवाने के लिए भी वर्षों सरकार का इंतज़ार करते हैं। हमें अपनी जान भी प्यारी नहीं है इसलिए हेलमेट भी ट्रैफिक पुलिस को देखने के बाद

जीवन दर्शन

                       तीन मार्गदर्शक सिद्धांत             ये तीन ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत हैं ,जिससे मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत अधिक प्रभावित हूँ। और ये तीन सिद्धांत सार्वभौमिक हैं।  (१)   गीता का निष्काम कर्मयोग           " कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचना।            मा कर्मफलहेतुर्भूः मा ते संगोत्सव कर्मणि।। "          सामान्य भाषा में निष्काम कर्मयोग के सिद्धांत को इस रूप में समझाया जाता है कि -          "  कर्म करते रहो फल की इच्छा मत करो। "             इस सिद्धांत का शाब्दिक अभिप्राय ही ग्रहण करने पर यह अक्सर प्रश्न उठता है कि -            जब फल की इच्छा ही नहीं है तो कर्म करने के लिए प्रेरणा /मोटिवेशन कहाँ से लायें ?बिना लक्ष्य के जीवन अधूरा है ?बिना मोटिवेशन के लक्ष्य पूरे नहीं हो सकते ? तो फिर?           'निष्काम कर्मयोग ' फल की इच्छा रखने पर प्रतिबन्ध नहीं लगाता बल्कि यह तो फल की प्राप्ति के लिए बिना आसक्त (अटैच )हुए कर्म में लगे रहने की प्रेरणा देता है।                        ' धर्मवीर भारती' ने अंधाय

जिज्ञासा

                      जिज्ञासा /कौतुहल                      "नभ के तारे देख कर एक दिन बबलू बोला ,                      अंतरिक्ष की सैर करें माँ ले आ उड़नखटोला।                        कितने प्यारे लगते हैं ये आसमान के तारे,                        कौतुहल पैदा करते है मन में रोज हमारे। "                                                                 -अज्ञात              ऊपर लिखी पंक्तियाँ बचपन की याद दिलाती है कैसे हम चाँद तारों को देख के कुछ भी अनुमान लगाते थे ,खाना खिलाने के लिए मम्मी चंदा मामा के हिस्से का लड्डू बना के खाना खिलाती थी। ये तो हमारी जिज्ञासा थी बचपन में लगता था सबकुछ जल्दी से सीख जाएँ ,जल्दी बड़े हो जाएँ। (बड़े हुए तो चाँद का कुछ और मतलब पता चला ,फिल्मी गानों में चाँद का जिक्र अक्सर ही होता है। कितनी अजीब बात है जिस चाँद से  प्रेमी अपनी  प्रेमिका के चेहरे की तुलना कर रहा होता है ,५ वर्ष बाद उसी चाँद को अपने बच्चे का मामा  बना देती है वो।)                  " हनुमान चालीसा में एक प्रसंग है की कैसे हनुमान  जी ने सूर्य को फल समझ के निगल  लिया था

सफलता और संघर्ष

              सफलता और संघर्ष                 "यूँ ही नहीं मिलती मंजिल राही को ,                   एक जूनून सा दिल में जगाना पड़ता है।                    ऐसे ही नहीं बन जाते आशियाने परिंदों के ,                    भरनी पड़ती है उड़ान बार -बार ,                     तिनका तिनका उठाना पड़ता है। "         सफलता और संघर्ष साथ -साथ चलते हैं ,चुनौतियाँ केवल बुलंदियों को छूने की नहीं होती ,बल्कि वहां टिके रहने की भी होती है यह ठीक है कि एक काम करते करते हम उसमें कुशल हो जाते हैं और उसे करना आसान हो जाता है ,पर वही करते रह जाना हमें अपने ही बनाई सुविधा के घेरे में कैद कर लेता है।            रोम के महान दार्शानिक सेनेका कहते हैं - "कठिन रास्ते भी हमें ऊंचाइयों तक ले जाते हैं। अनिश्चितताएँ  हमारी शत्रु  नहीं है। कुछ स्थायी नहीं होना बताता है कि - मैं और आप कोई भी जीवन की असीमित संभावनाओं को जान नहीं सकते। कभी आप अनिश्चितताओं की तरफ बढ़ते हैं तो कभी वे आपको ढूंढ लेती हैं। "           यही जीवन है ,हर रात के बाद सवेरा आता है और यह भी सत्य है कि रात जितनी क

छोटी- छोटी सफलतायें

 छोटे छोटे  लक्ष्य/ छोटी छोटी सफलताएँ               छोटे और लक्ष्य का संयोग हमेशा ही विरोधाभास पूर्ण  लगता रहा है ,दरअसल किसी भी  लक्ष्य का निर्धारण करना ही अपने आप में एक बड़ा काम है ,क्यों की यह व्यक्ति की संकल्पशक्ति का सूचक है। एक कहानी जो मैंने अपने नानाजी से सुनी थी आपको सुनाती हूँ-               शिवाजी  उनदिनों  मुगलों के विरूद्ध छापामार युद्ध लड़ रहे थे। रात को थके मांदे एक वनवासी बुजुर्ग महिला की झोपड़ी में आ पहुंचे। घर में कोदों थी। सो ,उसने प्रेमपूर्वक भात पकाया और पत्तल पर शिवाजी के सामने परोस  दिया। शिवाजी को बहुत भूख लगी थी। सपाट से भात खाने की आतुरता में उँगलियाँ  जला बैठे।                   बुजुर्ग महिला बोली -"सिपाही ,तेरी शक्ल तो शिवाजी जैसी लगती है और ये भी लगता है कि तू उसी की तरह मूर्ख है। "                यह सुनकर शिवाजी स्तब्ध रह गए। बोले- "शिवाजी की मूर्खता बताओ और साथ में मेरी भी। "                बुजुर्ग महिला बोली -" तूने किनारे -किनारे से थोड़ी -थोड़ी ठंडी कोदों  खाने के बजाय भात के बीच में हाथ मारा और उँगलियाँ जला लीं

रक्षाबंधन..

भैय्या मेरे राखी के बंधन को निभाना .........                   आज रक्षा बंधन और स्वतंत्रता दिवस दोनों है इसलिए सबको हार्दिक शुभकामनायें ....               आज  घर की बहुत याद आ रही है ,आज के दिन की चहल -पहल , माँ के हाथ का बना खाना,मिठाइयां, तोहफे मिलने की ख़ुशी  और वो पुरे परिवार का साथ खुशियों में शामिल होना ,सब याद आ रहा है। पिछले ३ वर्ष से मैं कभी राखी पे घर नहीं जा पाती ,हर बार राखी भेज देती हूँ भाइयों को ,इस बार तो मेरे भाई भी घर पे नहीं है वो भी घर नहीं जा रहे। मम्मी कहती है घर में रौनक ही नहीं है त्यौहार मनाने  का दिल नहीं कर रहा ,पर फिर भी त्यौहार मनाएंगे क्यों की पापा की बहनें  और मम्मी के भाई भी तो हैं। वैसे मैंने भी अपने भाइयों को राखी भेज दी है। मैं खुश भी हूँ हम चाहे जहाँ भी रहे राखी का त्यौहार हर बार ये एहसास कराता है कि  हमारा रिश्ता कितना मजबूत है। कभी -कभी सोचती हूँ  काश की हम बड़े ही न होते तो कभी घर से दूर जाना नहीं पड़ता। और हम ऐसे ही साथ में हसीं -ख़ुशी लड़ते झगडते रहते । पर कितनी अजीब बात है जब हम बच्चे होते थे तब लगता था जल्दी से बड़े हो जाएँ और आज जब बड़े हो च

क्रोध (गुस्सा)

                                  क्रोध              क्रोध ताश का पत्ता है।लेकिन यह पत्ता सामान्य न होकर तुरुप का इक्का होता है। जिसका इस्तेमाल कभी- कभी ही करना चाहिए और वो भी तब जब अन्य  कोई  चारा न हो। " क्यों की आग अगर रौशनी दे सकती है तो जला भी सकती है"               गुस्सा रिश्ते ख़राब कर देती है।  कड़वाहट ले आती है संबंधों  में ,गुस्से में हम कुछ भी बोलते हैं और हमे पता नहीं चलता की हमने सामने वाले को दुःख पहुँचाया। ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। ३ वर्ष पहले तक मुझे बहुत गुस्सा आता था पर अब मैंने काफी हद तक नियंत्रण कर लिया। और ये सब की वजह थी कि  मैंने  परिवार में किसी अपने को दुःख पहुंचाया। गुस्से में व्यक्तिगत कंमेंट कर दिया ,पर बाद में माफ़ी भी मांग ली थी। परन्तु नुकसान हो चुका  था।  आज भी गिल्ट है उस बात का। मम्मी से  बहुत डांट पड़ी ,उन्होंने बोला - तू बहुत बत्तमीज़ हो रही है।  तब से मैंने सोच लिया कि जब भी गुस्सा आये मैं  किसी से बात ही नहीं करूंगी।अपना ध्यान बंटा दूंगी ,जब तक गुस्सा शांत नहीं हो जाता तब तक मौन व्रत रखूंगी। और यकीन मानो ये तरीका कारगर है।

समाजिक स्वतंत्रता..

"जिस  स्वतंत्रता में गलती कर पाने का अधिकार शामिल नहीं  हो उस स्वतंत्रता का कोई मूल्य नहीं है।"-महात्मा गाँधी                       १५ अगस्त आने वाला है ,भारत को आजाद हुए ७२ वर्ष हो चुके हैं। ... इन ७२ वर्षों में देश ने बहुत तरक्की की है ,हम विश्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं और आने वाले ५ वर्षो में ५ ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने की क्षमता रखतें हैं।  परन्तु क्या हम सच में स्वतंत्र है? या ये केवल कानूनी स्वतंत्रता है ? क्या हम सामाजिक रूप से स्वतंत्र हैं?                                   "जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते ,कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वह आपके किसी काम के नहीं। "   -भीमराव अम्बेडकर                    विशेषकर    महिलओं की स्थिति में आज़ादी के बाद सुधार हुआ है परन्तु उतना नहीं जितना की अपेक्षित था ,आज भी महिलाओं की स्थिति दयनीय है। जीवन के हर क्षेत्र में उनकी उपेक्षा होती है। आये दिन खबरों में घरेलु हिंसा,रेप  की घटनाएं देखने मिलती है.महिलाये कहीं  स्वतंत्र होकर जा नहीं सकती ,उन्हें डर लगा रहता है कि अगर उनक

सबसे सुंदर क्या है.....

                                            नजरिया  एक बार एक व्यक्ति के मन में सवाल उठा की सर्वोत्तम सौंदर्य क्या है  ? वह उत्तर की खोज में चल पड़ा। उसने एक तपस्वी के सामने अपनी जिज्ञासा रखी। तपस्वी बोले-" श्रद्धा -भक्ति ही सबसे सुन्दर है ,जो मिटटी को भी ईश्वर में परिवर्तित कर देती है।"                        जिज्ञासु तपस्वी की बात से संतुष्ट नहीं हुआ और आगे बढ़ गया। उसे एक प्रेमी मिला   जिसने कहा -" इस दुनिया में सर्वोत्तम  सौंदर्य सिर्फ प्रेम है। प्रेम के बल पर इंसान दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत को पराजित कर सकता है। "                 उस जिज्ञासु को इससे भी संतुष्टि  नहीं हुई। उस समय एक योद्धा रक्तरंजित ,हताश लौट रहा था। उस व्यक्ति ने योद्धा से पूछा तो योद्धा बोला -" शक्ति  ही सर्वोत्तम  सौंदर्य है ,क्यों की युद्ध की विनाशलीला मैं स्वयं देख के आया हूँ। मैंने देखा कि किस कदर ईर्ष्या और लोभ से वशीभूत लड़ा गया युद्ध अनेक जिंदगियां बर्बाद कर देता है। "             तभी एक स्त्री विलाप करती हुई नजर आई। उस व्यक्ति ने उस स्त्री से उसका कारण  जानना

प्रेरक कथाएँ

                                      धैर्य  एक बार  ईशा मसीह  अपने शिष्यों के साथ जंगल में जड़ी  बूटियां ढूंढने के लिए  गए। लौटते समय उन्हें प्यास लगी। शिष्य इधर उधर पानी की तलाश करने लगे। तभी उन्हें एक खेत  दिखाई दिया। वहां पहुंचने पर ईशा मसीह को जगह जगह गड्ढे  दिखाई दिए। उन्होंने शिष्यों से पूछा-" क्या तुम बता सकते हो कि इस खेत में ये गढ्ढे क्यों खोदे गए हैं ?"                                      सभी शिष्य एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। तब उन्होंने शिष्यों को समझाते   हुए कहा  - " इस खेत में ये गढ्ढे कुआँ खोदने के लिए किये गए हैं। किसान ने खेत में पानी की तलाश के लिए कुछ  फुट तक तो गढ्ढा खोदा  ,जब उसे पानी नहीं मिला तो दूसरी जगह खोद दिया। इस तरह कई जगह गढ्ढे खोदे ,लेकिन पानी नहीं मिला। अगर वो लगन और  दृढ़विश्वास के साथ एक ही गढ्ढे पर कड़ी मेहनत करता तो निश्चय ही उसे जमीन  से पानी मिलता।  लेकिन धैर्य  नहीं होने के कारण किसान का कार्य पूरा नहीं हुआ। उसका सारा श्रम व्यर्थ चला गया। "                                                      कुछ देर रुक कर ईशा

अनुभव..

                              सावन का महीना  पवन करे शोर..                                आज सावन का आखरी सोमवार है मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी है लोग पूजा करने में इतने मगन हैं की धक्का मुक्की हो रही है ,आज मैं  भी मंदिर आई हूँ ,जनरली मैं पूजा पाठ नहीं करती ,बस प्रार्थना करती हूँ ,काफी दिनों बाद आज मेरा भी मन हुआ..पर मैं मंदिर खाली हाथ ही आई हूँ ,मुझे लगता है  कि  मैं भगवन को दे ही क्या  सकती हूँ  इसके अलावा की मेरा उनपर भरोषा है और हमेशा रहेगा चाहे मैं अगरबत्तीमूलक पूजा न करूँ। मंदिर के नज़ारे ही अलग हैं आज , आज शिव जी का दिन है। मेरी मम्मी कहती है की मैं सोमवार को पैदा हुई थी इसलिए मेरा नाम शिवाश्री है  जिसका मतलब है शिवा +श्री , अर्थात शिव जी का अंश + लक्ष्मी जी ,जब  भी मेरा मन अशांत होता है मम्मी कहती है तू मंदिर चले जाना ,पर मैं कभी कभार ही जाती हूँ...                                  शिव जी पे आज ढूध  ,दही ,फल -फूल चढ़ाये जा रहें है , मंदिर मैं खड़े होकर सोच रही  थी  कि इतना सारा ढूध वेस्ट हो जायेगा  जबकि अगर इतना ढूध लोग यदि सिर्फ भगवान के नाम  से किसी अनाथ आश्रम या